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30.9.11

तुम्हारे बिना

* [कवितायेँ ]
१ - तुम्हारे बिना
अब तुम्हारे बिना
मेरा जी नहीं लगता कही ।
अब इस बात को
मैं कविता बनाकर
नहीं कह सकता ,
कविता बनानी ही आती तो
मैं जी न गया होता
तुम्हारे बिना !
जी नहीं पा रहा हूँ मैं
तुम्हारे बिना । #

२ - बदनाम होने का क्या
वह तो किसी भी कामपर
हो सकते हो ,
अच्छा काम करने पर भी । #

३ - मानो तो देव
नहीं तो पत्थर ,
किसी ने आज तक
उसे पत्थर माना हो
तो बताइए ! #

४ - मैं मिट्टी हूँ
मैं आकार में हूँ ।
यदि तुम मिट्टी की मूर्ति से
शिला - अहिल्या से
प्यार कर सको तो
मेरे पास आओ
मैं तुम्हे स्वीकार करूंगी
लेकिन तुम
मिट्टी की तरह नहीं
एक मनुष्य की तरह
मुझे प्यार करो । #

५ - मै हूँ तुम्हारे
बुरे दिनों का साथी
तुम्हारी ख़ुशी का
मैं हिस्सेदार नहीं ।
खुदा करे -
न बुरे दिवस आयें
तुम्हारे पास
न मैं आऊँ । ##
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2 comments:

mridula pradhan said...

bahut achchi lagi......

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें