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31.8.11

जनमानस की त्रासदी।


जनमानस की त्रासदी।
दिनांक- 31/8/2011
अन्ना का अनशन खत्म हुआ उनकी तिनो प्रमुख मांगो पर संसद मे आखिर कार सहमती बन ही गई। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके इस आंदोलन मे हमारे समाज के प्रत्येक जाति धर्म के लोगों ने बड़-चढ़ के हिस्सा लिया, हालांकि उनके अनशन करने के तराके से लेकर विधेयक के कुछ प्रावधानो से समाज कुछ एक लोग अवश्य़ सहमत नही थे। लेकिन यह कोई जरुरी नही है कि समाज मे उत्पन्न होने वाले प्रत्येक तरह की बातो पर सभी एक मत हो जैसे कि एक राज्य के राज्य के सभी लोग राजा से खुश हो या सभी के हित मे उनके निर्णय हो ऐसा कदापि नही है, लेकिन जिन बातों से साधारणतहः बहु संख्या मे लोग जिस बात से सहमत हो या लोगों का फायदा हो रहा हो उसे सर्व नान्य मान लिया जाता है चाहे ऐसे लोगों का समाजिक स्तर से लेकर किसी भी वर्ग के हो। लेकिन इस बात को सिसी भी एक कौम, जाति या वर्ग से जोड़ने का कोई औचित ही नही बनता है लेकिन इसे समाज किसी भी एक जाति, धर्म या वर्गो से जोड़ने का अर्थ सिर्फ मुद्दे का राजनीतिकरण या व्यक्ति विशेष के निहित स्वार्थ से ही जुड़े हुए होने के कारण समाज मे स्थापित कोई भी नियम कानून के फयदे कोई भी जात-पात उँच-निच गरीब-अमिर नही देखती है नियम या कानून मे समाज के सभी लोगों का बराबरी का दर्जा एवं एक समान लागू होता है। जहाँ तक प्रश्न है अन्ना के टिम मे व्यक्ति विशेष वर्ग, जाति, समुदाय के लोगों को अपने इस आंदोलन मे शामिल होने के लिए न मना किया और नही बोला गया यह तो जुड़ने वाले व्यक्ति के उपर निर्भर करता है कि बह इस आंदोलन के मुद्दों से सहमत हो या न हो यह किसी के लिए बाध्यकरी नही था। रह गई बात टिम मे पद या शामिल होने और  करने कि यहाँ यह प्रश्न उठना लाजमि है जब व्यक्ति विशेष या कौम जब अन्ना के आंदोलन करने के तौर तरिके से लेकर विधेयक के प्रावधानो से ही सहमत नही थे ते उनके शामिल होने या न होने का प्रश्न ही नही उठता है जैसा कि उन्होने बाद मे जारी अपने वक्तव्य से घोषणा भी किया। तो उनके शामिल होने या न होने पर किसी व्यक्ति विशेष पर दोषारोपण करना कहाँ तक उचित है यह बात बही लोग जाने लेकिन इस आंदोलन से न जुड़ कर उन्होने खुद अपने आप को और लोगों को समाज के मुख्य धार से काटने और अलगाव को प्रार्थमिक्ता दे कर सरासर इस मुद्दे पर राजनीति करने की या अपने आप को उजागर करने जैसी ओछी हरकतो को अंजाम देने मे लगे रहे। जहां तक अन्ना हजारे के इस आंदोलन के आयोजन पर भी लोगों का मत अलग-अलग है कुछ एक लोगों को कहते सुनते देखा गया कि आदोलन मे कई एक देशी विदेशी NGO का पैसा लगा। जिस पर एक आध समाचार भी प्रकाश मे जरुर आए लेकिन मीडिया मे इस बात पर तूल नही पकड़ा जिसके परिणाम स्वरुप देश मे ज्यादा हो हल्ला नही मच पाया। खैर अगर विदेशों के NGO से भारत मे फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने और इसके लिए आंदोलन को सहयोग मे यह धन दिया या लिया गया तो वास्तव मे यह हमारे लिए एक शर्म की बात हैँ कि जिस देश के लोगों का अरबों-खरबों रुपए काले धन के रुप मे विदेशी बैंको मे जमा हो उस देश को देश के उत्थान और सामाजिक क्रियाकलापों को अंजाम देने के लिए विदेशी शासन सत्ता और लोगों के सामने अपना हाथ फैलाते हैँ। जरा सोचिए जिसके घर मे धन गड़ा हो वह व्यक्ति फटे कपड़ो मे सुखी रोटी खा कर अपना दिन गुजारने के लिए मजबूर हो इस दुनिया मे उससे बड़ा दुर्भाग्यशाली और कौन हो सकता है ?                 

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