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13.1.09

सरकारी बाबू चैनल के लिए फुटेज पास करेंगे और ये तय करेंगे कि क्या दिखाइए, क्या मत दिखाइए !

सभी न्यूज चैनलों का माई बाप सरकार ही है। आपको यकीन नहीं हो रहा होगा, लेकिन केंद्र सरकार तो यही चाहती है और इसकी बाकायदा साजिश रच चुकी है। मीडिया पर सेंसर लगाकर सरकार उसे अपना पालतू बनाना चाहती है। अपने इशारे पर नचाना चाहती है। केंद्र सरकार ऐसा कानून बनाने की साजिश रच रही है, जिसमें जनता की आवाज बंद हो जाएगी। नाइंसाफी के खिलाफ जनता आंदोलन करेगी, लेकिन टीवी चैनल उसे दिखा नहीं पाएंगे। सरकारी बाबू चैनल के लिए फुटेज पास करेंगे और ये तय करेंगे कि क्या दिखाइए क्या मत दिखाइए। इमरजेंसी के वक्त भी प्रेस की आजादी पर हमला हुआ था, लेकिन वो सिर्फ कलम पर पहरा था, लेकिन मनमोहन सरकार तो आम जनता की आंखों में पट्टी बांधकर उसे अंधा करने की साजिश रच रही है। इमरजेंसी के नाम पर पत्रकारिता की आत्मा को रौंदने की ये सरकारी कोशिश परवान न चढ़ पाए, इसकी जंग शुरू हो चुकी है। इससे पहले सरकार इस तालीबानी फरमान को कानूनी जामा पहना सके, उसकी कलई खुल गई है। देश के सभी पत्रकार सरकार की इस साजिश के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। टीवी चैनलों के मुखिया भी इस मुद्दे पर मुखर हो गए हैं। पेश है कुछ संपादकों की राय--

मीडिया का गला घोटने की कोशिश : अजीत अंजुम
सरकार का इरादा टीवी चैनलों को रेगुलेट करना नहीं उन्हें अपने काबू में करना है ताकि कभी को ऐसी खबर जिससे सरकार की सेहत पर असर पड़े, चैनलों पर न चल पाए। अगर टीवी न्यूज चैनलों से मुंबई हमलों के दौरान कोई चूक हुई तो उसे सुधारने के लिए और भविष्य में ऐसी चूक न हो इसके लिए एनबीए ने अपनी गाइडलाइन जारी कर दी है। सभी न्यूज चैनलों के संपादकों के साथ बातचीत करने के बाद एनबीए आथारिटी के चेयरमैन जस्टिस जेएस वर्मा ने सेल्फ रेगुलेशन का ये गाइडलाइन लागू कर दिया है। फिर भी सरकार चैनलों सेंसरशिप की तैयारी कर रही है। ये मीडिया का गला घोंटने की कोशिश है। इसे नहीं मंजूर किया जाना चाहिए और जिस हद तक मुमकिन हो इसका विरोध किया जाना चाहिए, वरना वो दिन दूर नहीं जब कोई सरकारी बाबू और अफसर नेशनल इंट्रेस्ट के नाम पर किसी भी न्यूज चैनल की नकेल कसने में जुट जाएगा। फिर कभी भी गुजरात दंगों के दौरान जैसी रिपोर्टिंग आप सबने टीवी चैनलों पर देखी है, नहीं देख पाएंगे। कभी भी सरकार या सरकारी तंत्र की नाकामी के खिलाफ जनता अगर सड़क पर उतरी और उसकी खबर को तवज्जो दी गयी तो उसे नेशनल इंट्रेस्ट के खिलाफ मानकर चैनल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर दी जाएगी। हर सूबे और हर जिले का अफसर अपने -अपने ढंग से नेशनल इंट्रेस्ट को परिभाषित करेगा और अपने ढंग से इस्तेमाल करके मीडिया का गला घोंटेगा। ( अजीत अंजुम न्यूज़ 24 के सम्पादकीय प्रमुख हैं)


जागो, नहीं तो देर हो जाएगीः मिलिंद खांडेकर
सेंसर का नाम आपने बहुत दिनों से नही सुना , लेकिन इस सरकार के इरादे ठीक नही लगते अभी सिर्फ़ टीवी को रेगुलेट करने के नाम पर कानून बनाने की बात हो रही हैं। कानून का मतलब ये हुआ कि सिर्फ़ मुंबई जैसे हमले ही नही बल्कि गुजरात जैसे दंगो का कवरेज भी वैसे ही होगा जैसे सरकार चाहेगी। न तो हम अमरनाथ का आन्दोलन टीवी पर देख पाएंगे न ही पुलिस के जुल्म की तस्वीरें क्योंकि नेशनल इंटरेस्ट के नाम पर कुछ भी रोका जा सकता हैं । नेशनल इंटरेस्ट वो सरकार तय करेगी जो मुंबई में हमला नही रोक सकी।बात अगर टीवी से शुरू हुई हैं तो प्रिंट और इन्टरनेट तक भी जायेगी। अभी नही जागे तो बहुत देर हो जायेगी। (मिलिंद खांडेकर स्टार न्यूज के डिप्टी मैनिजिंग एडिटर हैं)

प्रेस की आजादी पर हमला-सतीश के सिंह
आजाद भारत के इतिहास में प्रेस की आजादी पर इससे बड़ा अंकुश लगाने की, इससे बड़ी कोशिश कभी नहीं हुई। सरकार न सिर्फ टीवी बल्कि प्रिंट और वेब मीडिया पर भी अपना अंकुश लगाना चाहती है। सरकार की ये कोशिश किसी मीडिया सेंसरशिप से कम नहीं है। प्रेस के लिए बाकायदा कानून हैं। अगर कोई विवाद की स्थिति होती है तो संस्था और पत्रकारों पर मुकदमे चलते ही हैं, लेकिन सरकार अब जो करने की कोशिश कर रही है वो प्रेस की आजादी पर हमला है, फंडामेंटल राइट्स के खिलाफ है। (सतीश के सिंह जी न्यूज के एडिटर हैं)


सरकार इतनी जल्दी में क्यों हैः आशुतोष
इस रेगुलेशन से सरकारी मंशा पर सवाल खड़े होते हैं..। क्योंकि टीवी चैनल पर कुछ दिनों पहले ही पूर्व चीफ जस्टिस जेएस वर्मा के नेतृत्व में एक इमरजेंसी गाइड लाइन बनाई गई थी। सारे चैनलों ने इसे लागू करने की बात भी कही थी, लेकिन सरकार ने इस इमरजेंसी गाइडलाइन को ही सिरे से नकार दिया, जबकि सरकार को इस गाइडलाइन के तहत चैनलों को काम करने देना चाहिए, जो उसने नहीं किया। सवाल ये है कि सरकार इतनी जल्दी में क्यों है? वो सेल्फ रेग्यूलेशन के खिलाफ क्यों है? ये एक बड़ा सवाल है। (आशुतोष आईबीएन 7 के मैनेजिंग एडिटर हैं)

चौथे खंभे को धराशायी करने की साजिशः सुप्रिय प्रसाद
लोकतंत्र के सबसे चौथे खंभे को उखाड़ने की कोशिशें सिर उठा रही हैं। इस खंभे को कमजोर करने की कोशिश कोई दुश्मन नहीं कर रहा है। मीडिया पर सरकारी सेंसरशिप थोपकर केंद्र सरकार उसे नख दंतविहीन बना देना चाहती है। अपने हक की लड़ाई लड़ रही जनता पर अगर सरकारी दमन हुआ और उसके फुटेज आपके पास हैं तो उसे आप दिखा नहीं पाएंगे। मुंबई पर हुए हमलों की कवरेज का बहाना बनाकर सरकार अपना छिपा एजेंडा लागू करना चाहती है। वो न्यूज चैनलों को अपना गुलाम बनाना चाहती है। अगर सरकार अपनी मंशा में कामयाब हो गई तो कोई दावा नहीं कर पाएगा कि सच दिखाते हैं हम। क्योंकि सच वही होगा, जो सरकार कहेगी। आपके फुटेज धरे के धरे रह जाएंगे। दंगा हो या आतंकवादी हमला। इमरजेंसी की हालत में सरकारी मशीनरी ज्यादातर मूक दर्शक बनी रहती है। सरकार चाहती है कि मीडिया भी उसी तरह मूक दर्शक बनी रहे। हाथ पर हाथ धरे तमाशा देखती रहे। ये वक्त हाथ पर हाथ धरकर बैठने का नहीं है। मीडिया पर सेंसरशिप लगाने की इस साजिश को नाकाम करने का वक्त है। (सुप्रिय प्रसाद न्यूज 24 चैनल के न्यूज डायरेक्टर हैं।)


पाक मीडिया हमसे ज्यादा आजादः विनोद कापड़ी
सबसे ब़ड़ा सवाल ये है कि सरकार पर नजर रखने के लिए मीडिया बनी है या मीडिया पर नजर रखने के लिए सरकार बनी है। मीडिया का काम ही यही है कि वो सरकार पर नजर रखे, जनता की बात जनता तक पहुंचाए, सरकार को बताए कि वो ये गलत कर रही है। लेकिन यहां तो स्थिति बिल्कुल उलटी हो चुकी है। सरकार मीडिया को बता रही है कि ये गलत है और ये सही है। किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसे सही नहीं ठहराया जा सकता। आप पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की हालत देखिए। कितनी अराजकता है, लोकतंत्र नाम की चीज नहीं है, लेकिन वहां का मीडिया हमसे ज्यादा आजाद है। हमारी सरकार को क्या ये नहीं दिखाई देता। मीडिया पर सेंसरशिप का सरकारी ख्याल कतई लोकतांत्रिक नहीं है। ये प्रेस की आजादी पर हमला है। (विनोद कापड़ी इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर हैं)

2 comments:

travel30 said...

in logo se puchiye to sahi aazadi ke naam par yeh log kya kya dikate hai?

new chilla kar bole janee se usmein nangi ladkiya dikahne se thode na jyada log dekhege.. lekin yeh log jante hai ki log dekhege aur yeh dikate ahi

travel30 said...

in logo se puchiye to sahi aazadi ke naam par yeh log kya kya dikate hai?

new chilla kar bole janee se usmein nangi ladkiya dikahne se thode na jyada log dekhege.. lekin yeh log jante hai ki log dekhege aur yeh dikate ahi