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18.4.10

जन आस्था और विश्वास को नमन : हर की पौड़ी पर हर कोई हर - हर गंगे .

जन आस्था और विश्वास को नमन
हरिद्वार में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है . हर कोई महाकुम्भ का सहभागी साक्षी बनने को आतुर है .  इस जन आस्था और विश्वास की  कोई सीमा नहीं . आमजनों से लेकर संतों -महंतों -आचार्यों- विद्वतजनों सभी का पदार्पण  हरिद्वार में  हो रहा है . पंडालों में भारी भीड़ श्रीमद्भागवत महापुराण , श्री राम कथा , गौ कथा ,रास लीलाएं , यज्ञ - हवन- अनुष्ठान , जप-तप , सब तरफ धर्म ही धर्म .   अद्भुत अनुपम अकल्पनीय पर साकार .  करोड़ों की साक्षात उपस्थति  और अरबों का  द्रश्य श्रव्य साधनों से जुडाव . समस्त हिन्दू समाज धर्म मय , आस्था से अनुप्राणित , विश्वास से सारोबार . ऊपर से सोने में सुहागा महाकुम्भ महापर्व के साथ श्री पुरुषोत्तम मास . जहाँ तक नज़र जाये केवल और केवल जन सैलाब . यात्रा में पाँच गुना समय शरीर थका-थका सा पर मन प्रफुलित . हरिद्वार में प्रवेश पर .... हर की पौड़ी फिर भी बहुत दूर . भागमभाग - धक्का मुकी .
त्रिवेणी संगम के साथ शहरी और ग्रामीण परिवेश का अनोखा संगम ,ना कोई जाती-पाती , ना आयु और ना लिग़ का कोई भेद . समता - संवेदना - समरसता का का अद्भुत नज़ारा .  ३ पीढ़ियों का अद्भुत सहकार . कंधे पर बोझ लादे गोद में भविष्य को सम्हालता और एक हाथ से अपने वृद्ध पिता नाना दादा को सहेजता महाकुम्भ के मोह में बंधा  आज का निर्मोही युवा कुछ पल के लिए ही सही पर हर पल के लिए महापर्व का महान सन्देश .
ब्रह्मकुंड में कलश से छलकी अमृत बूदों  के प्रसाद से हम सभी पवित्र निर्मल हो इस आस्था से यह पहली  डुबकी उसके बाद  साथ  ना आसके परिजनों - ईस्ट मित्रो के लिए डुबकी पे डुबकी और फिर  परमधाम को प्राप्त पित्तरों को तर्पण ....सच इतनी भीड़ में भी  परम शांति - शुकून . यही  है - महाकुम्भ . ना कोई बुलावा ना कोई आयोजक और नाही इस बाज़ार युग में भी कोई प्रायोजक . ठाकुर की लीला हर की पौड़ी पर हर कोई हर - हर गंगे
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