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22.11.10

पत्रकारिता कॉलेज पी गया छात्रों का पैसा




कों खां क्या चल रिया हेगा?केन लगे,कन्ने कट गए,सर पर दे रिया हे मिला मिला के......झीलों की नगरी भोपाल का अपना एक खास अंदाज है .भोपाल शहर अपनी खूबसूरती के लिए पूरे देश में जाना जाता है.साथ ही पत्रकारों की उद्गम स्थली अगर भोपाल को कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.भोपाल में समय के साथ बहुत तरक्की हुई.....मध्य प्रदेश में इसे एजूकेशन हब की उपाधि मिली...तो कई प्राईवेट समूहों ने यहाँ अपना वर्चस्व कायम किया.....ऐसा ही अपनी एक अलग सल्तनत बनाये हुए पीपुल्स समूह...जो कि स्वास्थ्य,शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर कदम बढ़ा रहा है ...मीडिया के बढ़ते ग्लैमर को देखते हुए पीपुल्स समूह ने २००७ में पीपुल्स पत्रकारिता शिक्षण संस्थान के नाम से एक पत्रकारिता महाविद्यालय की शुरुआत की.मध्य प्रदेश की पत्रकारिता से जुड़े कई नामचीन चेहरे इससे जुड़े.लेकिन अंदरूनी कलह और कॉलेज की गन्दी राजनीति के चलते धीरे धीरे ये सब लोग यहाँ से खिसकते गए.समस्या कॉलेज में पढाई की थी,प्रयोगात्मक रूप से छात्रों को सक्षम बनाने की थी.२००७ से करीब डेढ़ साल तक महाविद्यालय को सुचारू रूप से चलने का श्रेय तात्कालीन प्राचार्य विनोद तिवारी को जाता है.ये उनका व्यक्तित्व था कि वे व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर या प्रबंधन स्तर पर छात्रों की हर समस्या को सुलझा लेते थे.लेकिन विनोद तिवारी के जाने के बाद कॉलेज की स्थिति 'धोबी के कुत्ते' की तरह हो गई.न अब वह घर का रहा और न घाट का......बी.एन.गोस्वामी,पंकज पाठक,संदीप श्रीवास्तव ...एक एक कर सबने प्राचार्य का पद संभाला...लेकिन फिर कॉलेज का अंतर्कलह...और फिर शुरू हुआ इस्तीफों का दौर...

अंत में समूह की प्रबंधन टीम का हिस्सा आस्मां रिजवान को कॉलेज के प्राचार्य का पदभार सौंपा गया ...अभी तक आस्मां रिजवान,पीपुल्स समूह के मैनेजमेंट कॉलेज में व्याख्याता के तौर पर पढ़ाती थी.ऐसे में जब बागडोर आस्मां रिजवान ने संभाली तो पत्रकारिता के कॉलेज को उन्होंने मैनेजमेंट कॉलेज की लाठी से हांकना शुरू कर दिया..शायद पत्रकारिता कॉलेज चलने का अनुभव उनमें नहीं था.वे शायद भूल गईं थी कि उन्हें लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की उद्गम स्थली को क्रियान्वित करना है...हर छात्र कल का लोकतंत्र की आवाज है.अपनी तानाशाही आदत से मजबूर आस्मां रिजवान ने पहले तो सत्र के बीच में ही महाविद्यालय की फीस में इजाफा कर दिया...जबकि विवरण पुस्तिका में ऐसा कुछ भी उल्लिखित नहीं था..छात्रों को को प्रवेश के समय पूरी फीस के बारे बता दिया गया था....यदि उन छात्रों को बीच सत्र में फीस बढ़ने की बात पता होती तो शायद कई छात्र यहाँ पर प्रवेश नहीं लेते...लेकिन एक साल की पढाई के बाद अचानक फीस में हुई बढ़ोत्तरी को छात्रों ने अपने भविष्य को देखकर स्वीकार कर लिया........२००७-१० के बीच बी.एस.सी.(ई.एम् )करने वाले छात्रों का कोर्स जून २०१० में समाप्त हो गया....छात्रों ने जब विद्यालय में जमा अपनी कोशन मनी की मांग की...तो महाविद्यालय प्रबंधन की और से उन्हें झुनझुना पकड़ा दिया गया.....जबकि महाविद्यालय में प्रवेश के समय छात्रों को जो विवरण पुस्तिका मिली थी उसमे साफ़ तौर पर महावि.कोशन मनी,पुस्तकालय कोशन मनी का जिक्र किया गया है ....
यशवंत जी कोशन मनी का मतलब पैसों की पुनर्वापसी होता है....लेकिन महाविद्यालय प्रबंधन ने छात्रों को ५०० दुपाये देकर चलता कर दिया....बस अपनी प्रबंधकीय आवाज़ से छात्रों की आवाज़ को दबाने की कोशिश की जा रही है...................बस तानाशाही रवैये से चल रहा है कॉलेज ....
कृष्ण कुमार द्विवेदी
छात्र(मा.रा.प.विवि,भोपाल )

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