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23.2.10

दुलार मिलेगा या मार ?

जिस तरफ जाओ महंगाई को लेकर हाय तौबा मची हुई है और लोगों की नज़रें अब वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी पर टिकी हैं जैसे कि वो कोई चमत्कार करने वाले हैं... उम्मीदें बहुत सी हैं हर बार की तरह... लेकिन एक बात तो साफ है कि आने वाला बजट लोक लुभावन शायद ही हो... क्योंकि सामने चुनाव नहीं है पिछली बार की तरह... करोड़ों लोगों की अरबों उम्मीदें... क्या वित्त मंत्री खरा उतर पाएंगे इन उम्मीदों पर...? गांव, ग़रीब, किसान, व्यापारी, बिज़नेस घराने, युवा, महिलाएं, बच्चे, बूढ़े, यानि की हर वर्ग जो सरकार की नज़रों में इसानी श्रेणी में आते हैं वो भी और जो सरकार की नज़र में इंसान नहीं हैं वो भी... सभी की उम्मीद टिकी है इस बजट पर... कैसा होगा बजट...? हर टीवी चैनल की एक हेडलाईन और आधा दिन बजट में क्या होगा ? क्या उम्मीदें है हर वर्ग की... इसी में लगा है... प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया... हर जगह एक ही चर्चा, चाय की दुकान हो या गांव की चौपाल... सब्ज़ी मंडी हो या 5 स्टार होटल, कॉलेज हो या शराब खाने, सबको इस बात की फिक्र है कि क्या तोहफ़ा मिलने वाला है।
उम्रे दराज़ मांग कर लाए थे चार दिन, दो आरज़ू में कट गए दो इंतज़ार में, रातों की नींद तक गवां रखी है सबने सिर्फ इस फिक्र में की क्या होगा प्रणब दा के पिटारे में, क्या होगा ? अजीब सवाल है, पुरानी बोतल में नई शराब परोसी जाएगी या सिर्फ ख़ाली बोतल सामने रख दी जाएगी, मंदी को पूरी तरह से ख़त्म करने के लिए कौन सा बड़ा हिम्मत वाला क़दम उठाया जाएगा...? नई नौकरियां कैसे पैदा होंगी...? पढ़े-लिखे और अनपढ़ बेरोज़गारों के लिए क्या कोई काम निकलेगा ? आम आदमी का हाथ थामकर आगे बढ़ने वाली कांग्रेस आम आदमी को इस महंगाई से अपना हाथ पकड़कर बाहर निकालेगी, मंदी का डटकर मुकाबला करने के लिए पीठ थपथपाएगी, बच्चों को प्यार से सहलाएगी या फिर एक कसकर थप्पड़ मारेगी ? क्या होगा मुझे भी इंतज़ार है...

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