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29.4.10

खंण्डूड़ी की खिसिहाट से सकते में संगठन



राजनीति में जिन्दा रहने के लिए पूर्व मुख्यमं़त्री कर हैं पेंतरेबाजी
राजेन्द्र जोशी
देेहरादून, 29 अप्रैल। पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचन्द्र खंण्डूड़ी को राजनीति में स्वयं को जिन्दा रखने के लिए कई तरह की पेंतरेबाजी करनी पड़ रही है। लेकिन राजनीति का भी क्या कहने जिन लोगों से एक समय में पूर्व मुख्यमंत्री घिरे रहते थे उन्होने ही उनसे किनारा कर लिया है। पिछले कुछ महीने पूर्व उन्होने ठीक इसी तरह का उत्तराखण्ड भ्रमण का कार्यक्रम लगाया था उस समय वे नये-नये मुख्यमंत्री की गद्दी से हटे थे, लेकिन उस बार भी कुछ एक विधायकों को छोड़ क्षे़़़त्र के कोई भी विधायक उन्हे इस दौरे के दौरान अपने क्षे़त्र में उनके स्वागत के लिए नहीं गया।
इस बार एक बार फिर वे उत्तराखण्ड के दौरे पर हैं और उनके साथ हैं तो केवल आपदा प्रबंध सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष तीरथ सिंह रावत। लगता है इस बार तो वे केवल अपनी ही सरकार की किरकिरी कराने के उद्देश्य से दौरे पर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने इस दौरान कुमायंू के दौरे पर हलद्वानी से लेकर बागेश्वर तक केवल वर्तमान मुख्यमंत्री की बातों का ही प्रतिरोध किया है। उन्होने कहीं भी एक बार भी यह नहीं कहा कि वर्तमान मुख्यमं़त्री के नेतृत्व में कुंभ का सफल आयोजन किया गया अथवा प्रदेश ने विकास कार्यों में नये आयाम स्थापित किये। इतना ही नहीं उन्होने तो इस दौरे के दौरान कहीं भी सरकार की पीठ नहीं थपथपायी। अब गढ़वाल में प्रवेश करने वाले हैं देखते हैं उनके सुर बदलते भी हैं या नहीं लेकिन उनके इस दौरे को लेकर राजनीतिक स्तर पर कई तरह के चर्चायें आम हैं। चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री व उनके कुछ सिपहसलार उन्हे केन्द्र अथवा प्रदेश में कोई भी पद न दिये जाने को लेकर कई तरह के तर्क दे रहे हैं। लेकिन लोगों के जेहन में उनके तर्क कोई जगह नहीं बना पा रहे हैं और लोग तो अब उनके इन तर्को को खिसिहट का नतीजा बताते नहीं चूकते हैं।
खंण्डूड़ी के दौरे पर राज्य से लेकर केन्द्रीय भाजपा संगठन तक की नजर है। भाजपा में चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री ने दौरा शुरू करने से पूर्व सरकार और संगठन के बीच सामंजस्य के लिए वे इस दौरे को कर रहे हैं कहा था। लेकिन उनके अभी तक के दौरे में कहीं यह बात नहीं दिखायी दी कि वे सरकार व संगठन के बीच दूरी कम करने का प्रयास कर रहे हैं। बल्कि उलट उनके बयानों से यह संदेश गया है कि सरकार व संगठन के बीच कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है। मीडिया में लगातार उनके आ रहे बयानों ने सरकार की फजीहत तो की ही है वहीं संगठन का भी जनाजा निकाला है। मुख्यमंत्री के बयान कि कुंभ के सफल आयोजन के प्रबंधन के लिए नोबिल पुरूस्कार दिया जाना चाहिए पर पूर्व मुख्यमत्री द्वारा इस बयान का समर्थन करने के बजाय इसपर टिप्पणी कर डाली। जिससे साफ होता है कि पूर्व मुख्यमंत्री के इरादे नेक नहीं हैं और वे अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करने पर तुले हैं।

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