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13.3.12

पहले नशे की पागले हालत

चला लिखने तो तेरा चेहरा आँखों में आ अटका ;
कि जैसे अब्र में बेसब्र वो भर रात हो भटका ।
किसकी कूबत है जो समझे हमारे दर्द का आलम ,
चलो छोड़ो बताना क्या ज़माने को है अपना गम ।
पर मैंने
कलम लाई थी खोज कर तो कोई बात अच्छी थी ,
गुजर गयी जो मस्ती में वो हसीं रात अच्छी थी ।
रोज सजती है मेहदी हाथों में और आँखों में काजल
मगर पहले नशे की पागले हालत अच्छी थी ॥

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