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16.12.08

कबीर दास के बारे में कुछ नए तथ्य

विनय बिहारी सिंह

कबीर दास २४ घंटे ईश्वर के साथ रहते थे। जब वे कपड़े बुनते थे तब भी। बाजार जाते थे, तब भी। कैसे? वे हर काम ईश्वर को सौंप देते थे। यह साधारण व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। साधारण व्यक्ति हर क्षण ईश्वर चिंतन नहीं करता। कई बुरे विचार भी उसके दिमाग में आ जाते हैं। बुरे विचार ईश्वर को कोई कैसे सौंप सकता है? कोई सच्चा साधक ही हर काम ईश्वर के अधीन मान कर, खुद को ईश्वर का एक यंत्र मान कर भक्ति में मग्न रह सकता है। कबीर दास ने अपने मन को साध लिया था। वे कपड़े बिकने का हिसाब लगा रहे होते थे तो भी कहते थे- उसकी (ईश्वर की) कृपा से आज इतनी बिक्री हुई। जो आमदनी होती थी उसी संतोष कर लेते थे और जो साधु संत अतिथि के रूप में आते थे उनका सत्कार भी करते थे। लेकिन इसके लिए वे जम कर मेहनत करते थे। ज्यादा से ज्यादा कपड़े तैयार करते थे। हर वक्त भजन गाते रहते थे। वही भजन आज हम साखी, सबद और रमैनी के रूप में पढ़ रहे हैं। उनके शिष्य उसे नोट कर लेते थे और सुरक्षित रख लेते थे।
बाद के दिनों में कबीर दास ने कपड़े बुनना लगभग छोड़ ही दिया था। वे दिन रात भजन कीर्तन में लगे रहते थे। साधु सेवा, सत्संग या एकांत में बैठ कर ध्यान। अंतिम समय में वे मगहर चले गए। लोगों की मान्यता थी कि काशी में प्राण त्यागने पर स्वर्ग मिलता है। वे बहुत दिनों तक काशी में रहे। लेकिन जब उन्हें लगा कि उनका शरीर छोड़ने का समय आ गया है तो वे मगहर चले गए। वहां उनकी समाधि आज भी है।
लेकिन हाल ही में एक और तथ्य सामने आया है। मगहर में जब उनके शिष्यों में झगड़ा हुआ कि उन्हें दफनाया जाए या हिंदू रीति से जलाया जाए तो एक शिष्य ने अचानक उनका कफन उठा कर देखा कि कबीर दास का शव है ही नहीं। उसके बदले फूल ही फूल हैं। उसी का बंटवारा कर दिया गया। आधे को दफनाया गया और आधे को हिंदू रीति से जलाया गया। उसी दिन कबीर दास जी को मध्यप्रदेश में एक जंगल के किनारे नर्मदा स्नान करते हुए कई लोगों ने देखा। यह भी मान्यता है कि कई वर्षों तक वहीं वे अपनी साधना करते रहे। आज भी नर्मदा के किनारे कबीर दास जी की समाधि है।

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