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24.5.10

धैर्य का इम्तेहान न लें

मनमोहन सिंह अभी आप को भूले नहीं हैं। उनको याद हैं आप सब। उन्हें याद है कि इसी जनता ने उन्हें कुर्सी सौंपी है। उन्हें याद है कि जनता महंगाई से बहुत परेशान है। जीवन कठिन हो गया है। चादर छोटी हो गयी है। लोग पांव ढंकते हैं तो सिर बाहर आ जाता है और सिर ढंकते हैं तो पांव खुल जाता है। देशवासियों का क्या दोष?

बड़ों की, अमीरों की, धनपतियों की बात नहीं कर रहा परंतु गरीब और मध्यवर्ग का मानुष तो वैसे ही परेशान रहता है। घर चलाना, बच्चों को पढ़ाना कोई आसान काम नहीं रहा। एक ईमानदार जिंदगी के लिए बहुत मुश्किल है। इसीलिए वे बेचारे तो हमेशा इसी कोशिश में रहते हैं कि जितनी बड़ी चादर हो, उतना ही पांव पसारें लेकिन अगर कोई उनकी चादर ही फाड़ने पर उतारू हो तो वे क्या करें। महंगाई ने यही तो किया। खाने-पीने के सामान से लेकर कपड़े, तेल, साबुन, बच्चों की किताबें, सबकी कीमतें बढ़ गयीं। छोटे दुपहिया से चलने वालों की मुश्किल तब और बढ़ गयी, जब पेट्रोल के दाम बढ़ा दिये गये।

आम आदमी एक तो महंगाई से त्रस्त था, दूसरे मनमोहन सरकार के मंत्री उसके घाव पर अपने जले-भुने बयानों का नमक छिड़कते रहे। कोई कहता कि उसके पास जादू की छड़ी नहीं है, जो छू दे और महंगाई नीचे उतर आये। कोई कहता उसे क्या मालूम महंगाई कब कम होगी, वह कोई ज्योतिषी तो है नहीं। अरे भाई, किस बात के मंत्री हो, जब तुम्हें कुछ भी नहीं पता, जब तुम कुछ भी नहीं कर सकते। अब क्या प्रधानमंत्री ज्योतिषी हैं जो उन्होंने कह दिया है कि दिसंबर तक महंगाई पर काबू कर लेंगे?

चलो इस तरह उन्होंने बहुत लंबा समय जनता से मांग लिया है। अगर उस समय भी महंगाई नीचे नहीं उतरी तो कोई न कोई वाजिब कारण तो होगा ही। जनता को पूरी ईमानदारी से बता दिया जायेगा कि महंगाई क्यों काबू में नहीं आ पायी। मनमोहन सिंह से इमानदारी की तो उम्मीद कर ही सकते हो। कई राज्यों में नक्सली सरकारों को परेशान किये हुए हैं, उन पर भी काबू करना है। वह भी कर लेंगे। बस आप थोड़ा धैर्य रखिये। जनता के पास और अस्त्र क्या है? धैर्य रखना और चुपचाप सरकारों और मंत्रियों की गैरजिम्मेदारी का खामियाजा भुगतना, जनता के ये दो महान कर्तव्य हैं और वह कहां इन्हें निभाने में कोई चूक करती है।

यह सरासर छल है, अन्याय है, प्रशासनिक नियंत्रण के अभाव का परिणाम है, समय से उचित और माकूल निर्णय न ले पाने का अंजाम है। आखिर इसका दुष्परिणाम जनता क्यों भुगते? सरकार को यह बात ठीक से समझ लेनी चाहिए कि इस तरह के वादे, बहकावे बहुत लंबे समय तक नहीं चलते। जनता धैर्य तो रखती है, पीड़ाएं चुपचाप तो सहती है लेकिन समय आने पर वह ठोकर भी मारती है। और उसकी ठोकर झेलना बड़े-बड़ों के वश की बात नहीं होती। इसलिए एक नेक सलाह मानें तो आम आदमी के धैर्य का इम्तेहान न लें।

2 comments:

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।

Tilak Relan said...

अब प्रधानमंत्री ने कह दिया है कि दिसंबर तक महंगाई पर काबू कर लेंगे? दिसंबर 2010 तक/
दिसंबर 2013 तक ?