Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

20.8.08

तोरी मरजी है क्या बता दे बिधना रे...

मशहूर पत्रकार, ब्लागर और अब फिल्म निर्देशक पंकज शुक्ल इन दिनों अपनी फिल्म भोले शंकर के निर्माण के बारे में अपना पूरा अनुभव अपने एक नए ब्लाग क़ासिद पर लिख रहे हैं। उन्होंने एक मेल के जरिए अनुरोध किया....बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म भोले शंकर की मेकिंग इन दिनों मैं अपने ब्लॉग पर लिख रहा हूं, कृपया सुझावों और टिप्पणियों से अवगत कराएं। तो मैंने सोचा कि मैं अकेले क्यों सुझाव और टिप्पणियां दूं, क्यों न सारे भड़ासियों को इस शुभ काम में शामिल किया जाए। इसी उद्देश्य से पंकज के ब्लाग क़ासिद से साभार एक पोस्ट यहां डाल रहा हूं और आप सभी से उम्मीद करता हूं कि पंकज भाई के ब्लाग क़ासिद पर जाकर उनके अनुभवों से दो चार हों।
यहां यह बता दें कि पंकज भाई अपने जैसे ही सामान्य परिवार और ठेठ हिंदी पृष्ठभूमि के साथी हैं। आज वो जहां पर हैं, उसमें किसी गाडफादर का कोई हाथ नहीं है। वे सिर्फ अपनी प्रतिभा और अपने दम पर आगे बढ़ते चले गए। उनसे हम सभी को प्रेरणा मिलती है।
बरेली में अमर उजाला से करियर की शुरुआत की और पत्रकारिता में अपने मेहनत के बल पर धीरे-धीरे बढ़ते चले गए। वे अमर उजाला, कानपुर में भी रहे। इसके बाद दिल्ली आए। प्रिंट से इलेक्ट्रानिक मीडिया की ओर मुखातिब हो गए उसके बाद मीडिया की दुनिया को छोड़कर मायानगरी की ट्रेन पकड़ ली। वहां फिल्म बनाने का जो सपना देखा था, उसे उन्होंने अपनी प्रतिभा, अपने संघर्ष और एक जूनून के जरिए पूरा कर दिखाया। भोले शंकर फिल्म की रिलीज का इंतजार हम सभी भड़ासियों को है। इस फिल्म के पांच सौ टिकट तो हम भड़ासी खरीदेंगे ही।
पंकज भाई से बस एक अनुरोध है कि अगर अगली फिल्म कोई प्लान कर रहें हों तो उसमें मुझे और डा. रूपेश श्रीवास्तव को विलेन और उसके गैंग का रोल जरूर दे दें वरना....जानी, हम भड़ासी बड़े खूंखार और बदनाम लोग हैं। हम पत्थर से तेल और तेल से पत्थर निकालना जानते हैं.....:)
-यशवंत
---------------------------------------------------------------------------
भोले शंकर (7)
गतांक से आगे..



मनोज तिवारी ने "भोले शंकर" में कुछ और भी बहुत उम्दा गीत गाए हैं। लेकिन, मनोज तिवारी और मोनालिसा पर फिल्माया गया रोमांटिक गीत - "केहू सपना में अचके जगा के" प्यार में खोए प्रेमियों के लिए सावन की फुहारें लेकर आएगा। और, इस गीत में मनोज तिवारी के लिए अपनी आवाज़ दी है मशहूर गायक उदित नारायण ने। अगर फिल्म में मेरे फेवरिट गाने की बात करें तो मुझे पसंद है फिल्म का वो विरह गाना जो पूनम ने गाया है।

सारेगामापा फाइनलिस्ट रहीं पूनम की निज़ी ज़िंदगी के बारे में सुनकर मैंने अपनी पत्नी को कई बार घर में रोते देखा है। पूनम को प्लेबैक सिंगिंग के लिए कई लोगों ने वादे किए, लेकिन कितने पूरे हुए, इस बारे में ना तो कभी ज़ी टीवी ने कुछ भी बताने की कोशिश की और ना ही कभी मीडिया में कहीं कोई चर्चा सुनाई दी। पूनम का आवाज़ में दर्द बहुत है, कुछ तो जीवन के संघर्ष का और कुछ उसकी आवाज़ पर ऋचा शर्मा का असर का। "भोले शंकर" के संगीत पर चर्चा के दौरान ही मैंने पूनम का नाम उस गाने के लिए संगीतकार धनंजय मिश्रा को सुझाया, जो फिल्म का टर्निंग प्वाइंट है। भोले की बचपन की दोस्त पारवती की पूरी जवानी की कहानी इस गाने में दूसरे सिरे पर पहुंच जाती है। पूनम की गायिकी के बारे में बात करने से पहले कुछ बातें इस गीत को लिखने के बारे में भी बताता चलूं।

गीतकार बिपिन बहार ने जितनी मेहनत फिल्म के ओपनिंग सॉन्ग "रे बौराई चंचल किरनिया" के लिए की है, उससे कम मेहनत इस गाने के लिए भी नहीं हुई। मैंने बिपिन को समझाना शुरू किया। धनंजय मेरा मुंह ताक रहे हैं। मैंने बिपिन को बताया, "पारवती ने बस अभी अभी भोले को बरसों बाद देखा है। भोले बचपन में शहर जाते समय लड़कई में उससे बोले जाता है, "ए पारवती, जब हम पढ़ लिख लेम, त तोहरा से बियाह करब"। बस पारवती उसी दिन से भोले की याद में गुम है। भोले लौटता है, तो पारवती के घर पर उसकी शादी कहीं और किए जाने की बात चल रही है। दोनों संस्कारी घरों से हैं और जैसा कि अक्सर गांवों में होता है, दोनों में से कोई घरवालों का विरोध नहीं कर पाते। पारवती की शादी तय हो चुकी है। वो रात के अंधेरे में भगवान से अपने दिल का दर्द सुना रही है। गाने का ये पहला हिस्सा है। दूसरे हिस्से में आते आते हमें पारवती की शादी होते हुए दिखानी है। और तीसरे हिस्से में हमें पारवती की विदाई दिखानी है। शॉट कुछ यूं होगा कि कैमरा गांव से बाहर निकलती डोली को कैच करता है, उसे फॉलो करते हुए आगे बढ़ता है और जैसे ही डोली फ्रेम से आउट होती है, कैमरा पैन करते हुए दूर एक टीले पर खड़े भोले को कैच करता है। भोले वहां पारवती को दिलासा देने वाला गाना गा रहा है।

"बिपिन बहार पूरा नरेशन सुनने के बाद आधा घंटा तक कुछ बोले नहीं। फिर बोले, "भइया, इ कइसन होई।" मैंने कहा, "काहे ना होई।" मैंने पूरे गाने का स्टोरी बोर्ड बिपिन को फिर से समझाया। इस बार एक एक एक्शन और उसके भाव के साथ में। अब तक शांत बैठे रहे धनंजय मिश्रा के चेहरे के भाव इस बार बदलने लगे। उनके हाथों में जुंबिश हुई और मुंह से कुछ राग निकले, और साथ ही निकला गाने का पहला बोल- "तोरी मरजी है क्या, बता दे बिधना रे...., काहे मोरा पिया ना मिला...ना मिला रे...काहे मोरा पिया ना मिला।" बस इसके बाद तो जैसे बिपिन बहार को राह मिल गई। भाई ने तीन दिन में गाना लिख डाला। लेकिन आखिरी हिस्से पर आकर वो अब भी अटके हुए थे। बोले, "भइया इ बताइं, भोले को पारवती से प्यार था कि नहीं।" मैंने कहा, "जिस उमर में हमने भोले और पारवती को साथ खेलते दिखाया। उस उमर में बच्चे प्यार का मतलब समझते हैं क्या? गांव की लड़की है, बस किसी सयाने पर दिल हार बैठी। लेकिन भोले को इसका इल्म तक नहीं। हां, मां कुछ इशारा करती है तो बात उसकी समझ में आती है। लेकिन तब तक देर हो चुकी है। तो भोले क्या गाएगा?" बिपिन बहार फिर चुप, "भोले क्या गाएगा?"दो दिन तक माथा पच्ची चलती रही। और फिर निकले बोल- "किस्मत ना बा अपना हाथ में, खुश रहे तू सजनवा के साथ में।"

मनोज तिवारी वैसे तो उछल कूद वाले गाने ही खूब गाते हैं, लेकिन फिल्म में मैंने उनसे दो जगह दर्द भरे नगमे गवाए हैं। पहला तो ये और दूसरा जब वो मुंबई में होते हैं और ज़िंदगी के सबसे बड़े इम्तिहान से दो चार होते हैं। और मेरा वादा है कि मनोज तिवारी की आवाज़ का इतना बेहतरीन इस्तेमाल अभी तक उनकी किसी फिल्म में नहीं हुआ है। जिस गाने की ऊपर हम बात कर रहे हैं, उसकी शुरुआत पूनम के गाने से होती है। लखनऊ की इस लड़की को अपनी फिल्म में मौका देकर एक तरह से मैंने और धनंजय ने उत्तर प्रदेश के कलाकारों को बढ़ावा देने की अपनी अघोषित नीति को आगे बढ़ाया और पूनम ने भी अपना दिल उड़ेल कर रखा दिया है इस गाने में। गाने के बोल बहुत मार्मिक हैं और इतना ही मार्मिक है इसका पिक्चराइजेशन। पूनम तुम यूं ही जगमगाती रहो।

वैसे एक दिलचस्प बात भी आपको मैं बताना चाहता हूं। जैसा कि गांव- गलियों की लड़कियों के साथ अक्सर होता है, वैसे ही पूनम भी अब तक मुंबई की चकाचौंध देखकर घबरा जाती हैं। स्टूडियो में रिकॉर्डिंग की बात चलते ही नर्वस हो जाती हैं। ऐसे में संगीतकार के हाथ पांव फूलने ही लगते हैं। मैंने दोनों को हिम्मत बंधाई और तब जाकर ये गाना रिकॉर्ड हुआ। मौली और उज्जयनी की बात अब भी रह गई, खैर इन दोनों नगीनों की बात कल पक्की रही।

कहा सुना माफ़,

पंकज शुक्ल
निर्देशक-भोले शंकर

(साभार-पंकज शुक्ल के ब्लाग क़ासिद से)

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

जानी, हम भड़ासी बड़े खूंखार और बदनाम लोग हैं। हम पत्थर से तेल और तेल से पत्थर निकालना जानते हैं.....:)
चमचों का रोल मत देना क्योंकि तेल लगाना नहीं जानते....:)