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22.3.11

कफ़न में जेब नहीं होती
अर्थ आवश्यक है ,अंतिम नहीं !एक पड़ाव ,बस भर गए जितनी आवश्यकता थी !अब आगे की यात्रा जहां अर्थ को भी छोड़ना होगा !बुद्ध होना है तो राजसी खजाने को साथ लेकर नहीं चल सकते !
तथागत  होने के लिए राजपाट छोड़ना ही पड़ेगा !धन तुम्हारी आध्यात्मिक यात्रा का सेतु कदापि नहीं बन सकता  !स्विस बैंक में धन जमा करने से तुम्हारे जैन होने पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन महावीर होने के लिए तो खाली होना पड़ेगा !  बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए तिजोरियां साथ लेकर चलने का कोई प्रावधान नहीं ,एक कमंडल ही काफी है !मार्ग थोड़ा कठिन है ,दुर्गम है !तुम्हारी मर्सडीज़ गाड़ियां इस यात्रा में साधक नहीं हो सकतीं !राजकुमार सिद्धार्थ ने भी लौटा दिया था अपने रथ को !मीरा भी निकल पडी थी ,एक राजरानी होने के अहम् को त्याग कर ,एक राजपूत  राज घराने के वैभव को छोड़कर !राजसी परम्पराओं और ,मर्यादाओं को तोड़कर ,निकल पडी मीरा एक साध्वी बन कर नंगे पाँव गलियों में खंजरी बजाती ,गाती --सूली ऊपर सेज पिया की !धन ,दौलत ,मोहर अशर्फियाँ कुछ भी तो साथ लेकर नहीं चली मीरा !ह्रदय अगर प्रेम की अकूत सम्पति से भरा है तो भौतिक सम्पदा कोई मायने नहीं रखती !मीरा अगर अर्थ की अर्थ हीन स्पर्धा में उलझ जाती तो कृष्ण से वंचित रह जाती ,प्रेम से वंचित रह जाती ,आध्यात्म से वंचित रह जाती !
               गो धन ,गज धन ,बाज  धन और रतन धन खान
                जब  आवे  संतोष  धन ,सब  धन  धूरि  समान   !
                संतोष ही एक मात्र धन है जो प्रेम के खजाने का मोती है ! अर्थ तुम्हें "अहंम " से भरता है !धर्म तुम्हें "प्रेम "से भरता है !अर्थ को साधन के रूप में स्वीकार करना स्वीकार्य है बशर्ते ये तुम्हारा एक मात्र लक्ष्य न हो !क्यों की धनार्जन की अंधी दौड़ में तुम कुछ ऐसी विलक्षण संवेदनाओं को खो देते हो जिन्हें धन से खरीदना नितांत असंभव है !अर्थ तुम्हें तुम्हारे अपनों से तोड़ता है ,प्रेम तुम्हें समग्र से जोड़ता है !
                              एक सूफी फकीर किसी गाँव में महमान थे !गाँव के सभी व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण थे लेकिन आपसी वैमनस्य भी अपने चरम पर था !अगर सोच धनात्मक नहीं तो धन आने पर व्यक्ति की प्राक्रतिक संवेदनाएं विकृत हो जाती हैं !धन और प्रेम प्रतिलोमानुपाती है !धन का आयाम बढ़ता है तो प्रेम का क्षरण होने लगता है !रात्रि भोज का आयोजन हुआ !खाने में स्वादिष्ट खीर परोसी गई थी ! गाँव का मुखिया पूछ बैठा -"हे महा महिम ,जब हम निर्धन थे तो बड़ा आपसी सदभाव था ! धन आया तो साथ में अहंकार भी लाया ,क्यों ?प्रय्तुत्तर  में फकीर ने गाँव वालों को अपनी झोली से निकाल कर कुछ चम्मचें थमा दीं - "लो ,खीर का आनंद लेने के लिए इन चम्मचों का उपयोग करो ! " लेकिन गाँव वाले हैरान ,चम्मचें  इतनी लम्बी थीं कि खीर मुंह के बजाय कान से भी पीछे जा रही थीं !स्वादिष्ट खीर
और खाने में असमर्थ ! एक व्यक्ति खीज कर बोला -" बाबा ये क्या तमाशा है ?स्वादिष्ट खीर ,ऊपर से भूख ,लेकिन  ये चम्मचें तो खाने में बाधा बन रहीं हैं !"फकीर मुस्कराया -" बाधा चम्मचें  नहीं तुम्हारी सोच  है !तुम्हारा झूंठा अहंकार है !क्यों कोशिश करते हो कि खीर तुम्हारे ही मुंह तक पहुंचे , क्यों नहीं खिलाते अपने सामने वाले को ताकि वो तुम्हें खिलाये !"गाँव वालों ने फकीर की बात स्वीकार की और एक दूसरे को खीर खिला कर संतुष्ट हुए !सोच धनात्मक हो तो मार्ग स्वतः ही निकल आता है !निसर्ग के समीकरण सहज हैं ! जितना दोगे ,मिलेगा !
                       विश्व की जो सभ्यताएं धन पर ठहर गईं ,वो धर्म से वंचित रह गईं !जो राष्ट्र भौतिकता पर रुक गए वो आध्यात्म से विमुख हो गए !आज पश्चिम  क्यों उन्मुख है पूरब की और ?क्यों कि वो भौतिकता से ऊब चुके हैं !ये सच है कि किसी भी राष्ट्र की प्रोद्योगिकी
संम्पन्नता के लिए अर्थ महत्वपूर्ण है लेकिन कटु सत्य यह भी है कि आध्यात्मिक सुख इससे आगे है !शुद्धोधन ने बहुत कोशिश की राज कुमार सिद्धार्थ का भौतिक पलायन रोकने की !राज दरबारियों ने भोग-विलास के सभी साधन जुटाए !लेकिन क्षणिक भौतिक सुख सिद्धार्थ से बुद्ध बनने की प्रक्रिया को रोक नहीं सके !अगर सिद्धार्थ भोग-विलास में डूब जाते तो सारा विश्व इस विलक्षण आध्यात्मिक घटना से वंचित रह जाता !
                                        धन विसर्जन की प्रक्रिया है प्रेम ,अहंम विसर्जन की प्रक्रिया है आध्यात्म !अहंम धन के समानुपात में बढता है !व्यक्ति जितना धन वान होगा उसका अहम् उतना ही बड़ा होगा !और फिर शुरू होगी एक अंतहीन अहंकारी आर्थिक प्रतियोगिता !धन की रक्षा के लिए दरवाजों पर दरबान खड़े करने पड़ेंगे !धन अपने साथ डर भी लाता है !धन आने पर प्रेम की प्राकृतिक भूख शने शने क्षीण होने लगती है !बड़े बड़े औद्योगिक घरानों के भाई भाई एक दूसरे के प्रतिद्वंदी और विरोधी हो जाते हैं !भौतिकवादी आम आदमी तो कहीं तक क्षम्य हैं लेकिन बड़ी टीस होती है जब बाबा और बापू आध्यात्म की उल्टी डगर ,बाज़ार वाद की और निकल पड़ते हैं !बुद्ध ने अपने रथ को अवश्य लौटा दिया था लेकिन उनके तथाकथित अनुयायी और अवतार अभी भी लग्ज़री गाड़ियों का मोह नहीं छोड़ पाये !यह आध्यात्मिक दिवालियापन है !
                          आध्यात्मिक सुख जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी !लेकिन भौतिक सुख तुम्हारी अंतिम सांस के साथ समाप्त हो जाता है ,क्यों कि कफ़न में जेब नहीं होती !अपने जीवन को मेरे प्रेम कहें !
प्रशांत योगी ,यथार्थ मेडिटेशन इंटर्नेशनल ,धर्मशाला ,  094188 41999

                              
                  

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