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27.1.10

प्रज्ञा तिवारी की कविता

काश कि कुछ ऐसा हो पाता

कि जो सड़क पर है वह अपनी आवारीगर्दी को जी पाता

इस ठंढे मौसम की खुशहाली, हरियाली को

किसी गर्म, रुईदार कम्बल में सी पाता

ठंढ को सिरहाने रख, ज़िन्दगी के गर्म बिस्तर पर सोता वह

किसी तकिए की खुश्बू को जीता, अलाव की गरमी को पी पाता

काश..कि कुछ ऐसा हो पाता

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