Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

31.7.09

जननी भारत माता

जननी भारत माता

अंशलाल पंद्रे

जननी भारत माता......
तेरी जय जय ,तेरी जय जय
तेरी जय जय ,तेरी जय जय

रोज हैं खिलते गोद में तेरी , फूल हजारों ऐसे
अकबर, गांधी, भगत, जवाहर चांद सितारों जैसे
चांद सितारों जैसे


जननी भारत माता......
चाहे धर्म कोई भी हो ,हैं सब भाई भाई
मां भारत की हैं संताने , है सब में तरुणाई
है सब में तरुणाई

जननी भारत माता......
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम की आभा है न्यारी
भिन्न भिन्न भाषा औ प्रांतो की शोभा है प्यारी
की शोभा है प्यारी


जननी भारत माता.....
गंगा यमुना ब्रह्मपुत्र और कावेरी का पानी
पी हम पानी वाले करते दुश्मन पानी पानी
दुश्मन पानी पानी

जननी भारत माता......

मै पागल नही हूँ भाई

जी हा मै पागल नही हूँ । जब से मैंने अपने ७ साल के बेटे के विवाह के लिए लड़की खोजना शुरू किया है और इस ब्लॉग और http://uplivenews.blogspot.com/ पे आवश्यकता है बालिका बधू की के माध्यम से लोगे से यदि उनकी ६ साल तक की बिटिया हो तो अपने बेटे से विवाह के लिए अपील किया हु तब से मेरे जानने वाले मुझे फ़ोन कर यही पुछ रहे है की तुम पागल हो गए हो या भरी जवानी में सठिया गए हो । कुछ साथी जो वाकई मेरे व्यथा को समझ रहे है वे ये समझा रहे है की इस उम्र में बच्चे की शादी करोगे तो जेल की हवा खानी पड़ेगी और सामाजिक दृष्टी से भी ये ठीक नही है की ७ साल के बच्चे की शादी कर दी जाय ,लेकिन मै क्या करू मेरी भी मज़बूरी है ,मेरा एक ही लड़का है जो मेरे वंश को आगे बढ़ाएगा और वंश बढ़ने के लिए विवाह जरुरी है और जिस तरह देश में भ्रूण हत्या के कारन लड़कियों की संख्या लगातार कम होती जा रही है ऐसे में मुझे इस बात की चिंता सताए जा रही है की जब मेरा बेटा बड़ा होगा तब उसके लिए कोई लड़की मेलेगी भी या नही । ऐसे में अगर मै अपने बेटे की शादी के लिये अभी से लड़की खोज रहा हु तो इसमे ग़लत क्या है ,रही बात जेल जाने की तो हत्या बलात्कार करने वाले को जब हमारा कानून जेल नही भेज पा रहा तो मुझे भला कौन जेल भेजेगा ,भ्रूण हत्या करने जब कानून का खुलेआम मजाक बना रहे है तो वो कानून किस मुह से मुझे जेल भेज पायेगा । कुछ लोगे ने जरुर मेरी गंभीरता को समझ कर शादी के लिए अपने लड़कियों का प्रस्ताव भेजा है लेकिन उनमे से ज्यादातर की उम्र ९ से १० साल है जो मेरे बेटे से बड़ी है ,मेरा अनुरोध है की कृपया ४ से ७ साल के लड़कियों के ही माता पिता मेरे बेटे से शादी के लिए संपर्क करे ,एक बात मै फिर कहना चाहुगा की मुझे दहेज़ भी नही चाहिए बल्कि मै अपनी बहु को ख़ुद अपने पैसे से पढ़ाई कराउगा । कृपया अपने लड़की के विवाह के लिए उसके फोटो के साथ मिले , मिलने से पहले ९५०६४२२५३४ पे संपर्क करे
रोहित सिंह

कोई तो मुझे लड़की बना दो !!!!!!!!http://salaamzindagii.blogspot.com

कोई तो मुझे लड़की बना दो !!!!!!!!हिन्दुस्तानी मीडिया में ऐसा क्या हुआ जो एक लड़का बनना चाहता है अब लड़की ....पहली बार सलाम ज़िन्दगी पर एक और सच एक और कड़वाहट ....जिसने झकझोर कर रख दिया एक लड़के को.. ....कोई तो मुझे लड़की बना दो !!!!!!!! सिर्फ सलाम ज़िन्दगी पर ....कल पढिये विपिन के साथ

bhanas

30.7.09

एक मासूमियत मर गई

'मैं आज भी अपना बिस्तर किसी के साथ भी बाँटने को तैयार हूँ, और इसमें बुराई क्या है, हम भी इसी तरह बड़े हुए थे, मैं कोई ख़ूनी नहीं हूँ, न ही मैं कोई हत्यारा हूँ, माफ़ कीजियेगा माइकल जैकसन इनमें से कुछ भी नहीं है ", ये अल्फाज़ हैं इस युग के महानायक और महागायक माइकल जैकसन के,
"बिस्तर बाँटना", "साथ में सोना" ऐसे शब्द दुनिया के इस भाग में एक ही मतलब रखते हैं "शारीरिक सम्बन्ध", इस प्यारे "पीटर पैन" की ऐसी बातें पश्चिमी में कौन समझता, जहाँ बच्चे के जन्म से पहले ही यह तै कर लिया जाता है कि बच्चे के सोने का कमरा कौन सा होगा, नवजात शिशु सुन्दर सजे-धजे कमरे में हर प्रकार के तंत्र-मन्त्र के साथ बस जाता है, बस, बस नहीं पाता है तो अपनी माँ की गोद में, माँ की लोरी, माँ के स्पर्श से महरूम बचपन रात के सन्नाटे में अँधेरे से लड़ता-भिड़ता अकेले कमरे में पड़ा होता, बस एक वाकी-टाकी के सहारे, जिसमें वह चीख़-चीख़ कर अपने अकेलेपन की गुहार तो लगा देता है , माँ आती भी है लेकिन, थपका कर और दरवाजा भिड़ा, अकेली छोड़ कर फिर चली जाती है, यहाँ बच्चे पालने का यही सलीका है, हर बच्चा अपना बचपन सामने खड़ी अलमारी में भूत देख-देख कर बिता देता है, माँ-बाप बच्चे को अपने साथ नहीं सुलाते क्योंकि यह "बहुत बुरी" बात है, यह "गलत" है, इससे बच्चों पर बुरा असर पड़ता है, पश्चिमी संस्कृति का ऐसा ही मानना हैं, इस सलीके को अपने जीवन में अपनाते-अपनाते, बच्चे और माँ-बाप के कमरे की बीच की दीवार उठ कर जीवन में भी आ जाती है, और यह दीवार ता-उम्र नहीं गिरती, यहाँ के लोगों की मानसिकता यह समझ पाने में बिलकुल अक्षम है कि माँ-बाप और दूधपीता बच्चा एक ही कमरे में कैसे सो सकते हैं ?
शायद हम भारतीय ऐसी बातों से खुद को जोड़ नहीं पायें, क्योंकि हमारी माँ ने तो हमें अपने सीने से तब-तक चिपकाए रखा जब-तक उसका दूध सूख नहीं गया, अपनी गोद से तब-तक अलग नहीं किया जब तक हम उसकी गोद में अँटते रहे,
माइकल जैकसन भी इसी प्यार-दुलार की बात करते थे जिसे पश्चिम में समझ पाना असंभव था, वो अपने बचपन कि बातें करते थे कि कैसे आठों भाई-बहन ने एक ही कमरे में अपना बचपन गुजारा था, मैं उनकी इन सारी बातों से खुद को बड़ी खूबसूरती से जोड़ लेती हूँ क्योंकि हमने भी तो कुछ वैसा ही बचपन गुजारा है, बिलकुल बचपन सा मासूम सा, लेकिन इस बड़ी सी दुनिया में एक बचपन ने दम तोड़ दिया और एक मासूमियत मर गयी

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आशीष जैन का पढ़े यह दर्दनाक आलेख ...पहली बार जिसे लोगो ने कहा सलाम ज़िन्दगी ......एक अनुरोध ....इस बार जरुर आये हमारे छोटे से महल में छोटी सी ज़िन्दगी ...जहां मौजूद है एक भयानक सच ..जिसे bhadas4media ने कहा सलाम ज़िन्दगी .अब आप भी कहे .http://salaamzindagii.blogspot.com
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29.7.09

शराबबंदी करने ये कैसा कानून

राज कुमार साहू, जांजगीर छत्तीसगढ

गुजरात सरकार ने शराबबंदी करने विधानसभा में एक विधेयक पारित किया है, जिसमें कहा गया है की अवैध शराब बिक्री करने वाले को कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। जिसमें मौत की सजा भी हो सकती है। पिछले दिनों हुई ह्रदय विदारक घटना ने पूरे देश के लोंगों को झकझोर कर रख दियाइस घटना के पहले क्या गुजरात सरकार द्वारा अवैध शराब बिक्री को रोकने क्यों प्रयास नहीं किया गया। यह एक यक्ष प्रश्न बनकर सरकार के सामने खड़ी हो गई है। जाँच में यह बात सामने आई है की गुजरात में अवैध शराब बनाने व बेचने का कारोबार लंबे समय से जारी था।
गुजरात में पिछले दिनों सवा सौ से भी ज्यादा लोग जहरीली शराब की चपेट में आकर असमय ही काल कलवित हो गए। शायद सरकार अवैध शराब बिक्री पर रोक लगा लेती तो इतनी बड़ी घटना नहीं होती। अब सरकार की खिंचाई विपक्ष द्वारा करने पर सरकार ने एक विधेयक पारित किया है, जिसमें अवैध शराब बिक्री करने वाले को मौत की सजा भी ही सकती है। क्या शराब बंदी करने ऐसा कानून बनाये जाने की जरुरत है, क्योंकि यह इसे रोकने का कारगर उपाय नजर नहीं आता। इससे पहले ही अवैध शराब बिक्री को लेकर कानून बने हुए है। कानून बनाने के बजाय लोगों में जन जागरूकता लाने की ज्यादा जरुरत है।
समाज में शराबखोरी किसी कोढ़ की बीमारी से कम नहीं है, जो समाज को धीरे धीरे खोखला करती जा रही है। नशाखोरी से समाज में अपराध भी बढ़ रहे हैं। लोगों की जान अलग जा रही है। समाज में अशांति भी फैला रही है।
गुजरात सरकार को शराबखोरी रोकने लोंगों को जागरूक ज्यादा जरुरी है। जब लोग शराब के नुकसान के बारे में समझ जायेंगे तो वे ख़ुद ही समाज की विकृति से दूर हो जायेंगे।
छत्तीसगढ़ में भी शराबखोरी चरम पर है। सरकार को शराब ठेके से अरबों रूपये मिलते हैं, क्या मतलब ऐसे राजस्व का जिससे लोंगों की जान पर बन आ रही है। समय रहते प्रदेश में भी शराब खोरी के खिलाफ पहल होनी चाहिए, क्योंकि यही हाल रहा तो समाज में अराजकता फैलते देर नहीं लगेगी। समाज में शराबखोरी की बढती प्रवित्ति सबसे बड़ी चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि इससे परिवार भी तबाह हो रहे हैं, कोई मजदूर तबका का व्यक्ति अपनी दिन भर का कमी शराब में उदा रहा तो उसकी परिवार की हालत क्या होगी अंदाजा लगाया जा सकता है। गरीबी के चलते ऐसे लोगों के परिवार के बच्चे शिक्षा से भी वंचित होते जा रहे है और वे अपराध में भी संलिप्त हो रहे है।
अब यहाँ हमें सोचना चाहिए की हम कैसी पीढी तैयार कर रहे हैं, जिसे बचपन में ही नशा का जंग लग जा रहा है। इस बारे में चिंतन की जरुरत है, आपको भी और हमें भी। इसमें सरकार की प्रमुख दायित्व बनता है की वे जनता के हित में सोचे।

पूर्व महारानी गायत्री देवी नहीं रहीं

जयपुर राजघराने की पूर्व महारानी गायत्री देवी का आज दोपहर बाद निधन हो गया। उन्होंने राजधानी के संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल में अंतिम सांस ली।
वे 90 साल की थीं। उनका विवाह जयपुर रियासत के पूर्व महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय से हुआ था।

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चोर माल ले गए...

पैरोडी--कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे
(अगर धुन में सुनना है तो नीचे है...)

चोर माल ले गए, लोटे थाल ले गए
मूंग और मसूर की वो सारी दाल ले गए
और हम डरे डरे खाट पर पड़े पड़े
सामने खुला हुआ किवाड़ देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

आँख जब खुली तो हाय, दम ही मेरा घुट गया
बेडरूम साफ़ था, ड्राइंग रूम रपट गया -२
टी.वी., वीसीआर गायब, डीवीडी सटक गया
और हम खड़े खड़े, सोच में पड़े पड़े
खाली खाली कैडियों की जार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

सैंडविच पचा गए, जूस भी गपा गए
चार अण्डों का बना के, आमलेट खा गए -२
माइक्रोवेव तोड़ गए, फ्रिज खाली छोड़ गए
और हम लुटे लुटे, बुरी तरह पिटे पिटे
शहीद हुए अण्डों की मज़ार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

क्राक्रिज ले गए, तिजोरी मेरी तोड़ गए
कोट मेरा पहन गए निकर अपनी छोड़ गये-2
शर्ट का पता नहीं, टाई मुझे मिला नहीं
और हम डरे डरे, भीत से अड़े अड़े
दीवार पर वो सेंध की मार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

चोर माल ले गए, लोटे थाल ले गए
मूंग और मसूर की वो सारी दाल ले गए
और हम डरे डरे खाट पर पड़े पड़े
सामने खुला हुआ किवाड़ देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

यह जहाज़ कर देगा हिन्दुस्तानी मीडिया को बर्बाद -exclusive-http://salaamzindagii.blogspot.com/


यह जहाज़ कर देगा हिन्दुस्तानी मीडिया को बर्बाद .....पढ़े सलाम जिंदगी पर विपिन के साथ अपनी राय और शुभकामनाये दे -सलाम ज़िन्दगी पर

"ग्लोबल वार्मिंग क्या है? ग्लोबल वार्मिंग का असर हमारी जीवन शैली पर...! What is Global Warming? Global Warming Effects On Our Lifestyle...!!!!

Global Warming ग्लोबल वार्मिंग का असर हमारी जीवन शैली पर आज के दौर का सबसे बडा सवाल। आज के वक्त में शायद ही कोई ऐसा पढा-लिखा इंसान होगा जिसको ग्लोबल वार्मिंग के बारे में पता ना हो लेकिन फिर भी अगर किसी को ना पता हो तो उसके लिये मैं बता देता हूं। आदमी के द्वारा पैदा किये गये प्रदुषण (ग्रीन हाउस गैसों) से पर्थ्वी के बढते हुए औसत तापमान को ग्लोबल वार्मिंग कहते है जिसकी वजह से अंटार्टिका में बर्फ़ पिघल रही है और भारत में हिमालय पर बर्फ़ पिघल रही है और समुंद्र का जलस्तर बढता जा रहा है। आज सब लोगों को "ग्लोबल वार्मिंग" के बारे में अच्छी तरह से पता है लेकिन लोग उसे अच्छी तरह से जानते नही है। कुछ अजीब नही है की राह चलते आप सुने किसी को "बढती गर्मी" और तेज चलती हवाओं के बारे में शिकायत करते हुऎ और फ़ौरन उसकी टिप्पणी भी "अरे भई ग्लोबल वार्मिंग है"।

आगे पढे.....

टूटे चश्मे से दुनिया देखता एक पत्रकार


सीलन से भरे एक घर में एक औरत लगभग चीख-चीख के रो रही थी। आस-पास छोटी सी भीड़ की शक्ल में कुछ लोग खड़े थे जो लगातार उसे घूरे जा रहे थे...। घर में घुसते वक्त उसे दूर-दूर तक किसी कैमरे को न देख खुशी का अहसास हुआ...। उसके आफिस के लगभग सोनीपत से सटे होने के बावजूद वो फिर से सबसे पहले स्पाट पर पहुंचा था....। आएगा सालों का फोन ट्रांसफर मांगने के लिए...वो बुदबुदाया......

जानना चाहेंगे फ़िर क्या हुआ.... जानिए इस ब्लॉग पर....

http://nayikalam.blogspot.com/


आईये दोस्तों !!करें देश की इज्ज़त की नीलामी....!!

आईये दोस्तों !!करें देश की इज्ज़त की नीलामी....!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
आईये ना प्लीज़ आप भी यहाँ,
हम आपकी भी नुमाईश कर देंगे!!
बेशक आपने खोले नहीं हों अपने कपड़े बाथरूम में भी कभी
लेकिन हम आपको यहाँ बिल्कुल नंगा कर देंगे!!
हम यहाँ सबका सामना सच से कराते हैं
बेशक इस सच से हम सबको अधमरा कर देंगे !!
नई लाइफ-स्टाइल में कुछ भी गोपनीय नहीं होता
हर कोई एक बार कम से कम अधनंगा तो होना ही चाहिए !!
और हर सच भले ही चाहे कितना ही कुरूप क्यूँ ना हो
उस भयावह कुरूपता को परदे पर उजागर क्यूँ नहीं होना चाहिए??
परदे पर कुरूपता सुंदर-वैभवशाली और परिपूर्ण लगती है!!
इसलिए हर कुरूपता को खोज-खोज कर हम इस परदे को भर देंगे !!
भारत के तमाम भाई और बहनों
अब भी तुम सबमें कुछ तमीज-संस्कार और परम्परा यदि बाकी बची है
तो यहाँ आओ, इस तमीज की कमीज हम ही उतारते हैं!!
सभ्यता नाम की कोई चीज़ अगर आदमी में बाकी बच रही है,
उसे इन्हीं दिनों में ख़त्म होना होना है !!
ये बात बाबा"........"जी बता कर गए हैं !!
अरे भारत-वासियों,अब तो आप सच से मुकर मत जाना !!
और गली-गली से-हर नाली और पोखर से गंदे-से-गंदे
हर सच की बदबूदार सडांध को ढूँढ-ढूँढ कर इस मंच पर लाना !!
हम सच बेचते हैं,जी हाँ हम सच बेचते हैं!!
सच के साथ हम और भी बहुत कुछ बेचते हैं!!
ईमान-धरम की बात हमसे ना कीजै,
ये सब कुछ तो हम मज़ाक-मज़ाक में ही बेच देते हैं...!!
तो फिर साहिबान-कद्रदान-मेजबान-मेहमान !!
आज और अभी इस मंच पर आईये,
और हमसे मज़ाक का इक सिलसिला बनाईये,
और अपनी इज्ज़त के संग ख़ुद भी बिक जाईये!!
नोट-देश की इज्ज़त की नीलामी फ्री गिफ्ट के रूप में ले जाईये !!

28.7.09

सच का सामना :लाइव विथ मोचीराम


-आवेश तिवारी

(ये पोस्ट आप हमारे ब्लॉग www.katrane.blogspot.com पर भी पढ़ सकते हैं |)

साथियों ,सच का सामना में आज हमारे सामने हैं मोचीराम ,हंसिये मत यही नाम है इनका |इनको विश्वास है कि ये सच का सामना कर सकेंगे |हम हमेशा की तरह पूछेंगे २१ सवाल ,सही जवाब देने पर इन्हेमिलेंगे करोड़ रुपए |हमारा पहला सवाल मोचीराम आपके लिए , तुमने कितने दिन से खाना नहीं खाया ?'साहब दो दिन हो गए ,घर में एक दाना नहीं है ,पूरी फसल सूखे की भेंट चढ़ गयी ,क्या करूँ ?कहाँ जाऊं ?सही जवाब तुम जीतते हो दस हजार |बीस हजार रुपयों के लिए दूसरा सवाल 'क्या तुमने कभी चोरी की है ?.....................................चुप्पी.....................,जी की है | देखते हैं पोलीग्राफ मशीन क्या कहती है ?..ये जवाब सच है ,क्यूँ की थी चोरी ? भूख लगी थी तो पंसारी की दूकान से आटा और उस आते से रोटी पकाने के लिए जंगल से लकडी चोरी की थी सरकार ,लेकिन पुलिस रिकार्ड में ७० चोरियां दर्ज हैं.|.................... |अब हम पूछते हैं तीसरा सवाल ,तैयार हो तुम ?'जी हाँ ,सरकार ,पूछें '|ठीक है ,ये बताओ क्या तुमने कभी अपने ३ साल के बच्चे को पीटा है ?सवाल बेहद मुश्किल है सरकार ,जी हाँ पीटा है ,'जिदिया गया था हाट में बिस्कुट के लिए ,लेकिन पीटने के बाद घर आकर हम भी रोये थे साहब '|बिलकुल सही जवाब ,बेहद शानदार खेल रहे हो तुम मोचीराम अब बताओ चौथे सवाल का जवाब "तुम्हारे सामने अगर गाँव का कलेक्टर खाना खा रहा हो तो क्या करोगे ?अरे साहब ये कैसा सवाल ?सच कहूँ तो थाली छीन लूँगा |पोलीग्राफ मशीन क्या कहती हो तुम ??सही जवाब अब एक लाख रूपए से तुम सिर्फ एक सवाल दूर हो तुम मोचीराम ,पांचवां सवाल .'तुमने अपनी बीबी को रोटी के लिए बेचा की नहीं ?ब्लागरों आप बजर दबा सकते हो |हाँ बताओ 'जी हाँ बेचा था ',देखते हैं पोलीग्राफ मशीन क्या कहती है ? |ये जवाब सच है .तुम जीत गए हो एक लाख रूपए मोचीराम |बताओगे क्यूँ बेचना पड़ा था ?जमीन रेहन रखे रहे सरकार पैसा नाही दे पाए ,तो साहूकार घर पर चढाई आकर दिया रहा ,क्या करते इज्जत बचाने के लिए इज्जत बेचनी पड़ी.|ब्लॉगर साथियों बहुत अच्छा खेल रहे हैं मोचीराम .देखते हैं वो सच का सामना कहाँ तक कर पाते हैं ,आगे मंजिल मुश्किल है राहें कठिन ,ब्रेक के बाद एक बार फिर हम उनसे मुखातिब होंगे |


...............कैडबरी सेलेब्रेशन यानी प्यार का सगुन.......... केलोक्स कोर्न्फ्लेक्स ६ अलग अलग स्वादों में ,अब सबके लिए अलग अलग स्वाद ..........वैरी वैरी सेक्सी .................................आज रात देखिये राखी का स्वयंबर ,तीन दुल्हों के बीच फंसी राखी आखिर किसके गले में वरमाला डालती है |..........|

एक बार फिर हाजिर हैं हम सच का सामना में |आपके सामने हॉट सिट पर बैठे हुए हैं मोचीराम ,जिन्होंने अब तक शानदार खेला है ,मोचीराम अब आगे सवाल और भी कठिन होते जायेंगे ,आप किसी भी वक़्त खेल छोड़कर जा सकते हैं ,अगला सवाल मोचीराम क्या आपने कभी आत्महत्या करने को सोचा है ? जी हां सोचा है ,बार बार सोचता हूँ |देखते हैं पोलीग्राफ मशीन का जवाब, ये जवाब सच है ,क्यूँ सोचते हैं ऐसा मोचीराम ?सरकार न घर ,न छत ,न रोटी छोटे बच्चे और उस पर कमर तोड़ता कर्ज ,क्या करूँ सरकार और कोई चारा नहीं |हमारे सामने बैठी हैं मोचीराम की पत्नी .क्या उन्होंने आपको कभी बताया कि वो आत्महत्या करना चाहते थे ?जी हाँ हम पूरे परिवार के साथ मरना चाहते थे |सातवाँ सवाल मोचीराम आपने कभी बन्दूक उठाने को सोचा है ?जी हाँ .लाल सलाम कहकर और बन्दूक उठाकर रोटी मिल जाये तो क्यूँ न कहूँ ?ये जवाब सच है |आपका जवाब सच है मोचीराम ,कुछ कहना चाहेंगे इसके बारे में ,साहब नक्सली नहीं बनेंगे तो पुलिस बना देगी ,बन ही जाएँ तो बेहतर है |मोचीराम आप चुनावों में वोट देते हैं की नहीं ?जी साहब ,वोट तो पड़ता है ,जो पैसा दे देता है २००-४०० ,उसी के नाम पर बटन दबा देते हैं ,अगला सवाल मोचीराम ,आपकी बहन का बलात्कार जब विधायक के बेटे ने किया था क्या आप वहां मौजूद थे ?.....................................जी हाँ ,था मैं ,पोलीग्राफ मशीन ,ये जवाब .................सच है |,क्या हुआ था 'सरकार घर से काम करने निकल थी मेरे साथ, रास्ते में पकड़ लिया नेता जी के बेटा ने ,हमें बहुत मारा था ,हम कुछ नहीं कर पाए बाद में बहन भी बयान से पलट गयी |क्या खूब खेल रहे हैं मोचीराम आप अब १० लाख रूपए से महज २ कदम दूर हैं |अगला सवाल क्या आपको यकीं है कि आपकी पत्नी से पैदा हुए बच्चे आपके अपने हैं ?जी हाँ यकीं है ,पोलीग्राफ मशीन जवाब दो ,|ये जवाब................ सच है ,वाह मोचीराम ,क्यों तुम्हे यकीं है सच में ?जी हाँ |झूट गाँव के लिए है ,पर मेरे लिए सच है |तुम ये खेल बीच में छोड़कर जा सकते थे, खैर |तुम देश का मतलब समझते हो मोचीराम ?जी हाँ समझता हूँ |मोचीराम ये है १० लाख रुपये के लिए अगला सवाल ,क्या तुम्हे यकीं है कि तुम आजाद देश के नागरिक हो ?जी हाँ ,है यकीं |देखते हैं पोलीग्राफ मशीन क्या कहती है |ये जवाब ..................................................अरे ये तो कुछ भी नहीं बोल रही !मोचीराम ,तुम्हे क्या हुआ ,कुछ तो बोलो ,ब्लॉगर साथियों आप ,आप भी चुप हैं !

chanderksoni.blogspot.com

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CPG,
Aap ko badhai, yah aap ki lagan ka hi parinam hai ki aap ne blogihg ki duniya me kadam rakhne ke kuch hi dino me hindi me likhana shuru bhi kar diya.
aap ne sahi likha hai nki aam aadmi kaise pahcha sakta hai ki kon si dawai asli hai aur kon si nakli hai.
hindi me likhna shuru karne ki badhai, ab aap ko aur jyada maza aayega likhne me....kirti rana/096729-90299

मानसिक प्रताड़ना या मानसिक बलात्कार-सुधी सिद्धार्थ के साथ (विशेष)


एक लड़की .जिसके टूटे सारे सपने .....और फिर बिखर गई उसकी ज़िन्दगी ..-क्या यही है मानसिक बलात्कार ...जरुर पढ़े -सिर्फ सलाम ज़िन्दगी पर ....

ऐसी आज़ादी और कहाँ..?

दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा हाल ही में दिए उस फैसले का सबने स्वागत किया हैं जिसमे समलैंगिकता से संबंधित धारा '३७७' को हटाने के दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिए हैं...अब भारतीय संस्कृति पर एक बदनुमा दाग लग जायेगा क्योंकि 'ऐसी आज़ादी और कहा' ..जी हाँ...! होमोसेक्सुँलिटी में प्रयोग किये जाने वाले हर शब्द का मतलब ही कुछ और निकल रहा हैं ...'गे' शब्द की परिभाषा अब पूरी तरह से आम भाषा में खुलेआम प्रयोग की जाने लगी हैं..अगर आप किसी से पूछेंगे की मेरे साथ चलोगे तो यानि सामने वाला भौचक रहे जायेगा की वोह उसे चलो और गे दोनों ही कह रहा हैं..आंखिर अब खुलकर होमोसेक्सुँल्स सामने आ रहे हैं ...! दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद जैसे सबको खुली आज़ादी मिल गयी हो..हर चीज में गे शब्द का प्रयोग जैसे चलो गे , मिलो गे या तमाम वोह शब्द जिसमे आखिरी में गे शब्द लगता हैं....अब इस गे शब्द को हर आदमी खुल कर समाज में बोलने लगा हैं हैं क्योंकि इस बात की इजाज़त तो आंखिर उन्हें कानून ने ही दी हैं ...खुलकर समाज के सामने यह मानना की अब वोह पूरी तरह से आजाद हैं हर वोह काम करने के लिए जिसके लिए वोह पहले दस बार सोचते थे...चाहे वोह दिल्ली की सड़को पर खुलेआम एक दुसरे का हाथ पकड़ कर समाज को यह दिखाना की अब वोह गे संस्कृति को अपनायेगे ..! गे शब्द की जो परिभाषा थी वोह अब पूरी तरह से बदल चुकी हैं....लेकिन विदेशी संस्कृति को अपनाने वालो ने यह भी नहीं सोचा की इसका परिणाम क्या होगा...! लेकिन सवाल यहाँ उठता हैं की आंखिर इस बात की इजाज़त भी तो हमारे भारतीय कानून ने ही उन्हें दी हैं.. ! अभी भी कटघरे में कई ऐसे सवाल खड़े हैं जिसका जवाब किसी के पास नहीं हैं .....! जरुरत हैं तो सिर्फ सोचने की जो हम कर रहे हैं क्या वोह सही हैं.....? या फिर हम सबको एकजुट होकर इसके खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी...!

Thxs...N Regards..
Deepak Gambhir....!
Allahabad..!
deepak.journalist@gmail.com

27.7.09

सरहद से आए खतों में आज भी जिंदा है कारगिल का युद्ध

अरविन्द शर्मा

वक्त को गुजरते वक्त ही कितना लगा है। कहने को कारगिल को दस साल बीत गए हैं लेकिन लगता नहीं कि युद्ध अभी खत्म हो गया है। समय के पहिए ने बेशक वक्त को पीछे धकेलने की तमाम कोशिशें की हों लेकिन राजस्थान के झुंझुनूं के भलोट गांव के शहीद नरेश कुमार जाट का एक जुलाई 99 को शहादत से पहले अपने दादा को लिखे खत को पढ़कर लगता है कि कारगिल का युद्ध अभी भी चल रहा है। हमने सहेजा है शेखावाटी के वीर सपूतों द्वारा कारगिल युद्ध के दौरान अपने परिजनों को लिखे शौर्य और गौरव के इन जीवंत दस्तावेजों को, जिन्हें पढ़कर लगता है कि कारगिल का युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है।दादाजी लड़ाई चल रही है लेकिन आप दिल छोटा मत करना। मैं पीछे नहीं हटूंगा। जरूरत पड़ी तो 71 की लड़ाई में पिताजी की तरह देश पर अपने प्राण न्यौछावर कर दूंगा। - युद्ध के मैदान से झुंझुनूं भालोट के सिपाही नरेश कुमार जाट का 1 जुलाई 1999 को अपने दादा को लिखा पत्र

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sex in mass communication

"भारतीय विद्या भवन" संस्थान में सेक्स के उधाहरण देकर युवाओं को पढाया जा रहा है मॉस कम्युनिकेशन.

नयी दिल्ली "भारतीय विद्या भवन" संस्थान में अभी मॉस कम्युनिकेशन की क्लास शुरू हुए दो सप्ताह भी नहीं बीते है, कि अध्यापको ने सेक्स से सराबोर उधाहरण देकर क्लास में युवाओं की मानसिकता को झकझोर दिया है.
"विज्ञापन और पब्लिक रिलेशन" पढाने वाले अध्यापक ने विज्ञापन की सफलता और विफलता पर चर्चा करते हुए 72 घंटे वाली गोली "आई-पिल" और "अनवांटेड-72" का उधाहरण लिया, युवाओं ने रूचि दिखाई तो अध्यापक उधाहरण की गहराई में उतर गए... क्लास को बताया गया कि आजकल की लड़किया "आई-पिल" खुद नहीं खरीदती है बल्कि अपने "बॉय फ्रेंड्स" से मंगवाती है. अब युवाओं कि बड़ती हुयी रूचि को देखते हुए अध्यापक ने क्लास से ये भी पूछ डाला कि "तुम लडकियां "आई-पिल" खुद खरीदते हो या अपने बॉय फ्रेंड्स से मंगवाते हो". जबाव मिले झूले आये. मगर "आई-पिल" कि चर्चा क्लास में कई दिन तक छाई रही, अब भी किसी लड़की को एकांत में पाकर मनचले छात्र उससे पूछ डालते है कि "क्या आई-पिल लाकर दू"

इसके अतिरिक्त कम्युनिकेशन पढाने वाले अध्यापक महोदय ने तो हद कर डाली, कम्युनिकेशन के उधाहरण देते हुए क्लास को समझाया कि सेक्स करने के दौरान होने वाला 'दर्द' भी कम्युनिकेशन का एक अच्छा उधाहरण है, इस पर युवाओं ने गहरी गहरी सासे ली और काफी देर तक क्लास का माहोल कुछ रोमांटिक सा हो गया.

मैं अध्यापको के चरित्र, मानसिकता और सोच पर कोई सवाल नहीं लगा रहा हु मगर अब सवाल ये भी जरुरी है कि क्या ऐसे उधाहरण युवाओं को हैवी डोज तो नहीं दे रहे है, क्लास में गूंजने वाली साँसों कि आवाजे और एकांत में कसने वाली अश्लील फव्तियाँ क्या युवाओं में पढाई का माहोल छोड़ रही है. सब जानते है कि युवा सब जानते है, मगर सब युवा उन चंद युवाओं के माहोल वाले भी तो नहीं जो आधुनिकता की दौड़ में कुछ ज्यादा ही आगे निकल चुके है.

क्लास के 50 बच्चो के माता-पिता अगर ये सच्चाईयां पता चले तो शायद उनमे काफी अपने बच्चो को इस पढाई से वंछित कर देंगे. क्युकी उनके नजर में "भारतीय विद्या भवन" संस्थान की इमेज एकदम साफ़ सुथरी है.

इसलिए इस संस्थान से उम्मीद की जाती है कि अपनी इमेज को साफ़ सुथरी ही बना कर रखे...

जरा याद करो कुर्बानी...

फतह के दस साल...


वो दुनिया को छोड़ गए... हर अरमानों से मुंह मोड़ लिया... ताकि हम ज़िंदा रह सके पूरे सम्मान के साथ।
शहीदों को हमारा शत् शत् नमन... जय हिंद।

26.7.09

हर-हर महादेव



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हिंदी ब्लॉग में आई फिर एक लड़की -जिसने समेटे हुए अनेको ख्वाब और जेहन में है अनेकों दर्द .....पहला लेख जरुर पढ़े ...क्योंकि आपकी सराहना हिंदी ब्लॉग को एक

हिंदी ब्लॉग में आई एक लड़की -जिसने समेटे हुए अनेको ख्वाब और जेहन में है अनेकों दर्द .....पहला लेख जरुर पढ़े ...क्योंकि आपकी सराहना हिंदी ब्लॉग को एक नई दिशा दे सकती है और लेखिका को एक उत्साह प्रदान कर सकती है ,आर्शीवाद दे
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...दाल के लिए तरसे बृहस्पति देव

महंगाई से सिर्फ हम मानवों की परेशानी नहीं बढ़ी है, वरन देवता भी आजकल आधे पेट भोजन पा रहे है। अनादि काल से धरती के मनुष्य यज्ञादि पूजन द्वारा देवताओं को भोग लगाते रहें हैं। लेकिन इस महंगाई से यज्ञादि पूजन का खर्च लोगों की बजट से बाहर हो चला है. लिहाजा देवताओं को मिलने वाले आहार में कमी आ गयी है और उनकी शक्ति भी इन दिनों घटने लगी है. पर संकट में भक्त अपने इष्ट को ही याद करता है. अतः देवताओं के पास भक्तों की फरियाद पर फरियाद आ रही है. कोई जरूरी समानों के भाव कम करने की प्रार्थना करता तो कोई बढ़ती कीमतों का सामना करने के लिए इनकम बढ़ाने की याचना अपने-अपने इष्ट देव से करता. देवता इन प्रार्थना पत्रों से आजिज आ चुके थे. अंततः इस विकट समस्या के समाधान के लिए सृष्टिकर्ता ब्रह्म, पालनकर्ता विष्णु और संहारकर्ता महेश से विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया गया.

चूँकि समस्या पृथ्वी की थी अतः बैठक स्थल शिवधाम कैलाश मानसरोवर तय किया गया।नियत समय पर सभी देवता कैलाश मानसरोवर पहुंचे। मंच पर त्रिदेव विराजमान, बाकि देवता नीचे अपना कद के अनुसार उचित आसन पर बैठे थे। त्रिदेवों ने एक स्वर से पूछा 'हे इन्द्र! आखिर ऐसी कौन सी विपदा आन पड़ी है जिसका समाधान तुम्हारे पास नहीं है.' इन्द्र ने कहा 'हे त्रिदेवों! कुछ हजार साल पहले पृथ्वी पर महंगाई रुपी दुष्ट शक्ति ने पृथ्वी पर हमला कर मेरे भक्तों का बुरा हाल किया था. मेरे भक्तों की परेशानी इस कदर बढ़ गयी थी की वे अपने इष्ट की पूजन सामग्री तक नहीं खरीद पा रहे थे. हवन आदि आहारों की अनुपस्थिति में मेरी शक्ति धीरे-धीरे समाप्त होती गयी और मै अपने भक्तों की रक्षा न कर सका.' इन्द्र की आवाज में रुदन स्पष्ट झलक रहा था. इन्द्र ने करुण स्वर से कहा, 'हे महादेवों! मेरी इस गति से भक्तों का विश्वास मुझसे उठ गया और आज मेरा एक भी भक्त इस मृत्युलोक पर नहीं है. आज फिर उसी महंगाई रुपी दुष्ट शक्ति ने इस लोक के भ्रष्ट नेताओं, नकारा नौकरशाहों और रिटेल व्यापारिक घरानों के साथ मिलकर शेष बचे देवताओं को नष्ट करने का षडयंत्र रचा है.' स्थिति काफी गंभीर हो चुकी है.'तभी बृहस्पति देव उठ खड़े हुए। उन्होंने याचना भरे स्वरों में कहा 'हे महादेवों! देवराज उचित ही कह रहें हैं. हवन आहुति, फल-फूल से ही हम देवों को शक्ति मिलती है. तीन साल पहले स्थिति इतनी विकट न थी. भक्तगण मेरी कृपा प्राप्त करने के लिए मुझे पीली दाल, गुण सहित कई वस्तुओं की भोग लगाते थे. आजकल थोडा बहुत गुण तो मिल जाता, लेकिन दाल के दर्शन अति दुर्लभ हो गया है. मैंने अपने स्तर से पता लगवाया. पता चला दाल ८० रूपये किलों और गुण भी ४८ रूपए किलों बिक रहा है. जबकि तीन साल पहले ये वस्तुएं ४० रुपये और ३० रुपये किलों मिलती थी. मेरे भक्तों की थाली में भी अब दाल बड़ी मुश्किल से दिखती है. जब से चढावे में कमी आयी है तब से मुझे भी अपनी शक्ति जाती हुयी महसूस हो रही है.' यह कहते कहते वो अचेत से हो गए. तभी सभी देवताओं ने एक स्वर से त्राहिमाम-त्राहिमाम का स्वर गुंजित किया और बड़ी आस भरी निगाहों से त्रिदेवों की और देखने लगे.त्रिदेव अभी विचार करते, उससे पहले ही पुराणिक पत्रकार नारद आ गए। बड़ी संख्या में देवताओं को देख उन्होंने नारायण की और देखा और इसका औचित्य पूछा. प्रिय भक्त को देख प्रसन्न विष्णु भगवान् ने नारद को वस्तु स्थिति बताई. सहसा नारद चौंक पड़े. उन्होंने बताया की अभी वे भारत वर्ष से ही आ रहें हैं. उन्हें तो ऐसी कोई दुर्दशा नहीं दिखी. जगह-जगह मॉल बन रहे हैं, पंच सितारा होटलों में दावतों का दौर जारी है. राजनेता और नौकरशाह अपनी कुर्सी बचा लेने के बाद विदेश यात्राओं में मग्न है. मंत्रालयों के एसी चेम्बरों में तरह-तरह की विकास योजनायें बन रही हैं. वहां तो सर्वत्र भोग-विलास का वातावरण हैं.देवर्षि की विचित्र किन्तु आंशिक सत्य बातें सुनकर देवगुरु खड़े हुए। उन्होंने कहा 'हे नारद आप बिलकुल ठीक कह रहें हैं. लेकिन आप स्वयं ही बताएं इन भोगी-विलासी लोगों में से कितने लोग मानवता की राह पर चल रहे हैं? इनमें से कितने लोग सच्चे मन से हमारी पूजा करते हैं? तभी अचानक जासूस देव अपने हाथ में रिपोर्टों की एक फाइल लेकर खड़े हुए। नारद को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा " हे देवर्षि! आप स्वयं महाज्ञानी हैं. लेकिन लगता है की आप भी धरती पर सिर्फ विशेष लोगों की खबर लेने के लिए ही जाते हैं. हमारे पास गुप्त सूचना है की अधिकांश शासनाधिकारी शैतान की पूजा करते हैं. लोगों का खून चूसकर अपनी जैबे भरते हैं. और स्वर्ग की तर्ज पर प्रत्येक स्थान पर मॉल स्वर्ग बनाने की ख्वाहिश रखते हैं. आम जनता, जो हमारी पूजा सच्चे मन से करती है उसे महंगाई से मारने की साजिश इन्ही के सहयोग से रची गयी है, जिससे देवताओं को उनका यज्ञ भाग न मिले और वे कमजोर हो सके." जासूस देव की तथ्यपरक बातों से देवर्षि निरुत्तर हो गए.

तभी एक देवता ने जासूस देव से कहा " हे देव! मैंने तो सुना है की भारत देश का राजा बड़ा ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति है? उसने इस स्थिति को सुधारने का प्रयत्न नहीं किया?" जासूस देव ने कहा "हे देव! सुना तो मैंने भी ऐसा ही था। लेकिन नयी जानकारी के अनुसार चुनाव जीतने के बाद बनी नयी मंत्रिपरिषद उसने लोकसभा से जिन ६४ सांसदों को मंत्री बनाया है उनकी कुल घोषित संपत्ति ही ५०० करोड़ से अधिक है। अतः उसे इस महंगाई का एहसास कैसे हो सकता है."

अभी विमर्श अपने उच्चतम सोपान पर पहुँचने ही वाला था की अचानक नंदी (भगवान शिव की सवारी) दौड़ते हुए आये। उन्होंने सूचना दी की ग्लोबल वार्मिंग से हिमालय के ग्लेसियर पिघलने लगे हैं. अब कैलाश पर रहना सुरक्षित नहीं है. शीघ्र ही निवास स्थान बदलना होगा. यह सुनते ही भगवान् शिव क्रोध से भर गए. उन्होंने राक्षसों और अपकारी शक्तियों के इस कृत्य पर भीषण गर्जना की. सभी देवता बड़ी आस भरी निगाहों से संहारकर्ता भगवान् शिव की और देखने लगे कि कब वे इन दुष्ट अपकारी शक्तियों और उनके सहयोगी भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाहों और स्वार्थी उद्योगपतियों का संहार कर उन्हें एवं उनके आम नागरिक रुपी भक्तों को राहत दिलाएंगे?

एक ग्रीन लाइट के इंतजार में

- शिरीष खरे -

मुंबई। "मेरी जैसी कई औरतों को अपना शरीर बार-बार बेचना पड़ता है." एक औरत की जुबान से पहली बार ऐसा सुनकर मैं झिझक गया. सपना ने बेझिझक आगे कहा- ‘‘पेट के लिए करना पड़ता है. ईज्जत के लिए घर में बैठ सकती हूं. लेकिन...’’ इसके बाद वह चुपचाप एक गली में गई और गुम हो गई.

देश के कोने-कोने से हजारों मजदूर सपनों के शहर मुंबई आते हैं. लेकिन उनके संघर्ष का सफर जारी रहता है. इनमें से ज्यादातर मजदूर असंगठित क्षेत्र से होते हैं. सुबह-सुबह शहर के नाकों पर मजदूर औरतें भी बड़ी संख्या दिखाई देती हैं. इनमें से कईयों को काम नहीं मिलता. इसलिए कईयों को 'सपना' बनना पड़ता है. तो क्या "पलायन" का यह रास्ता "बेकारी" से होते हुए "देह-व्यापार" को जाता है ?

शहर के उत्तरी तरफ, संजय गांधी नेशनल पार्क के पास दिहाड़ी मजदूरों की बस्ती है. यहां के परिवार स्थायी घर, भोजन, पीने लायक पानी और शिक्षा के लिए जूझ रहे हैं. लेकिन विकास योजनाओं की हवाएं यहां से होकर नहीं गुजरतीं. इन्होंने अपनी मेहनत से कई आकाश चूमती ईमारतों को बनाया है. खास तौर से नवी मुंबई की तरक्की के लिए कम अवधि के ठेकों पर अंगूठा लगाया है. इन्होंने यहां की कई गिरती ईमारतों को दोबारा खड़ा किया है.

यहां आमतौर पर औरत को 1,00 रूपए और मर्द को 1,30 रूपए/दिन के हिसाब से मजदूरी मिलती है. ठेकेदार और मजदूरों के आपसी रिश्तों से भी मजदूरी तय होती है. एक मजदूर को कम से कम 2,000 रूपए/महीने की जरूरत पड़ती है. मतलब उसका 1 दिन का खर्च 66 रूपए हुआ. इतनी आमदनी पाने के लिए परिवार की औरत भी मजदूरी को जाती है. उसे महीने में कम से कम 20 दिन काम चाहिए. लेकिन 10 दिन ही काम मिलता है. इस तरह एक औरत के लिए 1,000 रूपए/महीना कमाना मुश्किल होता है.

यह मलाड नाके का दृश्य है. थोड़ी रात, थोड़ी सुबह का समय है. सड़क के कोने और मेडीकल के ठीक सामने मजदूरों के दर्जनों समूह हैं. यहां औरत-मर्द एक-दूसरे के आजू-बाजू बैठकर बतियाते हैं. यह काम पाने की सूचनाओं का अहम अड्डा है. यहां सुबह 11 बजे तक भीड़ रहती है. उसके बाद मजदूर काम पर जाते हैं, जिन्हें काम नहीं मिलता वह घर लौटते आते हैं. लेकिन सेवंती खाली नहीं लौट सकती. इसलिए उसकी सुबह, रात में बदल जाती है. उसे नाके से जुड़ी दूसरी गलियों में पहुंचकर देह के ग्राहक ढ़ूढ़ने होते हैं.

आज रविवार होने के बावजूद उसे 3 घण्टे से कोई खरीददार नहीं मिल रहा है. इस व्यापार में दलाल कुल कमाई का बड़ा हिस्सा निगल जाते हैं. इसलिए सेवंती दलाल की मदद नहीं चाहती. सेवंती जैसी दूसरी औरतों को भी ग्राहक के एक इशारे का इंतजार है. इनकी उम्र 14 से 45 साल है. यह 80 से 1,50 रूपए में सौदा पक्का कर सकती हैं. अगले 24 घण्टों में 4 ग्राहक भी मिल गए तो बहुत हैं. यह अपने ग्राहकों से दोहरे अर्थो वाली भाषा में बात करती हैं. ऐसा पुलिस और रहवासियों से बचने के लिए किया जाता है. यह अपने असली नाम छिपा लेती हैं. इन्हें यहां सुरक्षा का एहसास नहीं है. इन्हें शारारिक और मानसिक यातनाओं का डर भी सता रहा है. यहां से कोई गर्भवती तो कोई गंभीर बीमारी की शिकार बन सकती है.

देह-व्यापार से जुड़ी तारा ने बताया- ‘‘यहां 100 में से करीब 70 औरतों की उम्र 30 साल से कम ही है. इसमें से भी करीब 25 औरतें मुश्किल से 18 साल की हैं. अब कम उम्र के लड़कियों की संख्या बढ़ रही है. 35 साल तक आते-आते औरत की आमदनी कम होने लगती है. एक औरत अपने को 20 साल से ज्यादा नहीं बेच सकती. आधे से ज्यादा औरतें पैसों की कमी के कारण यह पेशा अपनाती हैं. कुछेक औरतों पर दबाव रहता है.’’ पीछे खड़ी कुसुम ने कहा-‘‘मुझे तो बच्चे और घर-बार भी संभालना होता है. मेरे सिर पर तो दबाव के ऊपर दबाव है.’’ यहां ज्यादातर औरतों की यही परेशानी है.

माधुरी का पिता उसे मजदूरी के लिए भेजता है. लेकिन वह मजदूरी के साथ अपने शरीर से भी पैसा कमा लेती है. गिरिजा अपने भाई की बेकारी के दिनों का एकमात्र सहारा है. सुब्बा ने पति के एक्सीटेंट के बाद गृहस्थी का बोझ संभाल लिया है. जोया ने छोटी बहिन की शादी के लिए थोड़ा-थोड़ा पैसा बचाना शुरू कर दिया है. लेकिन उसकी बहिन पढ़ाई के लिए अब मुंबई आना चाहती है. जोया अपनी सच्चाई छिपाना चाहती है. उसे अपनी ईज्जत के तार-तार होने की आशंका है. नगमा 45 साल के पार हो चुकी है, अब उसकी 14 साल की बेटी बड़की कमाती है. बड़की बाल यौन-शोषण का जीता जागता रुप है.

यहां कदम-कदम पर कई बड़कियां खड़ी हैं. यह चोरी-छिपे इस कारोबार में लगी हैं इसलिए कुल बड़कियों का असली आकड़ा कोई नहीं जानता. कोई बंगाल से है, कोई आंध्रप्रदेश से है तो कोई महाराष्ट्र से. लेकिन इनके दुख और दुविधाओं में ज्यादा फर्क नहीं है. इन्होंने अपनी चिंताओं को मेकअप की गहरी परतों से ढ़क लिया है.

मोनी ने बताया- ‘‘इस पेशे से हमारा शरीर जुड़ता है, मन नहीं. हम पैसों के लिए अलग-अलग मर्दो को अपना शरीर बेचते हैं. लेकिन कई मर्द ऐसे भी हैं जो जिस्मफरोशी के लिए बार-बार ठिकाने बदलते हैं. अगर हमें गलत समझा जाता है तो उन्हें क्यों नही ?’’
मोनी का सवाल देह-व्यापार के सभी पहलुओं पर शिनाख्त करने की मांग करता है.

यह एक अहम मुद्दा है. लेकिन इसे समाज की तरह सरकार ने भी अनदेखा किया हुआ है. इसे नैतिकता, अपराध या स्वास्थ्य के दायरों से बाँध दिया गया है. देखा जाए तो देह-व्यापार का ताल्लुक गरीबी, बेकारी और पलायन जैसी उलझनों से है. लेकिन इन उलझनों के आपसी जुड़ावों की तरफ ध्यान नहीं जाता. जबकि ऐसे आपसी जुड़ावों को एक साथ ढ़ूढ़ने और सुलझाने की जरूरत है.

भारत में देह-व्यापार की रोकथाम के लिए ‘भारतीय दण्डविधान, 1860’ से लेकर ‘वेश्यावत्ति उन्मूलन विधेयक, 1956’ बनाये गए. फिलहाल कानून के फेरबदल पर भी विचार चल रहा है. लेकिन इस स्थिति की जड़े तो समाज की भीतरी परतों में छिपी हैं. इसकी रोकथाम तो समाज के गतिरोधों को हटाने से होगी. इस व्यापार से जुड़ी औरतें दो जून की रोटी के लिए लड़ रही हैं. इसलिए विकास नीति में लोगों के जीवन-स्तर को उठाने की बजाय उन्हें जीने के मौके देने होंगे. देह-व्यापार के गणित को हल करने के लिए उन्हें अपनी जगहों पर ही काम देने का फार्मूला ईजाद करना होगा.

सरकार ने पलायन को रोकने के लिए 2005 को ‘राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना’ चलाई. इसके जरिए साल में 100 दिनों के लिए ‘‘हर हाथ को काम और पूरा दाम’’ का नारा दिया गया. लेकिन इस योजना में फरवरी 2006 से मार्च 2007 के बीच औसतन 18 दिनों का ही काम मिला. साल 2006-07 में 8,823 करोड़, 2007-08 में 15,857 करोड़ और 2008-09 में 17,076 करोड़ रूपए खर्च हुए. मतलब एक जिले में औसतन 30 करोड़ रूपए. इसका भी एक बड़ा भाग भष्ट्राचार में स्वाहा हो गया. कुल मिलाकर मजदूरों को 30-40 दिनों का ही काम मिल पाता है. इसलिए 365 दिनों के काम की तलाश में मजदूरों का पलायन जारी है. दूरदर्शन के प्रोग्राम के बीच 'रुकावट के लिए खेद' जैसा संदेश चर्चा का विषय रहा है. ‘‘हर हाथ को काम और पूरा दाम’’ के नारे के आगे अब यही संदेश लगा देना चाहिए.

पलायन की रफ़्तार के मुताबिक शहर का देह-व्यापार भी तेजी से फल-फूल रहा है. बात चाहे आजादी के पहले की हो या बाद की. अब यह किस्सा चाहे कलकत्ता का हो या मुंबई का. मुंबई में ही सड़क चाहे ग्राण्ट रोड की हो या मीरा रोड की. उस चैराहे पर मूर्ति चाहे अंबेडकर की लगी हो या मदर टेरेसा की. बस्ती चाहे कमाठीपुरा की हो या मदनपुरा की. यहां आपको रूकमणी (हिन्दू) भी मिलेगी और रूहाना (मुसलमान) भी. लेकिन जिन्हें अपने धर्म, क्षेत्र, जुबान या जाति पर नाज है, वह कहीं नहीं दिखते. यहां के रेड सिग्नलों पर रूकी औरतों की जिंदगी बदलाव चाहती है. तशकरी के तारों से जुड़ने के पहले, उन्हें एक ग्रीन सिग्नल का इंतजार है.

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इस स्टोरी में देह-व्यापार के लिए मजबूर औरतों की पहचान छिपाने के लिए उनके नाम बदल दिये गए हैं.

लेखक शिरीष खरे से shirish2410@gmail.com के जरिए संपर्क किया जा सकता है

कौन है ......

हमेशा वह नही होता
जो होता है मन मैं
दाना डालता हूँ चिडिओं को
खाता कौन है ...
बड़े सहेज कर ईमारत
खड़ी की है हमने
देखना है
रहता कौन है .....
सोचता हूँ बिना कहे
वो सब समझ जाएगा
मगर समझता कौन है ......
किए हैं मैंने बहुत उपाए
जीने के लिए
देखना है
अब जीता कौन है ......

ऎसा तो कभी नहीं हुआ था

-विजय गौड़-
(नागर्जुन की कविता हरिजन गाथा पर एक टिप्पणी)

साहित्य में दलित धारा की वर्तमान चेतना ने दलितोद्वार की दया, करूणा वाली अवधारणा को ही चुनौति नहीं दी बल्कि जातीय आधार पर अपनी पहचान को आरोपित ढंग से चातुवर्ण वाली व्यवस्था में शामिल मानने को संदेह की दृष्टि से देखना शुरू किया है। दलित धारा के चर्चित विद्धान कांचा ऐलयया की पुस्तक व्हाई आई एम नॉट हिन्दु इसका स्पष्ट साक्ष्य है। वहीं हिन्दी की दलित धारा के विद्धान ओम प्रकाश वाल्मिकी की पुस्तक सफाई देवता को भी देखा जा सकता है। चातुवर्णय व्यवस्था की मनुवादी अवधारणा को सिरे से खारिज करते हुए दलितों को शुद्र मानने से दोनों ही विद्धान इंकार करते हैं। हिन्दी साहित्य में दलित धारा का शुरूआती दौर इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है, जहां प्रेमचन्द के आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद से भी वह टकराता रहा है। यानी एक तरह का घर्षण-संघर्ष जो अभी तक की स्थापित मान्यताओं को चुनौति दे रहा है, दलित धारा की वर्तमान चेतना को आलोचना के औजारों को और पैना करने की दृष्टि से सम्पन्न माना जा सकता है। दलितोद्वार की दया, करूणा वाली अवधारणा जो पहचान के रूप में शब्दावली के तौर पर हरिजन रूप् में आई, वह भी अस्वीकार्य हुई है। यहां अभी तक के प्रगतिशील विचार पर शक नहीं पर उसकी सीमाओं को चिहि्नत तो किया ही जा सकता है। थोड़ा स्पष्ट करते हुए कहें तो दलित साहित्य ने भारतीय समाज की उन सिवनों को उधेड़ना शुरू किया है जो पूंजीवाद विकास के आधे-अधूरे छद्म और सामंती गठजोड़ पर टिका है। साथ ही दलित धारा की इस चेतना पर भी सवाल तो अभी है ही कि सिर्फ और सिर्फ इस सच को उदघाटित कर देने के बाद भी सामाजिक बदलाव के संघर्ष की उसकी दिशा फिर कैसे अलग है ? यह सारे सवाल जिन कारणों से मौजू हैं उसमें नागार्जुन की कविता हरिजन गाथा का मेरा पाठ कुछ ऐसे ही सवालों के साथ है। लेकिन यहां यह भी स्पष्ट है कि हरिजन गाथा के उन प्रगतिशील तत्वों को अनदेखा नहीं किया जा सकता जो उसके रचे जाने के वक्त तक मौजू थे। जैसे लाख तर्क वितर्क के बाद भी प्रेमचंद के रचना संसार में दलितों के प्रति मानवीय मूल्यों को दरकिनार करना संभव नहीं वैसे ही हरिजन गाथा के उस उत्स से इंकार नहीं किया जा सकता जो उसके रचे जाने की वजह है और जिसमें जातिगत आधार पर होने वाले नरसंहारों का निषेघ है।
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था, बावजूद इसके जो कुछ भी हुआ था, वह अमानवीय था। एक यातनादायक कथा। हरिजन गाथा ऐसे ही नरसंहार को निशाने पर रखती है और उन स्थितियों की ओर भी संकेत करती है जो इस अमानवीयता के खिलाफ एक नये युग का सूत्रपात जैसी ही है।

चकित हुए दोनों वयस्क बुजुर्ग /ऐसा नवजातक/
न तो देखा था, न सुना ही था आज तक !

जीवन के उल्लास का यह रंग जिस अमानवीय और हिंसक प्रवृत्ति के कारण है यदि उसे हरिजन गाथा में ही देखें तो ही इसके होने की संभावनाओं पर चकित होते वृद्धों की आशंका को समझा जा सकता है।

यदि इस यातनादायी, अमानवीय जीवन के खिलाफ शुरू हुए दलित उभार को देखें तो उसकी उस हिंसकता को भी समझा जा सकता है जो अपने शुरूआती दौर में राजनैतिक नारे के रूप में तिलक, तराजू और तलवार जैसी आक्रामकता के साथ दिखाई दी थी। और साहित्य में प्रेमचंद की कहानी कफन पर दलित विरोधि होने का आरोप लगाते हुए थी। यह अलग बात है कि अब न तो साहित्य में और न ही राजनीति में दलित उभार की वह आक्रामकता दिखाई दे रही और जिसे उसी रूप में रहना भी नहीं था, बल्कि ज्यादा स्पष्ट होकर संघर्ष की मूर्तता को ग्रहण करना था।
पर यहां यह उल्लेखनीय है कि भारतीय आजादी के संभावनाशील आंदोलन के अन्त का वह युग, जिसके शिकार खुद विचारवान समाजशास्त्री अम्बेडकर भी हुए ही, इसकी सीमा बना है। और इसी वजह से संघर्ष की जनवादी दिशा को बल प्रदान करने की बजाय यथास्थितिवाद की जकड़ ने संघर्ष की उस जनवादी चेतना, जो दलित आदिवासी गठजोड़ के रूप में एक मूर्तता को स्थापित करती, उससे परहेज किया है और अभी तक के तमाम प्रगतिशील आंदोलन की उसी राह, जो मध्यवर्गीय जीवन की चाह के साथ ही दिखाई दी, अटका हुआ है। हां वर्षों की गुलामी के जुए कोउतार फेंकने की आवाजें जरूर थोडा स्पष्ट हुई हैं। हिचक, संकोचपन और दब्बू बने रहने की बजाय जातिगत आधार पर चौथे पायदान की यह हलचल एक सुन्दर भविष्य की कामना के लिए तत्पर हो और ज्ञान विज्ञान के सभी क्षेत्रों की पड़ताल करते हुए मेहनतकश आवाम के जीवन की खुशहाली के लिए भी संघर्षरत हो नागार्जुन की कविता हरिजन गाथा का एक पाठ तो बनता ही है।
संघर्ष के लिए लामबंदी को शुरूआती रूप में ही हिंसक तरह से कुचलने की कार्रवाइयों की खबरे कोई अनायास नहीं। उच्च जाति के साधन सम्पन्न वर्गो की हिंसकता को इन्हीं निहितार्थों में समझा जा सकता है। जो बेलछी से
झज्जर तक जारी हैं। नागार्जुन की कविता हरिजन गाथा कि पंक्तियां यहां देखी जा सकती है जो समाजशास्त्रीय विश्लेषण की डिमांड करती हैं। नागार्जुन उस सभ्य समाज से, जो हरिजनउद्वार के समर्थक भी हैं, प्रश्न करते हुए देखें जा सकते हैं -

ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि/हरिजन माताएं अपने भ्रूणों के जनकों को/
खो चुकी हों एक पैशाचिक दुष्कांड में/ऐसा तो कभी नहीं हुआ था---

एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं/तेरह के तेरह अभागे/अकिंचन मनुपुत्र/
जिन्दा झोंक दिये गये हों/प्रचण्ड अग्नि की विकराल लपटों में/साधन
सम्पन्न ऊंची जातियों वाले/सौ-सौ मनुपुत्रों द्वारा !

ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि/महज दस मील दूर पड़ता हो थाना/और दारोगा जी
तक बार-बार/खबरें पहुंचा दी गई हों संभावित दुर्घटनाओं की


नागार्जुन समाजिक रूप से एक जिम्मेदार रचनाकार हैं। अमानवीय कार्रवाइयों को पर्दाफाश करना अपने फर्ज समझते हैं और श्रम के मूल्य की स्थापना के चेतना सम्पन्न कवि हो जाते हैं। खुद को हारने में जीत की खुशी का जश्न मानने वाली गतिविधि के बजाय वे सवाल करते हैं। हिन्दी कविता का यह जनपक्ष रूप ही उसका आरम्भिक बिन्दु भी है। सामाजिक बदलाव के सम्पूर्ण क्रान्ति रूप को ऐसी ही रचनाओं से बल मिला है। वे उस नवजात शिशु चेतना के विरुद्ध हिंसक होते साधन सम्पन्न उच्च जातियों के लोगों से आतंकित नहीं होती बल्कि सचेत करती है। उसके पैदा होने की अवश्यम्भाविता को चिहि्नत करती है।

श्याम सलोना यह अछूत शिशु /हम सब का उद्धार करेगा
आज यह सम्पूर्ण क्रान्ति का / बेडा सचमुच पार करेगा
हिंसा और अहिंसा दोनों /बहनें इसको प्यार करेंगी
इसके आगे आपस में वे / कभी नहीं तकरार करेंगी---

(लेखक विजय गौड़ से संपर्क vggaurvijay@gmail.com के जरिए किया जा सकता है)

मां तुम सच बोलती हो...

वैसे मेरी मां को कोई न्यूज़ चैनल पसंद नहीं… लेकिन कहीं कुछ अच्छा या बुरा दिखता है तो रुक जाती हैं... कल भी ऐसा ही हुआ.. चैनल सर्फ कर रही थीं.. आज तक पर स्टार प्लस के सीरियल सच का सामना पर कार्यक्रम चल रहा था... जिसमें दिखाया जा रहा था कि इस सीरियल के ख़िलाफ़ किस तरह से देश में अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे थे... कुछ सेकंड रुकने के बाद माता जी का अगला पड़ाव था एनडीटीवी इंडिया... देबांग सच का सामना को लेकर मुक़ाबला कर रहे थे... कार्यक्रम में स्टार प्लस के एंकर राजीव खण्डेलवाल भी मौजूद थे... एनडी का ये पूरा कार्यक्रम सच का सामना के ख़िलाफ़ थी... मां ने बस इतना कहा “बकवास” और आगे बढ़ गईं... आगे एक चैनल पर कोई फ़िल्मी गाना चल रहा था... छोटे-छोटे कपड़ों में लड़कियों का डांस... अब मां का गुस्सा बाहर आ गया था... कहने लगीं एक सीरियल जो सच दिखा रहा है उसके ख़िलाफ़ सब खड़े हो रहे हैं... और ये सब जो हो रहा है इसके ख़िलाफ़ नहीं खड़े हो रहे... अगर भारतीय संस्कृति सच दिखाने से ख़राब हो रही है.. तो ये क्या है.. ये तो इस संस्कृति में जैसे चार चांद लगा रहा हो.. जो सब मौन हैं.. और मज़े से घर में देखते रहते हैं..

मां से मैंने कहा सच कड़वा होता है लोग बर्दाश्त नहीं कर पाते... मां ने जवाब दिया.. ग़लत जुमला है ये सच कड़वा नहीं होता.. सच तो ईश्वर है... सच हमेशा प्रिय होता है... सुननेवाले को कड़वा लगता है ये अलग बात है... कहा भी गया है सत्यम् शिवम् सुंदरम्.. सत्य ही शिव है... और शिव ही सुंदर है... यानि सत्य सबसे सुंदर है... मैंने बहस को बढ़ाने के लिए कहा अगर ऐसा है तो ये चैनलवाले बेवकूफ हैं जो इस पर बहस कर रहे हैं... मेरी मां आक्रामक हो गईं... बोल पड़ी मैं होती तो इनका मुंह नोच लेती... देश की संस्कृति की बात करते हैं... और संस्कृति में आग लगानेवाले यही हैं... और वो सच दिखानेवाला कार्यक्रम किस तरह से भारत की संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहा है.. ये कोई नहीं बता रहा.. सब बस यही कह रहे हैं कि किसी के बेडरूम के सवाल पूछकर सामाजिक माहौल ख़राब किया जा रहा है... समझ में नहीं आता इससे सामाजिक माहौल कैसे ख़राब हो रहा है... कोई बताए भी तो कैसे सामाजिक माहौल ख़राब हो रहा है...

ख़ैर अब मैं इससे ज़्यादा अपनी मां से बहस नहीं कर सकता था.. क्योंकि मैं भी उस कार्यक्रम का समर्थक हूं... मां से बहस करने का मतलब बस इतना था कि एक अनुभवी महिला जो समाज का हिस्सा है उनकी सोच क्या है...

वाकई में न्याय मिलेगा?

आदरणीय बड़े भाईजी
सादर प्रणाम

भाईजी, मैँ आपको जो बताने जा रहा हूँ वो सम्भवतः अपने आप मेँ हिन्दुस्तान की अनोखी घटना है और इस केस को दबाने के लिये जिन लोगो ने (इस केस से सम्बन्धित पुलिस अधिकारी/सी.बी.सी..आई.डी./बैँक अधिकारी) अपनी चतुर बुद्धि कौशल का उपयोग किया वो और भी बेमिसाल है। मेरी माताजी के नाम स्थानीय इलाहाबाद बैँक मेँ एक लॉकर न॰ 603 आवाटित था/है। दिनांक 11-08-97 को जब मेरी माताजी उक्त लॉकर ऑपरेट करने गयीँ तो उक्त लॉकर खोलने पर पाया कि लॉकर मेँ पूर्व मेँ रखे गये समस्त जेवर तथा कागजात नही हैँ। बड़े भाईजी ये तो आप जानते हैँ कि हमारे देश मेँ भुक्तभोगी ही कसूरवार ठहराया जाता है और हमारे साथ भी यही हुआ! अथक् प्रयासोँ के बाद कोतवाली मेँ अपराध सँख्या-1794/97 धारा 409IPC के तहत F.I.R. दर्ज हुई। उक्त घटना की खबर जब दूसरे दिन अखबारोँ मेँ आई तो बैँक मेँ अपना-अपना लॉकर चेक करने लोग आये तो लॉकर से सभी सामान गायब पाये गये लॉकरोँ की सँख्या 17 हो गयी तथा तीसरे दिन यह सँख्या 31 हो गयी। कुल मिलाकर लगभग 10 करोड़ से भी ऊपर की जालसाजी/घोटाला (बैँक कर्मचारियोँ द्वारा)
बड़े भाईजी तब से लेकर अब तक हम अपनी बूढ़ी/विधवा माँ के साथ हर दर पर जा चुके हैँ लेकिन नतीजा शायद परमभ्रष्ट भारतीय प्रशासकीय मशीनरी मेँ उलझ कर रह गया है। हम तो बेहद निराश/हताश होकर इस केस को भूल गये थे परन्तु आप जैसे दिग्गज भाईजी को पाकर एक आशा की किरण ने फिर जन्म लिया है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप उस नक्कारखाने मेँ मेरी आवाज जरुर बुलन्द करेँगे जहाँ मेरी आवाज का लोगोँ ने कंपन भी महसूस नही किया।
सरकारी मशीनरी कहती है कि हमारे द्वारा विकसित बैँक प्रणाली अभेद्य है तुम लोग झूंठ बोलते हो कि लॉकर मेँ से सामान चोरी हो गया है, इस प्रकार के आशय की फाइनल रिपोर्ट C.B.C.I.D कोर्ट मेँ पेश कर चुकी है, हमारा कहना है कि हम झूंठ नही बोल रहे है हम तो अपनी बात को सच साबित करने के लिये- लाइ डिटेक्टर टेस्ट/ब्रेन मैपिँग टेस्ट/पॉलीग्रॉफ टेस्ट/नार्को एनालिसिस टेस्ट या इस दुनिया मेँ उपलब्ध किसी भी प्रकार की टेस्टिँग/जाँच करवाने को तैयार हैँ यदि टेस्टिँग रिपोर्ट 2% भी नेगेटिव आये तो हमको सरेआम फाँसी पर लटका देँ या गोली से उड़ा देँ।
क्या आपके पास शिकायत दर्ज कराने पर वाकई में न्याय मिलेगा?
वैसे तो मैँ आपके परमभ्रष्ट देश भारत की परमभ्रष्ट सरकारी मशीनरी से लड़ते हुए ये सोँच कर आत्म संतुष्ट होकर शांत बैठ गयी कि जब इस देश मेँ 99.999% न्यायिक मामलोँ मेँ न्याय का मानक सिर्फ भ्रष्टाचार है तो मेरी क्या औकात है? जो मुझे न्याय मिले।
महामहिमजी, मेरी लड़ाई तो आपके भ्रष्ट देश भारत की पूर्णरुपेण भ्रष्ट गुंडा / माफिया रुपी सरकारी मशीनरी से है जिससे मैँ कहती हुँ कि यदि मैँ अपने मामले मेँ झूंठ बोल रही हुँ तो आपलोग मेरा लाइडिटेक्टरटेस्ट/ ब्रेन मैपिँग टेस्ट / पॉलीग्राफटेस्ट / नार्को एनालिसिस टेस्ट ले लीजिये और अगर रिपोर्ट 0.01% भी मेरी शिकायत से नेगेटिव निकले तो दिल्ली के लालकिले के ऊपर खड़ा करके गोली से उड़ा देँ लेकिन उन
भ्रष्टाचारियोँ को शायद अपने भ्रष्टकर्मो से मेरे लिये अवकाश नही है। इस देश पर मेरा / मेरे जैसे लोगोँ का पुन: विश्वास कायम हो इसके लिये क्या आप वाकई मेँ मेरी पुकार सुनेंगे? है आपके अन्दर साहस मुझे सम्बन्धित विभाग से न्याय दिलाने का ??? या ये हेल्पलाइन भी भ्रष्टाचार का एक अंग मात्र है॥
आपका
रविकांत शर्मा, सावित्री देवी शर्मा
314, कोठापार्चा, चौक-फैजाबाद- 224001
MOB..NO. 9936148125
ravinitu2006@yahoo.co.in

मायावती,मुख्यमंत्री है या फिर लेडी हिटलर ?


-दिनेश शाक्य-
किसी भी धरना प्रदर्शन के दौरान हमेशा यही नारा लगाया जाता है, जो हम से टकराएगा चूर चूर हो जायेगा... यही नारा आजकल उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए अपना लिया है। मायावती और उनके सिपहसालार अपने हर तरह के विरोधियों को जबाब देने के लिए इसी नारे का इस्तेमाल कर सबक सिखा रहे हैं। अब बात करते हैं उस छात्र की जिसने मायावती के लिए गुस्से में अपनी कॉपी में कुछ तीखा लिख दिया। फिर क्या था गुस्सा था जो फूट पड़ा लेडी हिटलर की शक्ल के रूप में।
बात करते है देवरिया के इंटरमीडिएट के एक छात्र की जिसने यूपी की मुख्यमंत्री मायावती की शान में छोटी सी गुस्ताखी क्या कर दी। पूरा का पूरा शिक्षा महकमा इस छात्र का करियर बर्बाद करने पर तुल गया है। परीक्षा की कॉपी में अपना गुस्सा उतारने वाले इस छात्र को हमेशा के लिए बोर्ड परीक्षाओं से प्रतिबंधित कर दिया गया है। दरअसल इस छात्र को अंग्रेजी की जगह संस्कृत का पर्चा दे दिया गया था। छात्र ने यूपी बोर्ड और मायावती के खिलाफ कॉपी में गुस्सा निकाल डाला। बोर्ड परीक्षा की कॉपियों में चौंकाने वाली और ऊल जलूल बातें लिखना कोई नई बात नहीं है। लेकिन देवरिया जिले के कयामुद्दीन अंसारी को ये गलती भारी पड़ी। कयामुद्दीन अब कभी भी यूपी बोर्ड की परीक्षाओं में शामिल नहीं हो पाएगा। कयामुद्दीन इंटरमीडिएट का छात्र है। परिजनों के अनुसार पिछले साल परीक्षा के दिन कयामुद्दीन को अंग्रेजी की जगह संस्कृत का पेपर थमा दिया गया। उसने इस बात की शिकायत टीचरों से की। लेकिन किसी ने उसकी एक ना सुनी। कयामुद्दीन का ये पेपर खराब हो गया। गुस्सा में आकर उसने इस कॉपी में मुख्यमंत्री मायावती और यूपी बोर्ड के खिलाफ अपना गुस्सा उगल डाला। कयामुद्दीन ने कॉपी में ढेरों बातें लिख डालीं। नतीजा ये निकला कि पहले उसके खिलाफ एफआईआर हुई और अब यूपी बोर्ड ने उस पर हमेशा के लिए पाबंदी लगा दी है।
जानकारी के लिए बता दूँ कि कयामुद्दीन बेहद गरीब परिवार से है। पिता की दर्जी की दुकान पर काम करके वो परिवार का पेट पालता था। परिवार वालों को उम्मीद थी कि वो पढ़-लिख कर घर का बोझ उठा पाएगा, लेकिन सारे सपने टूट गए। घरवालों के मुताबिक 17 साल के कयामुद्दीन ने जान-बुझकर ऐसा कुछ भी नहीं किया था जिससे मुख्यमंत्री मायावती की शान में गुस्ताखी हो। पुलिस इतनी बार घर आई की कयामुद्दीन को घर छोड़ कर भागना पड़ा। पुलिस कि रिपोर्ट के आधार पर कयामुद्दीन की पढाई पर तो ब्रेक लगा ही दिया गया है, उस प्रिंसिपल और टीचर को भी सजा दी गई है जिसने मूल्यांकन के दौरान इस पूरी घटना का खुलासा किया था। एक छात्र की नादानी भरे मामले में हुई इस बड़ी कार्रवाई से हर कोई दंग है।
इसमें कोई दोमत नहीं है कि कयामुद्दीन ने गलती की है। पहले उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज और अब बोर्ड परीक्षा के लिए हमेशा के लिए अयोग्य घोषित कर दिए जाने से इस छात्र का करियर अधर में पड़ गया है। कयामुद्दीन ने हाईस्कूल परीक्षाओं में अच्छे नंबर हासिल किए थे। ऐसे में गलत पेपर मिलने की घटना ने कहीं ना कहीं उसे गुस्सा आया होगा और ये गलती कर बैठा। अब इन मायावती हालातों को देख कर यही कहा जा सकता है कि मायावती मुख्यमंत्री कम लेडी हिटलर ज्यादा समझ में आती है...
दिनेश शाक्य
रिपोर्टर
सहारा समय
ब्लॉग : http://chambalghatietawah.blogspot.com