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29.3.12

कुतर्कों का माया जाल बुनने का चलन...?


भारत के थल सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह द्वारा प्रधानमंत्री को सेना के बारे में लिखे पत्र के लीक हो जाने के बाद सारे देश के मीडिया में जो हंगामा मचा है , उसे देख कर मीडिया की नियत पर संदेह होता है कि, मीडिया को देश की चिंता कम , अपने आप को मशहूर करने क़ी ज्यादा है .बजाय इसके कि देश हितों को प्राथमिकता दी जाये , ज्यादा फोकस इस बात पर है कि मामले को चटपटा कैसे बना कर दर्शकों या पाठकों के सामने कैसे परोसा जाये .
मीडिया का एक वर्ग तो इस मुद्दे पर बाकायदा बहस चला रहा है , जिसमें सेना , सरकार और भ्रस्टाचार की जम कर चीर फाड़ की जा रही है , वह भी इस हद तक कि, मानो सर्वज्ञता के एकमात्र ठेकेदार यहीं हों और जो वह कह रहे है वह गलत हो ही नहीं सकता . .
दरअसल भारत का मीडिया इस भ्रम का शिकार हो चुका है कि उससे बड़ा न कोई ज्ञानी है और न जानकार, हालाँकि ऐसा है नहीं .
अगर गौर से देखा जाये तो कटु सत्य यह है कि आज अन्शुमान मिश्र जैसे लोग मीडिया मैनेज कर किसी के खिलाफ कुछ भी ,कह कर देश को बरगला सकते हैं और अरुण जेटली के एक नोटिस पाते ही , माफ़ी मांग कर गिडगिडाने लगते हैं ..
यही हाल नेताओं का भी है , लाईम लाईट में आने के लिए कुछ भी बोल देना उनका शगल बन गया है , जैसे पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा के पुत्र कुमारस्वामी का वक्तव्य कि जब उनके पिता प्रधानमंत्री थे, तो हथियार दलालों ने उनसे सम्पर्क किया था .
भारत की ” “पवित्र गाय” बन गया है , भारत का मीडिया और नेता , कि चाहे कुछ भी कहो , जनता उनके कथन को “मन्त्र ” मान लेती है. तात्पर्य यह है कि न तो किसी को देश हित की चिंता है और न ही जन हित की .
सब अपने अपने को चमकाने में लगे हैं , देश गर्त में जाता हो तो जाये . सेना देश की रक्षा करती है और अगर सेना प्रमुख को ले कर या फिर देश की सुरक्षा व्यवस्था के मुद्दे पर सवाल खड़े किये जायेंगे . तो जनता का विश्वास कैसे कायम रहेगा .
इसी कम को करते कोई विदेशी पकड़ा जाता है , तो उसे देशद्रोह की संज्ञा दी जाती है , पर आज ये सारा कम तो हमारे अपने लोग कर रहें हैं .पर उनसे कोई इसका ज़वाब नहीं मांग रहा . क्या इसलिए कि……….देशद्रोह करना भारत में अपराध नहीं रहा ?
“”आज कुतर्कों का माया जाल बुनने का चलन चल पड़ा है ..देश भाड़ में जाता है तो जाये .”"

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