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19.1.08

हां, अगर पत्रकारिता करने का यही अंजाम है तो मैं मरना चाहता हूं- शीलेश त्रिपाठी



लखनऊ के पत्रकार शीलेश ने राष्ट्रपति से 26 जनवरी के दिन जान देने की जो अनुमति मांगी है, वह कहीं से अनुचित नहीं। उनकी जगह हम-आप होते तो शायद यही करते, या फिर इसके उलट, जिसे कानून गैरकानूनी मानता है।

शीलेश में कमियां हो सकती हैं, वो हमारे आप में भी है। पर उन अफसरों और ब्यूरोक्रेटों की कमियों से तो शतांश कम है, जो मौका मिलने पर अपना ईमान और कानून तो क्या, प्रदेश और देश को ही बेच दें। और बेचा है। जितने बड़े घोटाले और घपले पता चलते हैं, पकड़े जाते हैं, छापे पड़ते हैं, उसमें कौन फंसता है। यही, हमारे लोकतंत्र के कथित आंख-नाक-कान, जो फाइलों और नोटों के अंबार पर गांड़ मोटा करके बैठे हुए हैं। ये टाई-कोट वाले आधुनिक गोरे सत्ता बदलने के साथ किस तरह रंग बदलते हैं और किस तरह हर रीढ़ वाले को खऱीदते हैं, या न बिकने पर कानून के जंजाल में फंसा देते हैं, ये किस्से अब सबको पता है।

अगर गड़बड़ी की पोल खोलते हुए कोई रिपोर्ट कोई पत्रकार या संपादक छाप देता है, और वो पत्रकार व संपादक किसी बड़े मीडिया हाउस का नौकर होने की बजाय खुद द्वारा निकाली गई मैग्जीन का हो, तो क्या सत्ताधारियों के आगे कत्थक करने वाले इन वरिष्ठ ब्यूरोक्रेटों को यह छूट मिल जाती है कि वो उनके खिलाफ लिखने वाले पत्रकार शीलेश, उनके बच्चों, उनकी पत्नी का जीना हराम कर दें, हर क्षण गुंडागर्दी करें, हर वक्त आतंकित रखें, अपहरण करने की साजिश करें, घर से उठाकर ले जाएं और इनकाउंटर करने की धमकी देकर झुकने को कहें, डराने धमकाने के बाद सत्ता के आगे गिड़गिड़ाकर माफी मांगने को कहे, हर पल साये की तरह पीछे करें, गली सड़क चौराहे कहीं भी अभद्रता शुरू कर दे.....उफ्फ...पर यह सच है, बकौल शीलेश।

सत्ता किसी को किस तरह प्रताड़ित या परेशान कर सकता है, इसका अंदाजा पत्रकार शीलेश से बात करके होता है।

दद्दा अनिल सिन्हा ने लखनऊ और कानपुर शहरों में शीलेश प्रकरण की गहराई से छानबीन कराई और शीलेश का मोबाइल नंबर भी पता किया। सारी सूचनाएं मुझे दीं। मैंने शीलेश से उनके मोबाइल नंबर पर आज देर तक बात की। उन्होंने जो हालत बयां किया, उसे सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। शीलेश से हुई बातचीत के कुछ अंश यहां दे रहा हूं।

आप पढ़ें और मैं चाहूंगा कि इस पोस्ट के अंत में दिये गये मोबाइल नंबर पर, जो शीलेश का है, फोन कर उन्हें खुद की तरफ से व भड़ास की तरफ से संबल प्रदान करें। साथ में अगर आप शीलेश के लिए कुछ कर सकते हैं, तो बतायें। मैंने शीलेश से दिल्ली आने और मिलने का अनुरोध किया ताकि कुछ करा जा सके।

शीलेश ने जो बताया...

... जीना मुश्किल हो गया है भाई साहब। एक महीने पहले कुछ लोग रात में एकाएक घर आए और मुझे उठा ले गए। पूरी रात घुमाते रहे, गाड़ी में बिठाकर, इस शहर, उस शहर। धमकाते रहे। कहते रहे- तुम्हारा इनकाउंटर करने का आदेश है पर हम दया बरत रहे हैं, तुम चलो पैर पकड़ लो। माफी मांग लो। हाईकोर्ट से याचिका वापस ले लो। माफ कर देंगे वो तुम्हें। तुम जाने हो कि नहीं कि वे कितने बड़े लोग हैं। हम लोगों से कह दिया गया है कि पहले समझाओ, न माने तो निपटा दो।....


शीलेश ने बताया कि एक बड़ी गड़बड़ी का जब खुलासा अपनी मैग्जीन में उन्होंने किया तो इन सीनियर अफसरों की आंख की किरकिरी बन गया। मैंने इस घोटाले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। मेरे रिपोर्टर ने उस घोटाले से संबंधित ढेर सारे तथ्य और आंकड़ें सीबीआई को सुपुर्द किए। क्या यह सब निहित स्वार्थ के तहत किया? यह सब लाभ कमाने के लिए नहीं, पत्रकारिता के तेवर के तहत किया। पर मुझे नहीं पता था कि पत्रकारिता के तेवर ढीले करने के लिए ये अफसर सत्ता के दुलारे बनते ही इस तरह कहर बरपाएंगे। वो गड़बड़ी के खुलासे का मामला ही अब मेरे लिए बवाल-ए-जान बना हुआ है। सत्ता इन अफसरों के हाथ में है और मैं निरीह स्थिति में गुहार लगाता जान के लिए और परिवार के लिए मारा मारा फिर रहा हूं।

....अब तो घर भी नहीं जाता क्योंकि जब भी वो लोग मुझे देख लेते हैं, मेरे पीछे लग जाते हैं। और मेरे कारण मेरे बच्चे स्कूल नहीं जा पाते क्योंकि वो लोग मेरे बच्चों से गाली गलौज और अभद्रता करते हैं। सिविल वर्दी में कई दरोगा मेरे फिराक में घर के आसपास रहते हैं। जब उनसे पूछो कि कार्ड कहां है तुम्हारे पास तो वो बदतमीजी और गुंडागर्दी पर उतारू हो जाते हैं। अब तो मैं बच बच के यहां वहां रह रहा हूं ताकि घरवाले तो कम से कम शांति से रह सकें। मेरे कारण मेरे बच्चों और पत्नी तक से बदतमीजी से पेश आया जा रहा है। मैं अपना दिन रात यहां वहां भटककर गुजारता हूं। ....


जब मैंने कुछ सवाल पूछे तो शीलेश ने बेहद परेशान और तल्ख लहजे में कहा कि कौन कहता है कि मैं मैग्जीन आर्थिक लाभ के लिये निकालता था? मैग्जीन में मैंने ढेरों घोटाले प्रकाशित किये। वन विभाग के सर्वोच्च अफसरों से लेकर प्रदेश के सीनियर मोस्ट ब्यूरोक्रेटों को घोटालों-मनमर्जियों पर तथ्यपरक रिपोर्ट प्रकाशित की। इसी के चलते ये सीनियर अफसरों का बेहद प्रभावशाली गुट जो आज मायावती सरकार की आंखों का तारा है और मायावती सरकार के एक प्रमुख सलाहकार नेता का प्यारा है, अपनी पूरी ताकत मुझे डराने और उखाड़ने में लगाये है। उन्हें डर है कि अगर उनके घोटाले घपले हाईकोर्ट के जरिये उजागर हो गये तो उनका करियर बर्बाद हो सकता है और सरकार पर भी आंच आ सकती है, इसलिए वो लोग हाथ धोकर पीछे पड़े हुए हैं। उनके इशारे पर गु़ंडे पुलिसवाले सब वो वो चीजें कह कर रहे हैं, जिसे बयान नहीं कर सकता।

....भाई साहब, भड़ास में मेरी तरफ से यह संदेश प्रकाशित करियेगा कि पत्रकार साथियों, जो जो शीलेश के साथ हुआ है, अगर वो तुम सभी के साथ होता तो अब तक शायद आत्महत्या कर लेते। मैं तो फिर भी जी रहा हूं और इस सत्ता से लड़ने की ताकत बटोर रहा हूं। लेकिन कभी कभी जो जलालत की ज़िंदगी जी रहा हूं और जिस तरह से हर चीज मेरे खिलाफ होती नजर आ रही है, उसमें मर जाने का मन करता है। इसीलिए मैंने राष्ट्रपति महोदय से 26 जनवरी को जान देने की अनुमति मांगी है ताकि पत्रकार संपादक बनने से सत्ता द्वारा दिये जाने वाले दुख को न सह पाने की कहानी पूरी पत्रकार बिरादरी को पता चले और कोई आगे से किसी अफसर के खिलाफ पोल खोलने वाली रिपोर्ट न लिख सके। ....


शीलेश का मोबाइल नंबर है- 09335246749 और इस नंबर पर जब शीलेश से बात हो रही थी तो मैंने उनसे ढेरों सवाल किये, मामले के बारे में जाना। उन सारी बातों को यहां दे पाना मुमकिन नहीं हो रहा है। लेकिन मैं सभी साथियों से अपेक्षा करूंगा कि वो वक्त निकालकर शीलेश से बात करें और उन्हें अपना समर्थन और भड़ास का समर्थन प्रदान करें। शीलेश की अंतिम बात को यहां कोट करते हुए मैं अपनी बात खत्म करना चाहूंगा..

...वे लोग जानबूझकर लखनऊ के इस मामले को कानपुर कोर्ट ले गए, बाद में धांधली करके हाईकोर्ट के एक आदेश को मेरे वकील तक पहुंचने ही नहीं दिया। ढेरों ऐसी चीजें हो रही हैं जिसको देखते हुए समझ नहीं पा रहा कि आखिर ये लोग क्या मुझे पागल करके छोड़ेंगे, या आत्महत्या करने देने के लिए मजबूर कर रहे हैं। अगर ऐसा ही है तो मुझे पूरे परिवार के साथ आत्महत्या कर लेना चाहिए क्योंकि मैं जब अपने परिवार को सुरक्षा नहीं दे और दिला सकता और वे भय में जीने को मजबूर हैं तो फिर इस नरक को भोगने से अच्छा है खुशी खुशी जान दे दिया जाये।

उन लोगों का मैं दिल से आभारी हूं, जो मेरा दर्द समझ पा रहे हैं, मेरी दिक्कतें को महसूस कर पा रहे हैं। ढेर सारे मित्र ऐसे हैं जो इस आड़े वक्त में अपना मुंह फेरे हुए हैं। बस, आप लोगों से गुजारिश है कि आप लोग इस मामले को अपने अपने स्तर से उठाएं ताकि मुझे खत्म करने की मंशा पाले लोगों को मेरे मरने के बाद भी तो यह एहसास हो सके कि एक पत्रकार संपादक चाहें मरे या जिये, उसकी लिखी बात, उसकी कही बात, कभी नहीं मरती। सोचता हूं, यार इतना क्यों परेशान कर रहे हो, मार दो गोली, कर दो खत्म काम। इससे ज्यादा आखिर तुम क्या कर लोगे।....(इतना कहकर शीलेश रुवांसे हो जाते हैं)


दोस्तों, मैं शीलेश की स्थिति के बारे में उनके मुंह से यह सब जानकर सदमे की स्थिति में हूं।

सच में, आप कैसे आनंदित रह सकते हैं, सहज हो सकते हैं, भड़ास निकाल सकते हैं, जब घर और गांव में आग लगी हुई हो। पड़ोस से चीखें आ रही हों तो आप कैसे ठहाके लगा सकते हैं। सामने कई आत्माएं बिलख रही हों तो कैसे आह्लादित हो सकते हैं। पर क्या कहा जाए, इसी लोकतांत्रिक उलटबांसी में जीने के आदी हो गए हैं।

सब कुछ जानते-सुनते हुए भी अपनी आत्मा को मारकर जीने, बकचोदी करने, दांत चियारने, इंटीलेजेंट साबित करने, सबसे अलग साबित करने, धनी और शहरी दिखाने, बड़ा आदमी बनने, सीनियर कहे जाने, पैसा और पद बढ़वाने के चक्कर में पूरी ऊर्जा झोंके पड़े हैं। आने वाली पीढ़ी को भी यही सिखा रहे हैं- प्रैक्टिकल बन, बाजार को समझ, सीरियस और मेच्योर बन, आदर्शवाद छोड़...आदि आदि। अबे साले, सही बात ते ये है कि असल में तू बर्बाद है, फिर बाकी सबको क्यों बर्बाद कर रहा है। भाई, तू अपनी मरा, दूसरों को उनका जीवन जीने के लिए छोड़ दे। वो मुश्किलें बुला रहा है तो दरअसल वो जीवन जीने के लिए नए दरवाजे खोल रहे हैं। तू तो बंधी बंधाई लीक पर चलने को पैदा हुआ है। केवल बकचोदी करने के लिए।

और यही सब करते हुए, हिप्पोक्रेटों की मंडली अपने आरामगाह में खरामा खरामा जी खा हग मूत रही है।

शीलेश प्रकरण हम हिंदी मीडियाकर्मियों के लिए एक चुनौती है।

अपील
मैं सभी ब्लागरों और दोस्तों से अपील करूंगा कि वो शीलेश की तस्वीर यहां से उठाएं, शीलेश के मोबाइल नंबर, जो उपर लिखा है, पर बात करें और अपने-अपने ब्लाग पर पोस्ट डालें, ताकि शीलेश प्रकरण की ब्लागिंग के जरिये पूरी दुनिया में गूंज हो सके। यह हम मीडियाकर्मी ब्लागरों की परीक्षा है। शायद हम अपनी ब्लागिंग की ताकत का एहसास करा सकें। और जो भी साथी इसे पढ़े वो अपने स्तर पर जो हो सके, शीलेश की मदद करने को आगे आए और इस बारे में कोई प्रगति दिखे तो उसे पोस्ट करे। क्योंकि, हमारे आपके थोड़े कष्ट आने वाली पीढ़ियों के लिए राह आसान कर सकती है।


इसे यूं भी कह सकते हैं......

कुछ आप भी करें,
थोड़ा हम भी बढ़ें,
साथी,
बन जायेगी टीम,
बढ़ जाएगा हौसला,
वो जो अकेल लड़ रहे हैं
सत्ता और सभ्यता से जंग
उन्हें लगने ना देंगे
कि उस धुर अंधेरे में
जब वो रोशनी मांग रहे थे
तभी, अंधेरे के दैत्यों ने
चुपचाप लेकिन सरेआम
उनकी आंखें छीन लेने को
बढ़ा दिए थे दैत्याकार पंजे
और हम सब अपनी आंखें
बचाने को अंधेरे में भी
चेहरे को हाथ से ढके बैठे थे
पर रोशनी तो चाहिए साथी
ताकि हमारे नन्हें जान सकें
आसमान, पहाड़, संगीत
हंसी, रोशनी, प्रेम, खुशी
आजादी, आह्लाद और आंखें
जैसे शब्दों के होने के अर्थ


जय भड़ास
यशवंत

((पत्रकार शीलेश त्रिपाठी के बारे में इससे पहले दो पोस्टें भड़ास पर प्रकाशित हो चुकी हैं, बैकग्राउंड जानने के लिए इन हेडिंग पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं.... पत्रकार ने मांगी राष्ट्रपति से मौत और शीलेश की ज़िंदगी के लिए हम सब एक जुट हैं))

2 comments:

शशिश्रीकान्‍त अवस्‍थी said...

yas bhhai aapke aadesh ka palan karte hue Silesh Triphati (ST) se bbat ke who bhahut hi sad dhikhe but ladai jaari rakhne ke liye aabhi bhi redey hai. hamne unko bharaosa dilya ki oh apni is ladai me aakeley nahi nahi hum sab unke saat hai. oh 1 feb. ko kanpur aa rahie hai Hum unke saat honge. meri shabhi bhailya se aapel hai ki oh ST ko is ladiy me uska satth de. Thanks.
Kanpur se
SHASHIKANT AWASTHI

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा,आज फ़िर आपकी तबियत ठीक हो गयी है जो आपने शीलेश की पीड़ा को बताना शुरू किया वरना दो दिन तो आप बीमार हो गये थे और पानी में रह कर मगर से बैर ना करने की सलाह देने लगे थे । भड़ास के पीछे आपकी क्रांतिधर्मी सोच ही है जो हमारे जैसे लोगों को भड़ास से जोड़े हुए है वरना ये कोई उगालदान नहीं है कि आया और उल्टी करके चल दिया । हम सब राष्ट्र के प्रति रचनात्मक सोच ही तो रखते हैं और अगर यह किसी को बुरा लगेगा तो उसकी किसे परवाह है फ़ाकाकशी में जी लेंगे पर ऐसे लोगों के आगे सिर न झुकाएंगे । जस्टिस सिंह को भी मत भूलिए वह मामला तो न्यायपालिका का है इस लिहाज से अधिक संवेदनशील है ।
जय भड़ास...........