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29.3.12

आम लोगों ने कहा- समझ से परे है ममता का यह फरमान

शंकर जालान





कोलकाता। सरकारी व सरकारी सहायताप्राप्त राज्य के विभिन्न पुस्तकालयों में रखे जाने वाले समाचारपत्रों को लेकर राज्य की मुख्यमंत्री व तृणणूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी सरकार के फरमान को विभिन्न पार्टियां जहां गलत बता रही हैं, वहीं आम लोग भी इस आदेश को सहज रूप से गले नहीं उतार पा रहे हैं। आम लोगों का कहना है कि संभवत: देशभर में ममता बनर्जी पहली ऐसी मुख्यमंत्री या किसी पार्टी की प्रमुख होंगी, जिन्होंने इस तरह का फरमान जारी किया है। लोगों का मत है कि समाचार पत्र को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है और ममता ने अपने फैसले से इस स्तंभ को ध्वस्त करने की कोशिश की है।
इस बारे में वृहत्तर बड़ाबाजार के कई लोगों से पूछा गया तो लगभग सभी लोगों ने इस गैर जरूरी बताया। लोगों ने कहा- ममता बनर्जी की अपनी पसंद हो सकती है वे निजी तौर पर किसी अखबार को पंसद या नापसंद कर सकती हैं, लेकिन पुस्तकालय में रखे जाने वाले अखबारों के बारे में उनका आदेश सरासर गलत है।
सर हरिराम गोयनका स्ट्रीट के रहने वाले साधुराम शर्मा ने बताया कि खर्च में कटौती करने के मसकद से मुख्यमंत्री या राज्य सरकार उन पुस्तकालयों को राय दे सकती है कि सरकार तीन या चार या फिर पांच अखबार का खर्च ही वहन करेगी। जहां तक अखबारों के चयन की बात थी यह अगर पुस्तकालय अध्यक्ष पर छोड़ा जाता तो ज्यादा बेहतर होता।
इसी तरह रवींद्र सरणी के रहने वाले आत्माराम तिवारी ने कहा कि संख्या और भाषा तक तो ममता बनर्जी की हां में हां मिलाई जा सकती है। लेकिन ममता बनर्जी ने हिंदी, बांग्ला और उर्दू के अखबारों के नाम का जिक्र कर लोगों को उनके खिलाफ बोलने का मौका दे दिया है। लोगों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने अपने फरमान में हिंदी का एक, उर्दू का दो और बांग्लाभाषा के पांच अखबारों को जिक्र किया है। इससे उनकी मंशा साफ हो जाती है कि वे पुस्तकालय में आने वाले लोगों को वही पढ़ाना चाहती है, जो उनके या उनकी सरकार के पक्ष में हो।
वहीं, पेशे से वकील कुसुम अग्रवाल का कहना है कि आर्थिक तंगी तो एक बहाना है। बात दरअसल पैसे की होती तो ममता पुस्तकालयों में केवल अंग्रेजी अखबार रखने की वकालत करती। क्योंकि हिंदी, बांग्ला और उर्दू की तुलना में अंग्रेजी अखबार सस्ते हैं। मजे की बात यह है कि रद्दी में भी अंग्रेजी अखबार अन्य भाषाओं के अखबार की अपेक्षा अधिक कीमत पर बिकते हैं।
ध्यान रहे कि ममता ने जिन तीन भाषाओं के आठ अखबारों के नाम का उल्लेख किया है, वे कहीं ना कहीं तृणमूल कांग्रेस से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। ममता द्वारा सुझाव गए आठ अखबारों के नामों में से हिंदी, बांग्ला और उर्दू अखबार के प्रमुख को ममता ने ही में पश्चिम बंगाल से राज्यसभा में भेजा है।

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