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31.1.11

संग से बनाम तक


सुनहरी,मीठी और सफल जिन्दगी के सपने को सजोये इस धरती पर पैदा होने वाला हर शक्श (लड़का या लड़की) पैदा होने के बाद हर रोज एक नए सपने को देखने व उसको सवारने में लगा रहता है! और फिर सबके जिन्दगी में हमेशा अनेको ऐसे पल आते हैं जो यादगार बन जाते हैं लेकिन विशेषतया एक युवा को उसकी जिन्दगी में सबसे यादगार और सुनहरा पल तब मिलता है जब उसके और किसी विपरीत सेक्स के नाम के बिच में संग शब्द का इस्तेमाल किया जाता है! जबकि कुछ दिनों बाद यही शब्द कुछों को तो उसके ख्वाबों तक पहुँचाने के साथ न जाने कहाँ से अनेको रंग उसके जिन्दगी में लाकर भर देता है,लेकिन अक्सर कुछों की जिन्दगी में ऐसी परिस्थितियां पैदा हो जाती है जब यही शब्द एक मज़बूरी बन बनाम में परिवर्तित हो जाता है!
दरअसल एक युवा के लिए उसकी जिन्दगी में संग शब्द का बेसब्री से इंतजार रहता है और हो भी क्यों नहीं यही तो वो शब्द है जो उसको किसी दुसरे के साथ जोड़ता है जो हकीकत में उसका अपना है मानो एक युवा मन ही मन हर पल इश्वर से यही प्रार्थना करने में लगा रहता है की शादी के अटूट बंधन के निमंत्रण-पत्र में उसका संगी जो भी बने वो उसके जिन्दगी को रंगीन बनाते हुए अनेकों खुशियों का अम्बार लेकर आए…………………….! जबकि हकीकत में यह मीठा ख्वाब हर किसी शक्श को उसकी जिन्दगी में नहीं मिलता अक्सर ही यह देखने को मिलता है की कभी तो यह संगी हजारों खुशियाँ देता है लेकिन कभी लाख्नों गम और दिक्कतें………………………..! आखिर ऐसा क्यों? वो कौन सी परस्थितियाँ होती हैं जो एक सुनहरे और मीठे शब्द संग को बनाम में परिवर्तित कर देती हैं? वो क्या मज़बूरी होती है जब एक सुनहरा शब्द बनाम में परिवर्तित होकर समाज के सामने आता है? क्या इससे जिन्दगी को और सफलता मिलती है या फिर अनेको दिक्कतें? अगर यह बनाम शब्द किसी को सुकून पहुंचता हो तो फिर इसका इस्तेमाल पहले ही क्यों नहीं? और अगर इसके इस्तेमाल से दिक्कतों की तिजोरी खुलती हो तो फिर इस शब्द को निमंत्रण ही क्यों? दरअसल ये कुछ ऐसे सवाल है जिनका उत्तर ढूँढना और समाज को इसके प्रति एक्टिव होना आज बेहद जरुरी है क्योंकि हर रोज पता नहीं कितने संग बनाम में परिवर्तित हो जाते हैं! अब देखिये न अक्सर ही यह देखने को मिलता है की कभी कोई लड़की शादी के बाद अपने पति के किसी दुसरे के साथ शादी रचाने से परेशान होकर अपने और उसके नाम के बिच इस बनाम शब्द का प्रयोग करती है जबकि कभी कोई लड़का अपनी बीबी के गलत आचरण से तंग होकर अपने और उसके बिच इस शब्द को आमंत्रित करता है आखिर ऐसा क्यों? क्या वो लड़की जो किसी लडके की शादी के बाद भी उससे बंधने के लिए तैयार होती है उसे इस बात का एह्शाश नहीं होना चाहिए की इससे किसी के जिन्दगी पर क्या असर पड़ेगा और उसके इस कारनामे से एक दिन उसी के जैसी एक लड़की की जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी? या फिर एक शादीशुदा ब्यक्ति किसी दूसरी लड़की को अपने जाल में फसा कितना सुख पा सकता है और उसके इस कारनामे से कितनी जिंदगियां बर्बाद होने को तैयार है? सिर्फ शादी ही नहीं अक्सर आचरण और दहेज़ भी इस बनाम शब्द को आमंत्रित कर देते है जबकि एक ब्यक्ति को अपने संगी के प्रति एक बेहतर आचरण उसके नजर में और ऊपर ले जाने के साथ साथ अनेको बुलंदियों पर पहुंचता सकता है! और फिर जब जिन्दगी को हमी इन्शानो के द्वारा नरक और स्वर्ग बनाया जाता है तो फिर स्वर्ग को छोड़ नरक क्यों? जबकि नरक को दूर धकेल स्वर्ग क्यों नहीं? जिसमे अनेको खुशियों के साथ-साथ सुख और शांति उपलब्ध है!

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