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16.9.10

सत्तर हाथ तो खिलखिला ही जाते!


आप सभी को नमस्कार,
आज से कुछ ही दिनों बाद दिल्ली अपने आलिशान खेल प्रान्गड़ में एक शाम उदघाटन के जश्न में डूबी हुई नज़र आएगी,जहाँ एक तरफ जगमगाती रोशनी होगी,वहीँ चारो तरफ विशेषतया आगे की पंक्तियों में विराजमान देश के माने जाने राजनितिक ब्यक्तित्व,हाँ कहीं कहीं आपको बिच बिच में विभिन्न खेलों से उभरे सितारे भी नज़र आ सकते हैं, और फ़िल्मी सितारे तो बिच में रहेंगे ही जो वहां पर विराजमान मेहमानों के साथ साथ मेजमानो तथा हजारों की संख्या में मौजूद जनता को पुरे समय झुमने पे मजबूर करते नज़र आयेंगे ,जी नज़ारा यहीं ख़तम नहीं हो जाता यहाँ किसी के बदनाम होने की बजाय पुरे समय करोडो रूपये की लागत में बना थीम गाना भी सबकी कानो में शिरकत देता रहेगा, इन सब के साथ साथ शेरा मशुमियत का रूप धारण कर सबके बिच में घूमता नज़र आएगा!अरे हा उदघाटन समारोह की शैर में एक महत्वपूर्ण चीज तो भुला ही जा रहा था,जी हाँ गुब्बारे अब इतना बड़ा आयोजन हो और गुब्बारे न हो ये तो अशम्भाव ही है आखिर गुब्बारे हर ख़ुशी के मौके पर ख़ुशी में चार चाँद जो लगा देते है लेकिन यहाँ गुब्बारे नहीं बल्कि सिर्फ गुब्बारा नगर आएगा, एक अजीब गुब्बारा,अब ये महत्वपूर्ण तो है ही,सुनने में आया है की सत्तर करोड़ के आस पास तो सिर्फ अकेले इसी ने लिए है जी हाँ यहाँ पर किसी ऐसे-वैसे गुब्बारे की नहीं बल्कि उस गुब्बारे की बात हो रही है जो उदघाटन समारोह की विशेष रूप से शान बढाता हुआ नज़र आएगा,अभी पिछले कई दिनों से तो समाचार पत्रों में अपनी झलक दे चूका है बाकि नज़ारा समारोह में,दरअसल ये गुब्बारा विशेष रूप से उदघाटन और समापन समारोह की शान बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जायेगा!अब यह “गुब्बारा” बेचारा चीज ही ऐसा है की इसका इस्तेमाल ख़ुशी के मौके पर हो ही जाता है वो चाहे जन्मदिन की पार्टी हो या फिर मैरिज युनिवेर्सरी या स्कूल का अनुअल कार्यक्रम यह तो हर जगह ही शोभा बढाता नज़र आ जाता है,और फिर इन छोटे-मोटे कार्यक्रमों की शोभा बढ़ाने के बाद ये गुब्बारे छोटे मोटे नन्हे हाथों की शोभा बढ़ाने के काम में जुट जाते है सो एक पंथ दुई काज वाला काम हो जाता है,लेकिन इस कई मीटर ऊंचाई और लम्बाई वाले बिचारे गुब्बारे का क्या होगा, आखिर अक्तूबर के आधे महीने के बाद ये गुब्बारा किस काम आएगा पता नहीं,काम तो काम इसके हिफाज़त के लिए फिर हजारों लाखों खर्च किये जायेंगे वो तो देख-रेख विभाग की ज़िम्मेदारी है,अब चुकी इतना बड़ा है की ये तो नन्हे मुने हाथों का क्या दाय्नाशोर भी अपना हाथ फैला दे तो उसके भी हाथ इसे नहीं पकड़ सकते, हाँ शायद अगर सत्तर करोन का कोई दूसरा गुब्बारा(उद्योग) बना होता या इसकी फैक्ट्री ही बनी होती तो शायद कम से कम सत्तर हाथ तो खिलखिला ही जाते और हमेशा उन हाथों में गुब्बारा दिखाई दे जाता जो शायद सपनो में भी न देख पाते हों,क्योंकि उनके माँ-बाप बेरोजगार जो ठहरे!अजी छोडिये अब इनके बेरोजगारी की बातों को,बेरोजगारी और भूख मरी की खबर तो रोज ही सुनने को मिल जाता है अब भुखमरी को ख़तम करने के लिए योजनाये तो सरकार चला ही रही है ना योजनाओं का बिच में ही एक्सीडेंट हो जा रहा है तो अब इसमें भूख का क्या दोष!अब इसके लिए देश में कोई आयोजन ना किया जाय ये कहा का इंसाफ है आखिर आज पुरे विश्व को अपने बारे में (गरीबी को छोड़ अमीरी)दिखने का एक मौका जो है जिसके लिए पहले ही हजारो करोड़ खर्च किये जा चुके हैं बाद में कितने होंगे पता नहीं,आखिर विदेशी खेलो के साथ-साथ भारत को करीब से देखने के लिए भी तो आ रहे होंगे अब ये अलग की बात है करोडो से बने सुन्दरता के साथ-साथ वो किसी भूख से बेहाल नन्हे नगे बच्चे की तस्बीर खीच कर अपने साथ ले जाये और वहां जाकर यहाँ की असलियत दिखाए!हाँ इसी पर बहुत पुरानी और प्रचलित दो लाइने याद आ गयी सो आगे बढ़ने से पहले एक नज़र उसपर-अरे सच्चाई चुप नहीं सकती बनावट के वसूलों से,खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से,अब दिल्ली को तो खोद-खोद कर घायल कर ऊपर से टिप-टॉप कर ही दिया गया है पता नहीं कितने घावों को कई वर्षों से झेल रही है अपनी ये राजधानी,शायद ढूंढ़ दिया जाय तो इसका कोई भी कोना ऐसा नहीं बचा होगा जिस पर वार ना हुआ हो!इसके बावजूद भी गरीबी,बेरोजगारी और भुखमरी अब जिस देश में इतने करोन सिर्फ आयोजनों में खर्च होता हो उसमे बेरोजगार ना-ना ये कहना सरे सर गलत होगा,यह काम तो कोई मज़बूत राष्ट्र ही कर सकता है ना जिसका हर घर,हर हाथ खुशियों से भरा हो,खैर कुछ भी हो कितनी भी गरीबी हो या कितने भी पैसे खर्च किये जाय कोई ना कोई ऐसी शक्ति तो अपने भारत के पास है ही जो कई मुशिबतों को झेलने के बाद भी शुरू से ही इसको मजबूत और महान बनाये हुए है और आशा के साथ-साथ गुजारिश है उस शक्ति से की भारत के पास वो हमेशा रहे की ताकि आगे भी इसे मजबूत और महान बनाये रखे,जयभारत……………!

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