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30.8.08

क्या बिहारी समाज एक करुर समाज है?

बिहार में बाढ़ की त्रासदी अपरिहार्य तौर पर एक बड़ी वीपत्ती है. सरकारी सहायता की कमी, नेपाल से पानी छोड़े जाने की जानकारी पहले से नहीं मुहिया करना से लेकर राजनैतिक पारट्रियो की आपसी रश्सा कशी निंदनीय है. लेकिन इस बीच एक बड़ा प्रश्न खुद बिहारियो के आचरण को लेकर है. जो खबरे आरही है उसके मुताबिक गरीब और कमजोर लोगो के साथ बाहुबल बहुत अत्याचार कर रहे हैं. साथ ही चोर भी अपना हाथ साफ कर रहे हैं.

सरकारी अमले द्रवारा बाढ़ में फंसे गरीब लोगो को बाहार निकालने मे दोहरा पैमाना अपनाया जारा है. उन्हे मरने के लिए छोड़ दिया गया है. उनके नाव को छीन लिया गया है. साथ ही उन इलाको की तरफ जाने वाली नावो को भी रोक कर अमीर अपनी दादागिरी देखा रहे है. गरीब सहायता के लिए तरस रहे हैं. लेकिन हम उन्हे मरने के लिए छोड़ कर अपने को एक बहादुर कोम साबित करने मे लगे हुऐ है. वाह रे बिहारी मानवता.

सबसे दुखद पहलु यह है कि इस बुरे वक्त में लोग सुरक्षित स्थान की तरफ जा रहे लोगो के सामान की चोरी भी कर रहे हैं जोकि एक करुर बिहारी समाज की झलक पैश कर रहा है. इस विपत्ती के समय हमें अपने बुरे आचरणो को भी देखना चाहिए.

शाद आप को लेगो को लगे के किसी एक घटना के बाद पुरे समाज को सवालो के कटघरे मे डालना कहॉ का इन्साफ है तो मै आप को बता दु के इस से पहले भी हमने ऐसी ही हरकते बिहारी समाज में देखी हैं.

मैं अपने बचपन के समय को याद करता हुँ तो भी एक कुरुर बिहार की छवी ऊभरती है. मुझे याद पड़ता है कि मेरे गाँव मे आग लगी थी गाँव के बड़े आग पर काबु पाने की कोशिश कर रहे थे जबकि कुछ लोग अपने अपने घरों से सामान बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे. इस काम मे महिलाए भी उनकी सहायता कर रही थीं. लेकिन इस बीच सबसे दुखद घटना यह घटी के जिस सुरक्षित स्थान पर सामान लाकर रखा जारहा था वहाँ से सामान गायब हो रहे थे आप अन्दाजा लगा सकते है कि यह सामान अपने आप तो गायब नही हो रहे थे. जी यही हमारा समाज है.

3 comments:

Shambhu Choudhary said...

आजाद जी,
आपके विचार समस्त बिहारी समाज को दोषी ठहराने जैसी बात स्पष्ट हो रही है। हर समाज में कुछ बुरे लोग होते हैं। ये बिहारी समाज का दोष नहीं हमने इस समाज का भरपूर शोषण किया है। मजे की बात है कि राजनेताओं ने भी इसका काफी दोहन किया है। गरीबी क्या नहीं करा देती है। कोसी के इस संकट के लिये सरकार की इच्छा शक्ति की कमी ही नजर आ रही है, यह जो घटना हुई है एक दिन में नही घटी है। एक ह्फ्ते से ये दृश्य देखने को मिल रहा है। सरकार के पास काफी समय था इस स्थिति को नियत्रंण करने के लिए, पर सरकार हाथ पे हाथ धरे बैठी रही। अभी वक्त है हम किस तरह औनको मदद पहूँचा सके। अमीरी-गरीबी के प्रश्न पर बात में हम बहस कर लेंगे।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मैं निजी तौर पर आपसे सहमत नहीं हूं जबकि मैं बिहार से संबद्ध नहीं हूं क्योंकि किसी क्षेत्र की जमीन और वहां के कमीने लोगों की फ़ितरत का आपस में कोई सीधा संबंध नहीं होता है, हरामी किस्म के लोग हर जगह पाए जाते हैं बस बात इतनी है कि आपके सामने कौन आया.....

Anonymous said...

मित्रवर,
बिहार और बिहारी की सबसे बड़ी त्रासदी यही रही है की विभीषण हमारे घर में ही रहे, जयचंद की कमी हमारे यहाँ नही रही है, ताज्जुब और दुखी करने की बात यहाँ तक की बिहारियों को अपने आप पर शर्म आती है क्यूंकि वे बिहारी हैं. हम इसके लिए किसी को जिम्मेदार नही ठहरा सकते क्योंकि इस स्थिति के लिए जवाबदेह भी हमही हैं. लोगों में विभिन्नता सभी जगह होती है मगर बिहार और बिहारी की छवि और कार्य के लिए जिम्मेदार भी वो ही तबका है जो बिहार से बहार आने के बाद स्वयम भू बुद्धिजीवी वर्ग में शामिल हो गया. नही तो इतिहास गवाह है की एतिहासिक समृद्धि में बिहार सारे प्रान्त पर बीस नही बल्कि चौबीस पड़ता है सो महानुभाओं कृपया अपने संस्कारानुसार कार्य करें और बदलते भारत की तस्वीर में शामिल हों, दोष मढ़ने का कार्य जिनका है करने देन क्यूंकि विकाश में बकचोदी करने वालों का कोई योगदान नही होता है.
जय जय भड़ास