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29.5.10

धोखाधड़ी याने धारा 420 और इंका नेता हरवंश सिंह के बीच क्या चोली दामन का साथ नज़र आता हैं
भूमि घोटाले से सम्बंधित प्रकाशित समाचार और हरवंश सिंह के खंड़न करने से कुछ ऐसे सवाल पैदा हो गयें हैं जिनका लोग उत्सुकता के साथ जवाब तलाश रहें हैं। इन तमाम सवालों के जवाब यदि जल्दी ही खुलकर जनता के सामने आ जाये तो इस मामले में अपने आप दूध का दूध और पानी का पानी हो जावेगा वरना यह भी लफ्फाजी के दौर में गुम कर रह जायेगा। इसे महज एक संयोग कहें या कुछ और कि भादंवि की धारा 420 याने धोखाधड़ी का हरवंश सिंह के खिलाफ यह कोई पहला मामला नहीं हैं।ब्लकि ऐसा कुछ रहा हैं कि मानो दोनों के बीच चोली दामन का साथ रहा हो। इसके पहले भी तीन मामले और चर्चित रहें हैं। एक फर्म के पार्टनर के रूप में आदिवासियों द्वारा, एक वकील के रूप में पिछड़े वर्ग की विधवा महिला द्वारा और सरकार के मन्त्री के रूप गलत हलफनामा देकर प्लाट लेने और फिर पटवा द्वारा मामला पेश होने पर प्लाट लौटाने के धोखेधड़ी के मामले हरवंश सिंह के खिलाफ चर्चित रहें हैं। म.प्र.राज्य परिवहन निगम के अध्यक्ष के रूप में तत्कालीन गृहमन्त्री हरवंश सिंह को न्यायलय के अवमानना के दोषी पाते हुये दो हजार रूपये का जुर्माना तथा एक माह की कैद की सजा सुनायी थी। इसके हरवंश सिंह सहित अन्य दोनों आरोपियों ने कोर्ट में बिना शर्त माफी मागी थी तथा कोर्ट के आदेश का पालन किया था तब कहीं जाकर कोर्ट ने हरवंश सिंह सहित सभी आरोपियों को कुछ हिदायतें देकर सजा समाप्त की थी।
एक बार फिर भूमि खरीदी विवाद में उछला हरवंश का नाम-
इस हफ्ते जमीन खरीदी के मामले में इंका विधायक हरवंश सिंह और उनके पुत्र विवाद में उलझे हैं या नहींर्षोर्षो यही मामला मीडिया और लोगों की जुबान पर रहा हैं। मामले की शुरूआत यूं हुई कि जबलपुर से प्रकाशित होने वाले पीपुल्स समाचार पत्र ने जबलपुर डेट लाइन से एक समाचार प्रकाशित किया कि लख्नादौन की एक अदालत में एक परिवाद पेश हुआ हैं जिसमें इंका विधायक हरवंश सिंह और उनके पुत्र विवाद में आ गये हैं। कोर्ट ने पुलिस को निर्देशित किया हैं कि 18 जून 2010 तक जांच कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करे। इस समाचार में धनोरा थाने के अंर्तगत आने वाले ग्राम आमानाला के खसरा नंबंर 221,373,385 और 400 दिये गये थे जिनकी भूमि विक्रीत की गई हैं। इसक बाद दूसरे दिन स्थानीय दैनिक सिवनी युगश्रेष्ठ ने समाचार के कुछ और तथ्यों के साथ प्रकाशित किया और इसे इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी कवर किया। इसके एक दिन बाद विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ने एक खंड़न जारी कर यह कहा कि इस जमीन खरीदी में वे या उनके पुत्र का कोई लेना नहीं हैं। यह हमेशा की तरह उन्हें बदनाम करने की साजिश की हैं।भूमि घोटाले से सम्बंधित प्रकाशित समाचार और हरवंश सिंह के खंड़न करने से कुछ ऐसे सवाल पैदा हो गयें हैं जिनका लोग उत्सुकता के साथ जवाब तलाश रहें हैं। ग्राम आमानाला के उक्त प्रकाशित खसरों की भूमि के मालिक कितने और कौन कौन हैंर्षोर्षो क्या एक से अधिक मालिकाना हक वाली भूमि का विक्रय किसी एक मालिक ने बीते दिनों किया हैंर्षोर्षो क्या कानून के अनुसार ऐसा विक्रय किया जा सकता हैंर्षोर्षोक्या ऐसी रजिस्ट्री रजिस्ट्रार द्वारा पास कर दी गई हैं या अभी जप्त हैंर्षोर्षो यदि पास कर दी गई हैं तो क्या किसी सामान्य आदमी की ऐसी रजिस्ट्री सामान्य तौर पर पास हो सकती हैर्षोर्षो यदि हरवंश सिंह और उनके पुत्र के नाम ऐसी कोई रजिस्ट्री नहीं हुयी हैं तो फिर ऐसा कौन वजनदार बेनामी व्यक्ति हैं जिसके खिलाफ फरियादी की ना तो पुलिस ने सुनी और ना ही किसी अन्य अधिकारी नेर्षोर्षो क्या ऐसी कोई रजिस्ट्री किसी ऐसे खास बेनामी के नाम तो नहीं हुयी हैं जिसे भारी राजनैतिक या प्रशासनिक संरंक्षण प्राप्त हैं जिसक चलते फरियादी को कोर्ट की शरण लेना पड़ार्षोर्षोक्या जिले में ऐसे कोई ताकतवर कांग्रेसी या विपक्षी दल के नेता शेष बचे हैं जो हरवंश सिंह के खिलाफ षड़यन्त्र रचकर उन्हें फंसाने का प्रयास कर सकता हैंर्षोर्षो ये तमाम सवाल ऐसे हैं कि जिनके जवाब यदि जल्दी ही खुलकर जनता के सामने आ जाये तो इस मामले में अपने आप दूध का दूध और पानी का पानी हो जावेगा वरना यह भी लफ्फाजी के दौर में गुम कर रह जायेगा।
क्या धारा 420 और हरवंश सिंह में हैं चोली दामन का साथ-
इसे महज एक संयोग कहें या कुछ और कि भादंवि की धारा 420 याने धोखाधड़ी का हरवंश सिंह के खिलाफ यह कोई पहला मामला नहीं हैं।ब्लकि ऐसा कुछ रहा हैं कि मानो दोनों के बीच चोली दासमन का साथ रहा हो। इसके पहले भी तीन मामले और चर्चित रहें हैं। एक फर्म सतपुड़ा एग्रीकल्चर के पार्टनर के रूप में हरवंश सिह पर बकोड़ा सिवनी के आदिवासियों को दिये जाने वाले डीजल पंपों में धोखाधड़ी करने के आरोप सहायक पंजीयक सहकारी संस्था सिवनी ने अपने न्यायालय में सही पाये थे और 21 जून 1982 को पुलिस थाना सिवनी में एफ.आई.आर. दर्ज कराके कार्यवाही करने की मांग की थी। बाद में यह मामला विधानसभा में भी उठा था। दूसरा मामला सी.जे.एम. सिवनी के कोर्ट में क्र. 1650/84 धारा 420 एवं 34 में दर्ज हुआ जिसमें एक पिछड़े वर्ग का विधवा औरत गंगा बाई ने अपने वकील हरवंश सिंह पर यह आरोपित किया था कि उसने धोखे से उसकी जमीन पहले अपने भाई और फिर अपने नाम करा ली। मामला हाई कोर्ट तक गया लेकिन इसी बीच फरियादी गंगा बाई की मृत्यु हो गई। एक मन्त्री के रूप में हरवंश सिंह द्वारा गलत शपथ पत्र देकर हाउसिंग बोर्ड से प्लाट लेने और फिर पूर्व मुख्यमन्त्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा मामला हाई कोर्ट में पेश करनें के बाद प्लाट वापस कर देने का मामला भी चला था। इस जनहित याचिका का क्रमांक 5064/98 था। जिसमें कोर्ट ने आरोपियों को कुछ हिदायतें भी दी थी तथा सुभाष यादव के मामले में याचिका कत्ताZ पटवा को फटकार भी लगायी थी। और अब विधानसभा उपाध्यक्ष के पद पर रहते समय उन पर एक अल्पसंख्यक ने जमीन के मामले में हरवंश सिंह पर धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया हैं जिसका उन्होंने पुरजोर खंड़न किया हैं। लेकिन कोर्ट ने 18 जून तक मामले की जांच कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिये पुलिस को निर्देशित किया हैं। एक स्थानीय अखबार ने ऐसा कोई सगा नहीं जिसे ठाकुर ने ठगा नहीं हैडिंग से एक समाचार छापा था। इन्हें नजदीक से जानने वालों का दावा हैं कि वे अपने सियासी सफर में जब भी किसी नये पायदान पर पहुंचें हैं तो पिछले पायदान पर पहुंचाने वाले को धोखा देकर ही पहुंचें हैं। इतना ही इनके दरबार के नव रत्नों में एक भी रत्न ऐसा बाकी नहीं हैं जिसने धोखा ना खाया हो। विधि शास्त्र की किताब बन्द कर यदि राजनीति शास्त्र और समाजशास्त्र की किताब खोले तो धोखा खाने वालों की संख्या इतनी अधिक हो जावेगी कि यदि एक किस्से की दो लाइनें भी लिखी जायें तो एक महाग्रन्थ तैयार हो सकता हैं। इसलिये उनके निकटस्थ साथी ही अब यह कहने से नहीं चुकते हैं कि जिसने धोखा देने को ही सफलता का मूलमन्त्र बना लिया हो उससे अपन खुद बच कर निकल जाओ यही बड़ी उपलब्धि होगी।
माफी मांगने पर कोट्रZ के अवमानना की सजा हुई थी समाप्त हरवंश की-
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंड़ पीठ ने कंपलेंट पिटीशन सिविल/6/2002 में अपने निर्णय दिनांक 27 मार्च 2002 को म.प्र.राज्य परिवहन निगम के अध्यक्ष के रूप तत्कालीन गृहमन्त्री हरवंश सिंह को न्यायलय के अवमानना के दोषी पाते हुये दो हजार रूपये का जुर्माना तथा एक माह की कैद की सजा सुनायी थी। तीन आरोपियो पर यह आरोपित था कि उन्होंने कोर्ट के आदेशानुसार राज्य परिवहन निगम के कर्मचारी को भुगतान नहीं कर कोर्ट की अवमानना की हैं। फरियादी ने अवमानना की पिटीशन दायर की थी जिस पर हाई कोर्ट ने यह सजा सुनायी थी। इसके हरवंश सिंह सहित अन्य दोनों आरोपियों ने कोर्ट में बिना शर्त माफी मागी थी तथा कोर्ट के आदेश का पालन किया था तब कहीं
जाकर कोर्ट ने हरवंश सिंह सहित सभी आरोपियों को कुछ हिदायतें देकर सजा समाप्त की थी।

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