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20.4.10

देदून में सर्कस का गैर कानूनी संचालन

देहरादून। बिना जू- ऑर्थरिटी के राजधानी में अधिकारियों की आखों में धूल झोंक कर सर्कस का संचालन नियम कानूनों को ताक पर रखकर संचालित किया जा रहा है इसकी भनक जैसे ही वन विभाग के अधिकारियों को लगी तो उनमें हडकंप मच गया। परेड ग्राउंड में स्थित सर्कस का उद्घाटन नगर निगम के मेयर विनोद चमोली व पुलिस अधिकारी आर.एस मीना ने संयुक्त रूप से किया था। सर्कस का संचालक अधिकारिय को गलत सूचनाएं देकर भ्रमित करता रहा। वन विभाग के अध्किारियों ने शिकायत मिलने पर वेस्टर्न सर्कस को नोटिस जारी कर सभी कागजात प्रस्तुत करने को कहा है। १४ अप्रैल से नियम-कानूनों को ठेंगा दिखाकर सर्कस का संचालन राजधानी देहरादून में किया जा रहा है जबकि सर्कस के संचालन को लेकर नेशनल-जू अथॅारिटी से अनुमति तक मौजूद नहीं है। विभिन्न जाानवरों को लाने के लिए चीफ फॉरेस्ट कंजरवेटर तक से परमिशन तक नहीं ली गई है लेकिन इसके बाद भी सर्कस का संचालन बेखौफ होकर किया जा रहा है।
बीते दिवस पीपुल फॅार एनिमल की मानवी भट्ट को सूचना मिली कि बिना जू- ऑर्थरिटी के सर्कस संचालन किया जा रहा है और न ही वन विभाग से जानवरों को रखे जाने की को ई परमिशन ली गयी है। इसके बाद पीपुल फॅार एनिमल ने वन विभाग से शिकायत कर वेस्टर्न सर्कस का संचालन बंद करने को लेकर शिकायत की। जिसके बाद वन विभाग के अधिकारियों में शिकायत मिलते ही हडकंप मच गया और तुरंत ही वन विभाग की एक टीम ने मौके पर पहुंचकर सर्कस के संचालन कर्ताओं से जू-ऑर्थरिटी की दी जाने वाली परमिशन के कागजात मांगे लेकिन परमिशन के कागजात उपलब्ध न होने के कारण वन विभाग ने वेस्टर्न सर्कस को नोटिस जारी कर कागजात उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं।
वह वन विभाग की प्रभागीय वन अधिकारी मीनाक्षी जोशी का साफ कहना है कि वन अधिनियम के तहत जानवरों को बिना परमिशन के रखा जाना गैर कानूनी है और यदि बिना परमिशन के जानवर रखे जाने का पता चला तो वन सरक्षण अधििनयम के तहत कडी कार्रवाही की जाएगी। उन्होंने कहा कि वेस्टर्न सर्कस को नोटिस जारी कर कागजात पेश करने के निर्देश दिए गए हैं। पीपुल फॉर एनिमल संस्था का आरोप है कि हरियाणा के गुडगांव में कुछ दिनों पूर्व वेस्टर्न सर्कस को परमिशन न होने के कारण वहां से इसे बंद कर दिया था और बिना परमिशन के सर्कस का संचालन किया जाना अपराध की श्रेणी में आता है। इसलिए सर्कस को शीघ्र बंद किया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि बिना परमिशन के किस आधार पर ५ दिनों तक सर्कस का संचालन किया जाता रहा और वन विभाग के अधिकारी शिकायत होने से पहले हरकत में क्यों नहीं आए? यह भी जानकारी मिली है कि सर्कस को संचालित करने के पीछे पैसे का मोटा खेल खेला गया है। लेकिन सरकस व जानवरों की परमिशन न होने के बाद सर्कस के संचालन पर ही पूरी तरह प्रश्न चिन्ह लग गया है। वही कागजों के संबंध में डालनवाला के एसएसआई श्री टम्टा से बात की गई तो उन्होंने कोई भी जानकारी देने से साफ इंकार किया। जबकि वन विभाग कागजों के पूरा न होने की बात कह रहा है। कुल मिलाकर पैसे के मोटे खेल के चलते सर्कस को बंद करने की हिम्मत नहीं जुटाई जा रही।

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