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18.10.09

दिवाली या दिवाला ?

दीपावली’, एक पावन त्यौहार। जिसके आते ही दीप जलाये जाते हैं, खुशियां मनायी जाती हैं, तरह-तरह कीमिठाईयां, पकवान, पटाखे और नये कपड़े खरीदे जाते हैं, घरों को साफ किया जाता है। लेकिन आज दिवाली आनेपर आम लोगों के चेहरे उतरे नजर रहे हैं। कारण है महंगाई, महंगाई ने आज आम आदमी की कमर तोड़ कररख दी है।

दिवाली आते ही जेबें ढीली होने का डर सताने लगता है। सभी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। त्यौहार आने से पूरेघर का बजट बिगड़ जाता है पर करें भी तो क्या करें। बढ़ती मंहगाई ने अमीर गरीब के बीच की खाई को औरगहरा कर दिया है। अब गरीब आदमी की तो मन गई दिवाली। वो तो सिर पकड़कर बैठ जाता है कि दिवाली कैसेमनाए। और अगर मंहगाई से बच गए तो नकली मिठाई, नकली पटाखे आदि आपका दीवाला निकाल देंगे औररही-सही कसर प्रदूषण और शराबी लोग पूरी कर देंगे। अब आप ही सोचिएदिवाली या दिवाला

-हिमांशु डबराल


2 comments:

आमीन said...

diwala!!!!!!!!!!!!!!

Unknown said...

n.d.t.v.