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26.5.11

कभी यहाँ भी एक बस्ती बसती थी....!!

कभी यहाँ भी एक बस्ती बसती थी....!!

कल जो बस्ती गिराई गई उस बस्ती में मेरा कोई नहीं था|
औरतें बच्चें बूढ़े और कई लोग जिनके सर पर इस झुलसती धुप के सोले गिर रहे थे उन मेसे मेरा कोई नहीं था।

स्कूल जो कभी कच्चा पक्का था,जो बनते बनते इक मोल बनकर कई बच्चों का जीवन झुलसा गया उनमे से मेरा कोई नहीं था । में तो कोंनवेंट स्कूल मे पढ़ा था |

उन स्कुल में, मैं या मेरे घर से कोई कभी पढने न गया है और न ही जायेगा क्या पता उनका स्टान्ड्रड देख हम लोग लज्जा जायेंगे|

उस ओर जिस ईमारत की नीव खोदते खोदते अपनी कबर खोद खुद दफ़न हो गया उन मजुरो में मेरा कोई नहीं था मैं तो अपने आलिशान बंगले मे ऐ.सी. ओन कर के आराम से सोता हुं |

मेरी कोई दुकान कभी नहीं टूटी , मेरा कोई घर कभी नहीं टुटा मैं तो बस दूर से दुसरो के घर को टूटते देखता रहा और देखता रहता हुं।

ये सब ख्याल मेरे दिमाग मे चल रहे थे तभी कहीं अचानक से मेरा दिल जोर से धड़का जैसे मुझसे बोला तू क्यूँ बेकार का परेशान होता है इन सब मैं कहाँ कोई तेरा था जो इतना मायूस होता है|
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1 comment:

तेजवानी गिरधर said...

अच्छी अभिव्यक्ति है