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24.10.10

‘ईर्ष्या’ और उसकी की दो बहनें :Jealousy & Its Two Sisters



‘ईर्ष्या’ के बारे में सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि-


"Jealousy is an awkward homage which inferiority renders to merit." 

 Inferiority और Merit  के वास्तविक अर्थ से तो हम सभी बख़ूबी वाक़िफ़ हैं। लेकिन यहाँ इनका प्रयोग सांकेतिक है... यहाँ ये शब्द व्यक्तियों के लिए प्रयोग किये गये हैं। इन दोनों शब्दों का जो इंगितार्थ है, उसके आधार पर एवं इनके लक्षणों को ध्यान में रखते हुए मैं इन्हें क्रमशः ‘तुच्छ’ और ‘उच्च’ कहना चहूँगा।

कितना बेहतर होता, यदि Inferiority (तुच्छता) अपना समय, चिंतन और ऊर्जा किसी दूसरे की Merit (उच्चता)  का उपहास उड़ाने के बजाय अपनी ‘तुच्छता’ को ‘उच्चता’  में परिवर्तित करने में लगाती। आशय यही कि ‘तुच्छता’ निरर्थक निंदा करने में अपने समय-चिंतन-ऊर्जा का जो अपव्यय करती घूमती रहती है, वह सृजनात्मक न होकर, विनाशक है, बल्कि कहना चाहिए कि ‘आत्म-विनाशक’।

यदि `तुच्छता’ अपने चिंतन की दिशा बदलते हुए,  दृष्टि का मूल कोण बदलते हुए अपने अंदर प्रतिस्पर्द्धी भाव को जगा ले और अपनी योग्यता एवं शक्ति के विस्तार की दिशा में सक्रिय हो जाए तो.... निश्चित रूप से एक-न-एक दिन ‘ईर्ष्या’ स्वयं भी ईर्ष्या की पात्र बन सकती है! 

ईर्ष्या से बचने के जितने भी ज्ञात उपाय हैं, उनमें से मुझे सर्वोत्तम उपाय यही लगता है कि यदि हम दूसरों के सद्‌गुणों, विशेषताओं, योग्यताओं आदि की मुक्त हृदय से  प्रशंसा करना सीख लें, तो हम अपने मन में  ‘ईर्ष्या-भावना’ के उत्पन्न होने का मार्ग काफी हद तक अवरुद्ध कर सकते हैं।

अरे, ये क्या...ऽऽऽ? मैं तो ‘ईर्ष्या’ के बिन्दु पर ही अटककर रह गया। चलिए...कोई बात नहीं, अब आ जाते हैं उस नये आयाम पर जिसका मैंने लेखारम्भ में उल्लेख किया है।  

‘ईर्ष्या’ की दो बहनें और भी हैं; ये दोनों बहनें मनुष्य के लिए कम हानिकारक नहीं। इनका हानिकारक होना स्वाभाविक ही तो है, आख़िर बहनें किसकी हैं...‘ईर्ष्या’ की ही न? तो फिरऽऽऽ...! इनके स्वभाव में क्रियात्मक / व्यवहारात्मक नकरात्मकता (Behavioral Negativity) का आना स्वाभाविक ही है!

शास्त्रों में इनका (जिन्हें मैं प्रायः ‘जेलसी एण्ड सिस्टर्स’  कहता हूँ) सानिध्य त्याज्य बताया गया है। शास्त्रादेश को अनदेखा करके जो व्यक्ति इनकी संगत अपनाता है, उसके व्यक्तित्व में दोष तो उत्पन्न होता ही है...साथ ही वह अपना नुकसान भी करता है। कैसे...?  इसमें कोई दो राय नहीं कि ‘ईर्ष्यालु’ व्यक्ति अपने किसी लक्षित इंसान को कितना नुकसान पहुँचा पाता है, यह उन परिस्थितियों पर निर्भर करता है जिनमें वह अपने ‘लक्ष्य’ पर निंदादि माध्यम से क्रियाशील हुआ है या यूँ कहें कि प्रहार करने चला है! वह कितना सफल होगा, यह तो तत्कालीन परिस्थितियाँ ही बताएँगी। ...लेकिन इतना तो तय है कि वह सबसे पहला नुकसान स्वयं का ही करता है। इस बात को मैंने कभी अपनी  अंग्रेज़ी ग़ज़ल के एक शे’र में कहने की कोशिश की थी। प्रसंगतः वह शे’र यहाँ आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है :

Grudge is a 'corpian which stings-
Its bearer, seldom others bite.

ख़ैर...। 

‘ईर्ष्या’ की दो बहनों में से एक का नाम है- ‘असूया’।‘ईर्ष्या’ की सौतेली बहन है यह; बड़ी दुष्टा है। ढंग से पहचान लीजिए इसे! ‘छिद्रान्वेषण’  इसकी आदत मे शामिल है! सरल एवं मुहावरेदार भाषा में कहें तो... ‘दूसरों के फटे में टाँग अड़ाती है यह’! बड़ी काग-दृष्टि होती है इसके पास!  दूसरों के श्रेष्ठ गुण में भी बड़ी कलात्मकता व चतुराई से दोष-दर्शन कर लेती है। संस्कृत आचार्यॊं ने इसे कुछ यूँ परिभाषित किया है-
"असूया परगुणेषु दोषनिष्करणं।" 

स्मरण रखने की सुविधा के हिसाब से संक्षेप में कह सकते हैं कि-
दूसरों के गुण न सह पाना ‘ईर्ष्या’ है, जबकि दूसरों के गुण को अवगुण- दुर्गुण बताना ‘असूया’ है।

‘ईर्ष्या’ की दूसरी बहन है- ‘पिशुनता’। यह ‘असूया’ की सहोदरा कहलाती है। जी हाँ...सहोदरा, यानी समान ‘उदर’ अर्थात्‌ एक ही ‘पेट’ से उत्पन्न! यह भी कम शातिर नहीं..., बल्कि ‘असूया’ से एक क़दम आगे ही है। दूसरे का ‘अज्ञात दोष’ प्रकट करना इसकी मूल मनोवृत्ति है। इसकी प्रभाव-परिधि में आकर व्यक्ति अपने विरोधी के ऐसे-ऐसे अवगुण / दुर्गुण गिनाने लगता है जिनके बारे में पहले कभी सुना या जाना नहीं गया होता है। यह गुप्त रूप से गहरा प्रहार करने के लिए सदैव तत्पर रहती है। चुग़लखोरी और मिथ्या-निंदा के पथ की पथिक होती है यह। संस्कृत में इसका अर्थ कुछ यूँ बताया गया है-
"पैशुन्यं परदूषणम्‌।"  अर्थात्‌... ‘पर-दोष’ यानी पराये दोषों की चुग़ली करना पिशुनता है।
                                                            -जितेन्द्र ‘जौहर’
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आपको यह वर्णन / विवेचन कैसा लगा?  कृपया इस पर अपनी बहुमूल्य राय देना न भूलें। बेहतर हो कि आप खुलकर अपने विचार जोड़कर इस लेख को और भी अधिक ज्ञानवर्द्धक बनाएँ...  तथास्तु!


3 comments:

अर्पित अंशुमान said...

मेरे लिए यह एकाम नयी जानकारी है...आपको साधुवाद!

अर्पित अंशुमान said...

मेरे लिए यह एकाम नयी जानकारी है...आपको साधुवाद

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

bahut khub. aashirvad.narayan narayan