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27.11.07

अब तक की सर्वश्रेष्ठ भड़ास

आइना दिखाता है मुझे नामक शीर्षक से भड़ास पर डाली गई पोस्ट को पढ़िए। वाकई...जितने सधे शब्दों में गिरीश बिल्लोरे मुकुल ने अपनी भड़ास निकाली है वह अंदर से हिला देने वाली है। बाप रे....कितनी आग है। कितनी बातें कितने कम बातों में कह दी। वही तनाव और वही दबाव। काम का। बास का। मैं तो खुद को रोक नहीं पा रहा, यह कहने के लिए यह अब तक सर्वश्रेष्ठ भड़ास है। सर्वश्रेष्ठ भड़ास का पैमाना क्या है? मैं जो खुद सोच पाता हूं वह यह कि जिसके कह देने से मन हलका हो जाए और पूरी बात भी निकल जाए और कोई दिक्कत भी न आए वह सर्वश्रेष्ठ भड़ास है। कई बार हम उत्साहित होकर इतने नंगेपन के साथ सब लिखदेते हैं कि जब उसका साइड इफेक्ट होना लगता है तब महसूस होता है कि गलत हो गया। ऐसा मैं खुद भी करता था, करता हूं....यह सच है लेकिन इसे मैं आदर्श नहीं मानता। आदर्श यही है कि आपक बात भी कह दें और बात भी न खुले। दरअसल सही बात तो यही है कि सब कुछ बिलकुल साफ साफ कहना चाहिए लेकिन इस हरामीपने भरे दौर में साफ साफ कहने और सुनने पर दंगा हो जाता है। आपको झेलना पड़ जाता है। आपको नुकसान उठाना पड़ जाता है। तो अगर कबीरदास वाली स्थिति में आप आ गए हों कि चलो, जो होगा देखा जाएगा..कुछ इस अंदाज में...कबीरा खड़ा बजार में, लिया लुकाठी हाथ, जो घर फूंके आपने चले हमारे साथ...। लेकिन सच्ची बात तो ये है कि हर साथी, हर भड़ासी कहीं न कहीं करियर और परिवार और समाज की तमाम जिम्मेदारियों को भी निभाता है इसलिए उसे सब कुछ ऐसे कहना करना है कि अपना काम भी बन जाए, मन भी हलका हो जाए और आगे सब कुछ सही और सुंदर बना रहे। तो मैं सभी भड़ासियों से अनुरोध करूंगा कि इस पोस्ट के नीचे पड़ी पोस्ट आइना दिखाता है मुझे को जरूर पड़ें और अपनी टिप्पणी भी वहां जरूर दें। इस पोस्ट की टिप्पणियों में अमित ने एक टिप्पणी लिखी है इलेक्ट्रानिक मीडिया में भूकंप। दरअसल, यह टिप्पणी नहीं एक अलग पोस्ट है जिसे अमित को अलग पोस्ट के रूप में डालना चाहिए था। अगर अमित पढ़ रहे हों तो वो उसे निकालकर अलग से डाल दें, काफी मजेदार और बेहद अच्छे तरीके से लिखा है उन्होंने।
जय भड़ास
यशवंत

1 comment:

बाल भवन जबलपुर said...

अब तक की सर्वश्रेष्ठ भड़ास
यशवंत सिंह जी..आपने कहा :-आइना दिखाता है मुझे.... नामक शीर्षक से भड़ास पर डाली गई पोस्ट को पढ़िए। वाकई...जितने सधे शब्दों में गिरीश बिल्लोरे मुकुल ने अपनी भड़ास निकाली है वह अंदर से हिला देने वाली है। बाप रे....कितनी आग है। कितनी बातें कितने कम बातों में कह दी। वही तनाव और वही दबाव। काम का। बास का। मैं तो खुद को रोक नहीं पा रहा, यह कहने के लिए यह अब तक सर्वश्रेष्ठ भड़ास है।
आपका आभारी हूँ ...... दुनिया में यही सब कुछ चलता देख दु:खी हो जाता हूँ ..... परसाई के नगर का हूँ तो तरीका "परसाई की तरह हो ऐसा प्रयास करता हूँ !"
आप जब भडास को आशीर्वाद दे रहें है तो इन पंक्तियों पर भी........आशीर्वाद ही चाहूंगा
"इश्क़ कीजे सरे आम खुलकर कीजे
भला पूजा भी कोई छिप-छिप के किया करता है...?"