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28.7.11

राष्ट्र निर्माण की ओर कैसे बढ़ें ?

श्री अटल बिहारी वाजपेयी को मैं यह आलेख समर्पित करता हूँ । इसलिए कि अपनी असफलता के बावजूद वो भारतीय प्रजातंत्र में अबतक के महानतम प्रधान मंत्री हैं ।हिन्दुओं के साथ साथ लखनवी मुसलमानों का भी आदर उन्हें प्राप्त रहा है ।


जब राष्ट्र निर्माण की बात आती है तो प्रश्न उठता है कि क्या आज राष्ट्र नहीं है ? है भी और नहीं भी ।


है ,क्योंकि नहीं होने पर इसके निर्माण का भी प्रश्न नहीं उठता । 'नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः । ' -गीता । मेरी कल्पना में राष्ट्र है और चारों ओर वह सामग्री विखरी पड़ी है , जो इसके इतिहास का जीवित भग्नावशेष है । उसी की तलाश और रचनात्मक अव गुम्फन । यही तो करना है हमें ।





राष्ट्रनिर्माण कोरा आदर्शवाद नहीं है । अतः ऐसे लोगों को हमें सादर दरकिनार कर देना चाहिए जो आदर्शवादी लफ्फाजी से हमें खतरों के प्रति असावधान करते हैं तथा सब्जबाग दिखा कर भोले भाले लोगों की वाह वाहियाँ लूटते हैं । ऐसे लोग स्वयं भी भोले होते हैं अतः सादर ।





दूसरा बड़ा ख़तरा गद्दारों से है । गद्दार हमारे घर में ही रहते हैं । फिर हरेक व्यक्ति में अनेक व्यक्ति रहते हैं ।


अतः गद्दार हमारे मन में भी हो सकते हैं । उनके प्रति हमें उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाना चाहिए । क्योंकि निकाले जाने पर वो विभीषण (यद्यपि विभीषण अपनी श्रीराम भक्ति के लिए आदरणीय हैं ) की तरह शत्रु के संबल बन जाते हैं ।


पर उपेक्षित होने पर उनके अन्दर राष्ट्रभक्त अगर कहीं है तो वह जागना चाहता है । जगे हुए राष्ट्रभक्त को उपेक्षित नहीं करना चाहिए पर गद्दारी के हर एक कृत्य की उन्हें सजा अवश्य मिलनी चाहिए । अपनी गलती के लिए अपने खिलाफ भी सजा मुक़र्रर करनी चाहिए । क्रमशः ।








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