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27.1.12

व्यंग्य - क्रिकेट के नायक और खलनायक

राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
इतना तो है, जब हम अच्छा करते हैं तो नायक होते हैं। नायक का पात्र ही लोगों को रिझाने वाला होता है। जब नायक के दिन फिरे रहते हैं तो उन पर ऊंगली नहीं उठती और जो लोग ऊंगली उठाते हैं, उनकी ऊंगली, उनके चाहने वाले तोड़ देते हैं। नायक की दास्तान अभी की नहीं है, बरसों से ऐसा ही चला आ रहा है। जब तक आप नायक हो, कोई कुछ नहीं कहेगा, साथ ही कहने वाले की खटिया खड़ी हो जाती है।
भारतीय क्रिकेट में भी इन दिनों चाहने वालों की नजर में ही उनके नायक, खलनायक बन बैठे हैं। बल्लेबाजों के एक बेहतरीन शॉट देखने वाले आंखफोड़ाऊ दर्शक भी टीवी के सामने से गायब है। कई तो टीवी सेट फोड़ बैठे हैं। जाहिर सी बात है कि जब टीवी तोड़ेंगे तो उनके नायक सहयोग के लिए आएंगे नहीं। इस तरह अपनी किस्मत भी फोड़ी जा रही हैं। वैसे में और भी मुश्किल है, जब नायक, खलनायक बन बैठा हो। आस्ट्रेलिया में जिस तरह भारतीय क्रिकेट व खिलाड़ियों की किरकिरी हो रही है और दमखम रखने वाले बल्लेबाजों की काबिलियत पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस बीच ऊंगली तोड़ने वाले ही ‘ऊंगली’ उठाने लगे तो फिर...।
ऐसे में मुझ जैसे क्रिकेट के प्रशंसक को भी दुख हो रहा है, लेकिन मैं सोच भी रहा हूं कि कुछ समय के अंतराल में कैसे, कोई ‘भगवान’ से ‘शैतान’ बन जाता है ? क्रिकेट के ‘भगवान’ भी खलनायक माने जा रहे हैं। ‘दीवार’ में भी दरारें पड़ने की बात कही जा रही है। ‘वेरी-वेरी स्पेशल’ को खस्ताहाल कहा जा रहा है। ‘मिस्टर कुल’, का ठंडे में भी तापमान गिर गया है। फैंस, क्रिकेट के ‘सरताज’ के सिर से ‘ताज’ उतारने पर आमादा है। ऐसा हाल, मैंने कई बार देखा है कि खिलाड़ियों को नायक बनाकर फिदा हुए जाते हैं, फिर खलनायक बनाकर पुतले जलाए जाते हैं और पोस्टर फाड़े जाते हैं।
हमें यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि इन्हीं नायकों ने कई उपलब्धियां दिलाई हैं, वर्ल्ड कप जिताएं हैं और न जाने कितनी बार विदेशी जमीं पर बादशाहत साबित की हैं। रिकार्ड पर रिकार्ड बनाए हैं, यह क्या कम है, हमारे लिए। देश का नाम रौशन करने में कोई कोताही नहीं बरती। इस स्थिति में हमें नायकों के दुख की घड़ी में साथ होना चाहिए।
देश के क्रिकेट फैंस को क्या हो गया है, जो ‘बूढे़ शेरों’ को बल देने के बजाय पीछे हो जा रहे हैं। मेरी नजर में यह बिल्कुल गलत है। जब हालात ‘भगवान’ के खराब चल रहे हैं तो उनके साथ हमें होना चाहिए। ये अलग बात है कि हम अधिकतर कहते रहते हैं कि ‘भगवान’ हमारे साथ हमेशा होते हैं, मगर अभी स्थिति ऐसी है कि हमें ‘भगवान’ के साथ खड़ा रहना है। हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि यही खिलाड़ी अपना बल्ला घुमाते थे तो हम खाना भूल जाते थे। जब ये हारते हैं तो हम रोते हैं। यहां तक गुस्से में टीवी सेट को फोड़ डालते हैं। क्रिकेट के चक्कर में बीवी से अनबन हो जाती है। उनके कारण बरसों से ‘फैंस’ दुबले हुए जा रहे हैं। फिर भी वे नायक, आज खलनायक बन बैठे हैं। हमें विचार करना चाहिए, कहीं हम गलत तो नहीं ? हम भाग्य पर विश्वास करते हैं, जरूर उनका ‘भाग्य’ साथ नहीं होगा। नहीं तो मजाल, कोई हमारे दमदार खिलाड़ियों को आऊट करके दिखाए। वे मैदान में उतने ही चिपके रहते हैं, जितना बरसों से टीम में चिपके हुए हैं।
क्रिकेट के ‘भगवान’ का महाशतक देखने के लिए आंखें पथरा गई हैं। महीनों से एक ही धुन सवार है कि कब ‘भगवान’ अपने बल्ले से ‘एक शतक’ टपकाएंगे, लेकिन ‘शतक का रस’ बल्ले की शाखाओं से टपक ही नहीं रहा है। अब क्या कहें... उन्हें जो समझ लें...।

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