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29.5.12

जीवंत नदी गंगा

गंगा जैसे हमारी आत्मा का प्रतीक हो गई है क्या कारण होगा गंगा के गहरे प्रतीक बन जाने का की हजारो वर्ष पहले कृष्ण भी कहते है की नदियों में मै गंगा हु? गंगा नदियों में विशेष उस अर्थ में नहीं है। गंगा से बड़ी विशाल नदिया प्रथ्वी पर है। गंगा कोई लम्बाई में, विशालता में, चौडाई में किसी द्रष्टि से कोई बहुत बड़ी गंगा नहीं है। ब्रह्मपुत्र है, और अमेजन है, और ह्वांगहो है, और सेकड़ो नदिया है जिनके सामने गंगा फीकी पड़ जाए। पर गंगा के पास कुछ और है, जो प्रथ्वी पर किसी भी नदी के पास नहीं है और उस कुछ और के कारण भारतीय मन ने गंगा के साथ एक ताल-मेल बना लिया। एक तो बहुत मजे की बात है की पूरी प्रथ्वी पर गंगा सबसे ज्यादा जीवंत नदी है, अलाईव. सारी नदियों का पानी आप बोतल में भरकर रख दे सभी नदियों का पानी सड जायेगा, गंगा भर का नहीं सड़ेगा। गंगा में ईतनी लाशे हम फेकते है। गंगा में हमने हजारो-हजारो वर्षो से लाशें बहाई है। अकेले गंगा के पानी में सब कुछ लीन हो जाता है,हड्डी भी। हड्डी भी पिघलकर लीन हो जाती है और बह जाती है और गंगा को अपवित्र नहीं कर पाती । गंगा सभी को आत्मसात कर लेती है, हड्डी को भी। गंगा अछूती बहती रहती है। उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. लेकिन यह बड़े मजे की बात है की जो नदी गंगा में नहीं मिली , उस वक्त उसके पानी का गुड्धर्म और होता है और गंगा में मिल जाने के बाद उस पानी का गुड्धर्म और हो जाता है। क्या होगा कारण ? केमिकल तो कुछ पता नहीं चल पता। रूप से इतना तो पता चलता है की विशेषता है और उसके पानी में खनिज और केमिकल्स का भेद है। लेकिन एक और भेद है वह भेद विज्ञान के ख्याल में आज नहीं तो कल आना शुरू हो जाएगा और वह भेद है गंगा के पास लाखो लाखो लोगो का जीवन की परम आवस्था को पाना। जब भी कोई अपवित्र व्यक्ति पानी के पास बैठता है पानी के भीतर प्रवेश करने की बात तो अलग पानी के पास बैठता भी है तो पानी प्रभावित होता है। पानी उस व्यक्ति की तरंगो से आच्छादित जाता है।लाखो वर्ष से भारत के मनीषी गंगा के किनारे बैठकर प्रभु को पाने चेष्टा करते रहे है। और जब भी कोई एक व्यक्ति ने गंगा के किनारे प्रभु को पाया है तो गंगा उस उपलब्द्धि से वंचित नहीं रही, गंगा भी आच्छादित हो गई है। (ओशो के विचार)

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