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25.3.12

क्या दैवीय विचारों की हार होगी ?

क्या दैवीय विचारों की हार होगी ?

अन्ना के अनुभव यथार्थ के नजदीक रहते हैं ,वो जो कहते हैं वह जमीनी हकीकत है ,आम
आदमी अन्ना में अपना अक्श ढूंढ़ता है क्योंकि उसे भी मालुम है कि उसका नेता चोर है ,
कपटी है,झूठा है ,मायावी है,फरेबी है ,धूर्त है.

हमें दैवीय और आसुरी शक्तियों के संघर्ष के बारे में मालुम है .हम पाखंडी साधू वेशधारी
रावण कि कुटिल नीतियों से अनजान नहीं हैं ना ही हम दुर्योधन और शकुनी को भूले हैं
हमें जयचंद भी याद है .सभी काल में दैवीय शक्तियां हमें पिछड़ती हुई महसूस होती है
मगर सत्य यही है कि विजय हमेशा दैवीय शक्तियों कि ही हुई है.

अन्ना और उसकी टीम भी हमारी तरह इंसान ही तो है ,इंसान होने के कारण लालसायें
भी पनप सकती है .हम सिर्फ अंगुली उठा सकते हैं मगर अपने गिरेबान में झाँक कर
देखने से परहेज करते हैं .अन्ना का किस दल से क्या ताल्लुक है या कौन किससे क्या
चाहता है ,यह मुख्य बात नहीं है .अन्ना या अन्ना टीम ही धर्मराज है ,यह भी मुख्य बात
नहीं है .मुख्य बात है आम भारतीय कि हो रही दुर्दशा  ,अन्ना और उसकी टीम इस
बात पर आम भारतीय के साथ है और आम भारतीय के अधिकारों के लिए लडती हुई
दिखती है .

यदि आम लोगों कि भलाई के लिए ,उनके अधिकारों के लिए एक साधारण व्यक्ति
संघर्ष कर रहा हो तो हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम अपने भले के लिए उस व्यक्ति
का साथ दे .

हम अन्ना कि आलोचना करे या उनकी योजना पर तर्क कुतर्क करे उससे क्या हम
अपने अधिकार पा जायेंगे ?अन्ना के आन्दोलन को कमजोर करने का मतलब आम
गरीब भारतीय को कमजोर करना है क्योंकि यह आन्दोलन हर भ्रष्ट अधिकारी ,भ्रष्ट
नेता ,भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी के खिलाफ है .

आज कोई सा भी राजनीतिक दल जन लोकपाल से सहमत नहीं है ,जन लोकपाल से
सहमत है समाज के कुचले हुए वो लोग जो इन भ्रष्ट तत्वों का शिकार बन चुके हैं .


यह देश भी अन्ना के साथ तब तक ही खडा रहने वाला है जब तक यह आन्दोलन राजनीती 
के कीचड़ से दूर दैवीय भाव से आसुरी शक्तियों के खिलाफ लड़ा जाएगा .यदि अन्ना या 
अन्ना टीम दैवीय गुणों से हटकर स्वार्थ के पथ पर चली जायेगी तो इस आन्दोलन कि 
लौ स्वत: ही मिट जायेगी .

अन्ना के विचार यदि सरल लगे ,शुद्ध लगे ,आम लोगों के हित वाले लगे और उनके
विचारों से यदि दबे कुचले वर्ग को अपना अधिकार मिल सकने कि मध्यम सी भी
संभावना दिखती हो तो हमें अन्ना के विचारों का समर्थन करना ही चाहिए ,यह
वक्त कि पुकार भी है .

अगर हम दैवीय विचारों का साथ नहीं देकर उनकी खिल्ली उड़ायेंगे तो दुर्योधन कि
सभा में भीष्म  जैसे ही होंगे ,अन्याय को अन्याय नहीं कहने और आसुरी शक्तियों
का साथ देने के कारण भीष्म का अंत भी सुखद नहीं रहा .हम भी यदि इस समय
दैवीय विचारों के खिलाफ लामबंद हो जायेंगे तो  हमारी आने वाली पीढियां चुपचाप
असुरों का अन्याय सहन करती रहेगी और हमें नपुंसक समझेगी .

दैवीय विचार भले ही अभी कमजोर लग रहे हो मगर आखिर में आसुरी विचारों
का दमन होगा ही, यह भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ लंबा लड़ा जाने वाला वैचारिक और 
 क्रान्ति का युद्ध है भले ही अभी शैशव अवस्था में होने के कारण कमजोर लग रहा
 हो मगर समय पाकर विजय पथ कि और बढ़ जाएगा,इसमें तनिक भी संदेह नहीं है  .      

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