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23.8.10

नहीं मरना चाहिये था, "राकेश पत्रकार"


पीपली लाइव देखने का मौका मिला। अनुषा रिजवी ने अच्छे विषय को लेकर फिल्म लिखी है। लगभग १०० मिनट की इस पिक्चर ने लोगों को बांधने का प्रयास किया। फिल्म में कई ऐसी चीजों से पर्दा उठाया गया है, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता था। हमें देखने को मिला कि कैसे ये नेता लोग किसी भी बात को इश्यु बनाते है। फिर उस पर राजनैतिक रोटियां सेंकते है। यहीं नहीं फिल्म में टीवी पत्रकारों को भी नहीं छोड़ा गया है। आज के समय में किस तरह ये जर्नलिस्ट टीआरपी के लिए कुछ भी करने को तैयार है।
फिल्म में एक किरदार है राकेश पत्रकार(नवाजुद्दीन सिद्की), जिसकी एक छोटी सी खबर पर बडे़ बड़े पत्रकारों का गांव में मेला लग गया था। वो बेचारा अपनी पहचान के लिए ना जाने कितना प्रयास करता है। लेकिन फिल्म के निर्माताओं ने उसकी ही बलि ले ली। देश में ना जाने कितनी छोटी छोटी जगहों पर ऐसे पत्रकार काम करते है। इनमें से कुछ स्ट्रिंगर होते है। सबसे पहले यहीं लोग होते है जो खबर को पैदा करते है। किंतु अपने करियर में उसका लाभ नहीं ले पाते है। वहीं दिल्ली अथवा किसी बड़े शहर के रिपोर्टर उस खबर से अपनी किस्मत को चमकाने का काम करते है। दिल्ली से फ्लाईट अथवा लग्जरी ए.सी. गाड़ीयों में आते है और पकी पकाई स्टोरी लेकर अपने नाम से बेचते है। छोटे पत्रकार केवल मुंह बाये उनको सर सर कह कर ही काम चलाते है। वो सोचते है कि शायद भविष्य में हम भी ऐसे बन पायेंगे। पीपली लाइव को देखकर उनके मन में कुछ ना कुछ तो उठा ही होगा। उन्हें लगा होगा कि उनके सपने केवल सपने ही रहेंगे।

बहरहाल, देश के इन क्षेत्रों में पत्रकारों की स्थिति चाहे कैसी भी हो। लेकिन फिल्म में उस छोटे पत्रकार राकेश (नवाजुद्दीन सिद्की) को मारना नहीं चाहिये था। पटकथा लिखने वाली अनुषा जी स्वंय पत्रकार है। उन्हें शायद ये जरूर सोचना चाहिए था, कहीं इससे किसी का दिल तो नहीं दुखेगा।

3 comments:

जितेन्द्र सिंह यादव said...

दिल तो दुखी होगा ये तो सभी भली भांति जानते हैं लेकिन क्या करें हकीकत तो बयाँ करना ही होगा . और उसमें हकीकत दिखाया गया हो जो हो रहा हैं

दीपक बाबा said...

मारना तो नहीं चाहिए.......... पर हकीकत येही है..

Anonymous said...

कुछ और दिखाते तो वह झूठ होता, सच दिखाया गया है. अगर दिखाया जाता की एक छोटी खबर के लिए उसे क्रेडिट मिला, उसे बड़े चैनल या अख़बार से लाखों की नौकरी का ऑफर मिला. तो क्या यह सच्चाई होती.

सच कडवा होता है, अब लोग सच नहीं देखना चाहते... क्योंकि इतना कडवा सच देखकर दिल दुखता है.