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30.3.09

मुद्रास्फीति बनाम ‘वास्तविक’ महंगाई दर

हेमेन्द्र मिश्र
मार्च के दूसरे सप्ताह, यानि 14 मार्च को समाप्त हुए हफ्तेमें महंगाई दर ०.27 फीसद दर्ज की गई है। हाल के सप्ताहों में लगातार लुढ़क रहे इस आंकड़े की यह दर 1977-78 के बाद की सबसे कम है। दिलचस्प है कि लगातार गिर रहे महंगाई दर को अर्थशास्त्री भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं बता रहे जबकि सरकार इसे अपनी उपलब्घी गिनाने में लगी है।

पिछले साल की ही बात है जब इस महंगाई दर ने आम आदमी को खूब रूलाया था। कारण था इसका दहाई के अंक को पार कर जाना। लेकिन अब जब यह शून्य के पास पहुंच गई है तो क्या आम आदमी खुश है? मंहगाई दर में आ रही लगातार गिरावट लोगों उतना शुकून दे रही है जितनी शिकन उनके चेहरे पर पिछले साल थी?

विश्व बाजार में कच्चे तेल, धातु और खाने के सामानों के महंगे होने से पिछले साल महंगाई दर बढ़ी थी। तर्क यह दिए गए कि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल के दाम चढ़ गए है साथ ही अमेरिका जैसे देश जैविक ईंधन बनाने में खाद्य फसलों का उपयोग कर रहे हैं। हलकान हो रही जनता के सवाल पर घिरी सरकार ने भी आर्थिक सुधार पर जोर दिया और ब्याज दरों में कटौती शुरू की। सरकार इन्हीं सुधारों को महंगाई दर कम होने का कारण बता रही है। लेकिन अपनी पीठ थपथपाने से पहले शायद वह यह भूल गई कि बाजार में मांग नहीं रहने के कारण ही मंहगाई दर घट रही है।

आर्थिक विश्लेषकों की मानें तो महंगाई की यह दर अब जीरो या डिफलेशन की ओर बढ़ रही है। डिफलेशन वह अवस्था होगी जब उत्पादन तो होगा लेकिन बाजार में मांग नहीं होगी। ऐसी स्थिति में भी सामानों के सस्ते होने के दावे आम लोगों के लिए महज भुलावा ही साबित हांेगे।

दरअसल, हमारे देश में महंगाई दर मापने की नीति ही गलत है। हम थोक मूल्य सुचकांक के आधार पर इस दर को मापते है। कच्चे तेल, धातु जैसे पदार्थ इस थोक मूल्य में होते हैं। इनमें दैनिक जरूरत के सामान कम ही होते है । यही कारण है कि थोक स्तर पर सामानों के दाम कम होने पर भी इसका असर बाजार मूल्य यानि उपभोक्ता मुल्य पर नहीं दिखता। आंकडेबाजी की ही बात करें तो अभी भी उपभोक्ता मूल्य 10 फीसद के आस-पास है। पिछले सप्ताह भी फल, सब्जियों, चावल, कुछ दाल, जौ और मक्के की कीमत में ०।1 प्रतिशत की वृद्धि ही दर्ज की गई है। साथ ही मैदा, सूजी, तेल, आयातित खाद्य तेल और गुड़ भी महंगंे हुए हैं।

सरकार चाहेे तो चीजों की कीमतों और महंगाई की दर में स्पष्ट रिश्ता कायम कर सकती है। ‘सरकारी’ महंगाई दर और ‘वास्तविक’ महंगाई दर में तभी संबंघ बनेगा जब एक बेहतर आर्थिक नीति बनेगी और उपभोक्ता मूल्य के आधार पर महंगाई दर तय किया जाएगा।

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