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23.7.08

मौजा ही मौजा

केंद्र की सरकार बच गई । कैसे बची यह एक बड़ा सवाल है । कौन कितने में बिका ? किसका ईमान तीन करोड़ में बिका , किसने तीस करोड़ में अपने बिचार बदले आज सब के सामने है , पर शर्मिंदगी की बात यह है की क्या हमें ऐसे लोग नहीं मिलते जो संजीदगी से हमारे हित में सोचे । खैर हम ऐसे लोगो को चुनते है जो हमारी वोट से सालो साल मौजा ही मौजा करते है ? और हम मुर्ख पॉँच सालो तक उनका इंतज़ार करते हैं ।

3 comments:

Anonymous said...

भाई,

जिसने बचना था वो बच गया रही बिकने की बात तो गुरू जी, हमारे देश के लोकतन्त्र की यही तो खासियत है, यहां के चारो पाये न्यायपालिका, कार्यपालिका, व्यवहारपालिका तो बिके हुए हैं ही, मगर अदभूत जनता ओर इन तीनो पाये के बीच कि कडी जो सब के कार्यों से हमें अवगत कराती है सबसे ज्यादा बिकाउ है।
मगर टीका टिप्पनीकार है।


जय जय भडासी

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

असल में कोई साला हम भड़ासियों को खरीदने को तैयार नहीं होता इस बात की खिसियाहट है :)

Unknown said...

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