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25.2.09

बैचलर लाइफ .... कभी कभी खाना अच्छा बना लेता हूँ ....

कभी कभी खाना अच्छा बना लेता हूँ । उस दिन कुछ ज्यादा ही हो जाता है । पढ़ाई पर असर पड़ता है । चावल प्रिय है । खूब खाता हूँ । दिल्ली आने के बाद रोटियाँ भी तोड़ने लगा हूँ । चावल से पेट निकलने का डर भी रहता है । सो थोड़ा बहुत जोगिंग भी कर लेता हूँ ।आजकल रोटियां अच्छी नही लग रही । रोटी बनाने में भी बड़ा झंझट है । बनाने में मन ही नही लगता । चावल बनाना आसान है...... कुकर में पानी डालकर रख दो , एक सिटी के बाद बन गया । मार्केट से सब्जी लाओ और खा लो । इधर मेरा कुकर सिटी देना भूल गया है । अंदाज से ही काम चलाना पड़ता है ।बैचलर लाइफ है .... बढ़िया खाना कभी कभी नसीब होता है । चावल के साथ सब्जी होती है या दाल । तीनों का मिलन तो मुस्किल से ही होता है । जब कभी तीनों साथ होते है तो ओवर डोज की मुसीबत खड़ी हो जाती है ।अभी तो खाने के लिए नही जीता ....जीने के लिए ही कुछ खा लेता हूँ ।अरे मै बातों में कहा चला गया । फिसल जाना और उलटा सीधा सोचना आदत बन गई है । ये अच्छी बात नही है । अभी बहुत जोरों की भूख लगी है । चावल दाल बनाया हूँ । सोचता हूँ जल्दी से खा लूँ ............

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