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27.12.10

शराब पीना समाज के लिए हानिकारक है-ब्रज की दुनिया

आजकल बिहार की सुशासनी सरकार पश्चाताप के मूड में है.आज पहली बार मुझे ब्लॉगर होने पर गर्व हो रहा है.क्योंकि मुझे खुशफहमी है कि मेरे पिछले लेख के चलते बिहार सरकार इन दिनों पश्चाताप के ताप से उबल रही है.मुख्यमंत्रीजी ने उन्हें मेरे द्वारा गलतियों का राजकुमार बताने से नाराज नहीं होते हुए अपनी अतीत की गलतियों को सुधारते हुए घोषणा की है कि आगे से शिक्षकों की बहाली से पहले उनकी परीक्षा ली जाएगी.यहाँ मैं आपको यह बता दूं कि हमारे मुख्यमंत्री जो घोषणा करें उस पर वे अमल भी करें यह आवश्यक नहीं है.उदाहरणों की कोई कमी नहीं है.बहुत पहले वर्ष २००७ के सितम्बर-अक्तूबर में मार्क्सवादी नेता वासुदेव सिंह के इस आरोप पर कि बिहार सरकार प्राइवेट कंपनी बनकर रह गई है उन्होंने बयान दिया था कि आगे से उनकी सरकार संविदा (कांट्रेक्ट) के आधार पर नियुक्ति नहीं करेगी बल्कि पुरानी सेवा शर्तों पर करेगी लेकिन ऐसा हुआ क्या?सौभाग्यवश उस समय मैं पटना हिंदुस्तान में रिपोर्टर था और मैंने ही वासुदेव बाबू के बयान को हिंदुस्तान में सबमिट किया था.खैर इतना तो मानना ही पड़ेगा कि यह बड़ा अच्छा प्रायश्चित है.पहले तो शिक्षकों को नियुक्त पहले कर लिया जाता था उनकी मेधा परीक्षा बाद में ली जाती थी.यानी पहले गलती फ़िर समीक्षा और अंत में सांकेतिक परीक्षा.अब पहले परीक्षा ली जाएगी.ठोक-पीटकर देखा जाएगा कि शिक्षक को गिनती-पहाडा आता है कि नहीं या फ़िर वह जरुरत पड़ने पर आवेदन-पत्र भी लिख पाएगा कि नहीं.लेकिन इससे पहले सुशासनी सरकार ने जिन अयोग्य शिक्षकों की बहाली कर दी है उनका वह क्या करेगी?आदमी का अचार तो डाल सकते नहीं,हटाने से वोट बैंक खोने का भय है.इसका तो सीधा अर्थ यह है कि इस सरकारी गलती की सजा हमारी कई पीढ़ियों को बर्बाद होकर भुगतनी ही पड़ेगी और ये लोग रिटायर होने तक बिहार की ग्रामीण जनता के सीने पर मूंग दलते रहेंगे.आगे जो शिक्षक परीक्षा के द्वारा सेवा में आएँगे (अगर नीतीश जी ने अपनी तजा घोषणा पर अमल किया) उन्हें भी इन तिकड़म में विक्रम शिक्षकों की गन्दी राजनीति का सामना करना पड़ेगा.ये बेचारे पढ़ा तो सकते नहीं उनमें से अधिकतर में इसकी योग्यता ही नहीं है सो ये तो भाई स्कूल में राजनीति ही करेंगे.वो कहते हैं न खाली दिमाग शैतान का घर होता है.लेकिन बेहाल जनता के दुखों को देखकर सुशासनी सरकार के घुटनों से आंसुओं का सैलाब यहीं नहीं रूका और दो दिन बाद यानी २२ दिसंबर को साल के सबसे छोटे दिन मुख्यमंत्रीजी ने फ़िर से एक बड़ी घोषणा की.वैसे घोषणा इतनी भी बड़ी नहीं थी लेकिन बिहार की प्रिंट मीडिया ने इसे जरूर बड़ा बना दिया.बतौर नीतीश कुमार अब शराब की प्रत्येक दुकान के आगे बहुत मोटे-मोटे शब्दों में लिखा जाएगा कि शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है जिससे नशे में डूबा आदमी भी आसानी से इस इबारत को पढ़ सके.कितने अच्छे विचार हैं!अब तक न जाने कितने मासूम अब तक यह तथ्य नहीं जानने के चलते दवा के नाम पर इस जहर का सेवन कर रहे थे.अब उन नासमझ बेचारों को संभलने का अवसर मिल जाएगा.सरकार एक अच्छी माँ की तरह पहले शराब की दुकाने खोलेगी और फ़िर प्यार से अपनी संतानों यानी प्रजा को समझाएगी-ले ले ले ले मेले लल्ला.शराब खरीदो लेकिन पियो नहीं क्यों?क्योंकि इससे सेहत ख़राब होती है.खरीदना-बेचना जुर्म नहीं है लल्ला क्योंकि इससे सरकारी खजाने में ईजाफा होता है बस पीना मत और लल्ला मान जाएगा.दारू को खरीदने के बाद नाली में बहा देगा और घर जाकर सरकारी गोशाले से आया दूध पीयेगा.यहाँ मैं यह भी बताता चलूँ कि उसी दिन सुशासन बाबू ने सरकार गोशाले खोलने की घोषणा भी की है.कितने महान विचार हैं सरकार के.ऐसी मासूमियत देखी है कहीं?न जाने कितने वर्षों से सिगरेट के प्रत्येक डिब्बे पर लिखा रहता है कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.पहले जहाँ यह कृशकाय शब्दों में लिखा रहता था अब मोटे और हृष्ट-पुष्ट हर्फों में लिखा रहता है.लेकिन क्या इससे इसका पीना कम हो गया?नहीं न.इसे ही तो कहते हैं सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे.सरकार ने गांधीगिरी भी कर ली और सिगरेट-शराब की खपत भी कम नहीं हुई.खैर सिगरेट तो केंद्र सरकार के हाथों की चीज ठहरी.लेकिन सुशासन बाबू आपलोगों को अगर लोगों के गिरते स्वास्थ्य की इतनी ही चिंता है तो क्यों नहीं शराब के निर्माण और विक्रय पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा देते हैं.आधुनिक चाणक्य महोदय यह शराब सिर्फ व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए ही हानिकारक नहीं है बल्कि यह आप भी अच्छी तरह जानते हैं कि यह समाज के लिए भी नुकसानदेह है.न सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बल्कि नैतिक स्वास्थ्य के लिए भी.यह न सिर्फ व्यक्ति के आचरण को भ्रष्ट करता है बल्कि इसके सेवन से पूरे समाज का आचरण गिरता है और रसातल में चला जाता है.साथ ही रसातल में चला जाता है पूरा समाज.इसलिए जब तक आप पश्चाताप और प्रायश्चित के मूड में हैं तब तक मैं विलम्ब न करते हुए आपसे एक विनती कर लेता हूँ.वैसे भी मौसम और नेताओं के मूड का क्या ठिकाना कि कब बदल जाए.तो अर्ज किया है कि शराब की दुकानों के बाहर यह लिखने के बजाए कि शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है यह लिखा जाए कि शराब पीना समाज के लिए हानिकारक है.धन्यवाद और यह धन्यवाद मैं बिना पिए पूरे होशोहवास में दे रहा हूँ वो भी एडवांस में.इस उम्मीद में कि आप सच्चे मन से गरीब बिहारी समाज को नशे की चपेट में आने से बचाने की कोशिश करेंगे.हम जानते हैं कि आपको इस समय जनता का अपार समर्थन प्राप्त है और आप ऐसा कर सकते हैं.रही बात राजस्व के नुकसान की तो इसके तरीके और भी हो सकते हैं शराब बेचने के सिवा.न हो तो नरेन्द्र मोदी से सीख लीजिए.डरिए मत जनता इसे सांप्रदायिक कदम नहीं मानेगी.

5 comments:

A.G.Krishnan said...

You are right, we must keep liquor away from our life.

Jai Shri Krishna

कविता रावत said...

शराब की दुकानों के बाहर यह लिखने के बजाए कि शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है यह लिखा जाए कि शराब पीना समाज के लिए हानिकारक है.धन्यवाद ...

..,,.... ...शराब पीकर ही तो एक गरीब अपने घर परिवार को चिंता किये बिना हर दिन नबाब बन जाता है और जीते जी अपने को और अपने परिवार को नरक के द्वार पर धकेल लेता है.... ...
बहुत सार्थक प्रस्तुति ...आभार

akhand gahmari said...

khy bhaey sharab ki dukan daro se dusmani hai kay .aare bhai rooji rote chalane do yaaro. peit par mat maro laat

ब्रजकिशोर सिंह said...

anand bhaee meri dushmani kisi bhi vyakti se nahin hai.meri dushmani to sirf sharab se hai.

Anonymous said...

kash aapki vinti sarkar bhi sune
dhanyawad