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18.11.10

श्रद्धा और आस्था का अपमान…………..!


आज तेजी से बदलते परिवेश में पुरानी संस्कृति और सभ्यताओं के साथ-साथ भगवान के प्रति जुडी लोगों की श्रद्धा और आस्था के साथ भी खिलवाड़ देखने को मिल रहा है जहाँ आज भी कुछ प्राणी भगवान को खुश करने के लिए पूजा पाठ के सही विधि को ही अपनाते है या उसमे भूल से भी हुई छोटी सी त्रुटी पर गहरा खेद प्रकट करते हैं, वहीँ दूसरी तरफ पैसा कमाने के लिए कुछ लोगों के द्वारा कुछ ऐसे गाने और प्रोग्राम टीवी पर प्रस्तुत किये जा रहे हैं जिसमे भगवान के नाम व उनके क्रियाकलापों को इस कदर दर्शाया जाता है जिसका भाव श्रद्धा और आस्था के विपरीत,बेहद अनुचित व अशोभनीय लगता है,ऐसे गानों को सुनकर व प्रदर्शनों को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे वो नाम भगवान के हो ही ना………………………..यहाँ संझेप में इस पर आपका ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश कर रहा हूँ जैसे कुछ दिन पहले बेहद प्रचलित एक भोजपुरी गाने में देवों के देव कहे जाने वाले महादेव भोले नाथ शिव शंकर,माता पार्वती जी तथा साथ में मांगलिक कार्यक्रमों में प्रथम पूज्य श्री गणेश जी के नाम को कुछ इस प्रकार से उच्चारित किया गया है जिसका भाव श्रद्धा और आस्था का अपमान करता ही नजर आता है, गाने के बोल के अनुसार शंकर जी तथा पार्वती जी को आपस में बात-चित करते दर्शाया गया है जिसमे दोनों लोग गणेश जी के नाम का सहारा ले रहे है और एक मुद्दे पर आपस में नोक झोक तथा एक दुसरे से प्रार्थना कर रहे हैं, दरअसल गाना कुछ इस प्रकार है – ना हमसे भंगिया पिसाई ए गणेश के पापा हम नइहर जात बानी……………. अब ऐसे बोलों से भगवान को कितना खुश किया जा सकता है या भगवान को खुद ऐसे बोल कितना भाते है इसका अंदाजा लगाना उतना ही कठिन काम है जितना की इसका अंदाजा लगाना कि ऐसे बोलों को भजन,आरती या दोहा किस श्रेणी में रक्खा जाय! इस प्रकार का अपमानजनक हरकत करने वाला ये गाना समाज में एकलौता नहीं बल्कि अक्सर कभी कभी टीवी पर भी कुछ ऐसे कार्यक्रम देखने को मिल जाते हैं जिसमे भगवान को मोबाइल पर बात करते हुए दिखाया जाता है अब ये हास्यपद कार्यक्रम के अंश हो वो अलग की बात है लेकिन कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप में श्रद्धा और आस्था के प्रति खिलवाड़ ही होता है और अपमान ही नजर आता है! दरअसल फ़िल्मी धुनों का इस्तेमाल कर भगवान के नाम का कीर्तन करने से तो किसी भी तरह से उनके सही नाम का उच्चारण ही होता है जबकि परम पूज्य संतों,महात्माओं व अनेको विद्वानों का ऐसा मानना है कि भगवान को जिस रूप व जैसी श्रद्धा के साथ याद किया जाय वो अपने भक्तों के लिए उसी रूप व वैसी श्रद्धा के अनुसार उपलब्ध हो जाते हैं खैर ये तो बिलकुल ही सही है कि भगवान सिर्फ श्रद्धा के प्यासे है बस उनको तो भक्तो के द्वारा इकठ्ठा किये सामानों कि लिस्ट में सबसे ज्यादा उस भक्त कि उनके प्रति श्रद्धा ही भाती व नजर आती है लेकिन ऐसे में इस प्रकार के उच्चारणों वाले गानों के साथ कौन सी श्रद्धा झलकती है पता नहीं, पर शायद जिस प्रकार से उनके नामों को आज तोड़ मरोड़ कर परोसा जा रहा है उसे श्रद्धा का रूप तो बिलकुल भी नहीं माना जा सकता!
ऐसे गाने या इस प्रकार के उच्चारण ना तो सिर्फ श्रद्धा के साथ खिलवाड़ बल्कि उन अनेको लाखों करोणों भक्तों की भगवान के प्रति जुडी आस्था और विस्वाश पर एक करार प्रहार करते हैं इतना ही नहीं आने वाली पीढ़ियों के लिए तो ये और भी घातक लगते हैं जैसा की ये सबका मानना है की खेत में जो बीज लगायी जाती है वही काटने को मिलती है बिलकुल उसी तरह आने वाली पीढ़ी वही ग्रहण करेगी जो उसके सामने परोसा जायेगा! आज बदलते परिवेश में तेजी के दौर में, मशीनीकरण के युग में काम करने या जीने के तरीके में बदलाव तो ठीक लेकिन सृष्टी के रखवाले श्रद्धा के प्यासे भगवान के भाव के साथ खिलवाड़ और उनके पूजा पाठ के विधियों में बदलाव को तो बिलकुल भी उचित नहीं ठहराया जा सकता और शायद उज्जवल भविष्य के लिए ऐसा बिलकुल भी हितकर नहीं है!

1 comment:

Manoj Kumar Singh 'Mayank' said...

प्रिय धर्मेश जी,
इस तरह के अश्लील गीतोँ को लिखने वाले नालायक गीतकार, गानेवाले गायक, जानबूझ कर हमारी राष्ट्रीय चेतना मेँ जो विष घोलरहे है, आने वाली पीढ़ी उसका खामियाजा भुगतेगी।बधाई हो,एक अच्छा मुद्दा चुना है