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28.8.10

क्या खाएं ? , कैसे खाएं ? , कहो तो भूंखे ही मर जाये ।

क्या खाएं ? , कैसे खाएं ? , कहो तो भूंखे ही मर जाये ।
पैसा सबके हाथ में ,  शुद्ध भोज्य नहीं है पास में  ।
गेंहू , चावल दाल सभी , फूल रहे हैं उर्वरको  से ।
उपर से उसमे भी मिलावट , नहीं कहीं है कोई राहत ।
दूध में पानी और पावडर , मिला रहे थे वर्षो से ।
अब तो उसमे मिला रहे है ,  यूरिया, सर्फ और स्टार्च ।
पनीर कहाँ अब असली है?, दही भी मिलती नकली है ।
बना रहे है आइसक्रीम , वॉशिंग पाउडर, सैकरीन से ।
पहले घी में मिलता था , चर्बी मिला डालडा ही ।
अब तो घी को बना रहे , मुर्दों की हड्डी से हम ।
चीनी में मिला चॉक पाउडर , मिर्चे में है ईंट पाउडर ।
काली मिर्च है बीज पपीता , धनिये में पशुवों की लीद ।
हींग में मिटटी मिला रहे ,  हल्दी में जहरीला रंग ।
काफी में है मिला चिकोरी , चाय है पहले वाली उबली ।
नामक का मान रखेगा कौन, खिला रहे है व्हाइट पाउडर ।
है तिल का तेल पुरानी बात , अब उसमे सब नकली बात ।
कद्दू , कोहड़ा , लौकी सब , फूल रहे इंजेक्शन से ।
पल में छोटी सी बतिया , एक साथ की होती है ।
केला,आम,अनार,पपीता , पका रहे है जहर से हम ।
रंग में रंगी हुयी सब्जियां , बिकती है बाजार में ।
नकली कत्था और सुपाड़ी , है पान की दुकान में ।
जहरीली स्प्रिट है बिकती , मदिरा के नाम पे ।
कैचप,सास, और जैम भी , बनता नकली फैक्ट्रियों में ।
हर असली में मिला है नकली, आज यहाँ बाजार में ।
भरता पेट नहीं मानव का , लाभ कमाने के लोभ से ।
क्या खाएं?, कैसे खाएं ?, कहो तो भूंखे ही मर जाये ।
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1 comment:

मनोज कुमार said...

रोचक कविता।