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24.5.09

मत पूछ

बाज़ी चाहे या तूफ़ान है, दुनिया मेरे आगे
होता है शबो रोज तमाशा मेरे आगे
होता नेहा गर्द में सेहरा मेरे आगे
घिसता है जमीं खाक , दरिया मेरे आगे
मत पूछ की क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे
इमाम मुझे रोके है जो खींचे खर्फ़
काबा मेरे पीछे कलीसा मेरे आगे
दो हाथों को जुम्विश है आंखों में तो दम है
रहने दो अभी सागरों मीणा मेरे आगे
--------------मिर्जा ग़ालिब

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