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23.7.12

पं० रामप्रसाद बिस्मिल चंद्रशेखर आज़ाद को क्विक सिल्वर कह कर बुलाते थे।


आज अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती है।कक्षा ८ में पढा गया मातृभूमि के लिये खंडकाव्य मेरी प्रिय पुस्तकों मे आज भी शामिल है।वर्ष २००६ में पं०रामप्रसाद बिस्मिल के जीवन पर आधारित मेरे प्रबंध काव्य'बिस्मिल चरित'को लिखते समय मेरे अवचेतन में कही'मातृभूमि के लिये' की अनुगूंज थी'बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि पं० रामप्रसाद बिस्मिल चंद्रशेखर आज़ाद को क्विक सिल्वर कह कर बुलाते थे।।बिस्मिल चरित 'में चंद्रशेखर ाज़ाद को भी मैने 'एक्शन'की योजना में चर्चा करते चित्रित किया है।आज आज़ाद को श्रद्धांजलि स्वरूप भेंट कर रहा हूं------
 द्वारिकापुर की घटना ने,
क्रांति -कर्म दुर्घटना ने
घाव किये मन पर भारी,
पर,बिस्मिल थे आभारी
छूट गये थे कलुषित कर्म
किंतु हवा थी बेहद गर्म
साधन कहां से लायेंगे
दल को कैसे चलायेंगे?

आया तभी उन्हें संदेश
'साथी बन सकता है विदेश'
ज़र्मन -पिस्तौलेम-बंदूक
और बमों के कुछ संदूक

ले जहाज है रस्ते में
मिल सकते हैं सस्ते में
कुछ दंद करो या फंद
मुद्रा का पर करो प्रबंध

पाना खेप ज़रूरी है
पैसों की मज़बूरी है
सेंट्रल-वर्किंग -कमेटी में
एच०आर०ए० की मीटिंग में

वाद-विवाद लगा होने
परिसंवाद लगा होने
'धन को कैसे जुटायेंगे
अस्त्र कहां से लायेंगे'

सबसे पूछा कैसे हो?
ऐसे हो या वैसे हो?
धन तो हमें जुटाना है
हथियारों को पाना है

'एक्शन पर तो रोक है
नहीं हमें भी शौक है
पर,लडना है गोरों से
मक्कारों से चोरों से'

इनको ही अब लूटेंगे
इनके ताले टूटेंगे
टूटेंगे सरकारी ही
हम इसके अधिकारी भी

भारत भू को लूटकर
भोली जनता कूटकर
गोरे रकम जुटाते हैं
और कहां से लाते हैं?

लूटेंगे राजस्व हम
करेंगे यह अवश्य हम 
हो सरकार पे 'एक्शन'
चाहे जो हो 'रिएक्शन'

सुनकर सभा का यह प्रस्ताव
आया बिस्मिल को भी ताव
"लूटेंगे हम रेल को
गोरे देखें खेल को"

बोले तब अशफाक यह
ठीक नहीं प्रस्ताव यह
शक्ति हमारी सीमित है
शासन -सत्ता असीमित है

क्रोध में झपटेगी सरकार
झेल न पायेंगे हम वार
ताकत हमें जुटाने दो
ऊचित समय को आने दो

बीच में भभक उठे आज़ाद
"व्यर्थ न वक्त करो बर्बाद
क्रांति-क्रांति चिल्लाते हैं
भीख मांगकर खाते हैं

अगर यही है क्रांति सुकर्म
मुझको खुद पर आती शर्म
सभा रह गयी सारी सन्न
लेकिन बिस्मिल हुये प्रसन्न

"क्विक सिल्वर',कुछ धैर्य धरो
अनुशासन को यों न हरो
बना योजना बढना है
अंग्रेजों से लडना है

साथी नहीं कोई कमजोर
सबमें साहस है पुरज़ोर
चलो तुम्ही बतलाओ ना
उचित योजना लाओ ना

रेल तो हमलूटेंगे
नहीं राह में छूटेंगे
लेकिन कैसे करना है?
ब्रिटिश-दर्प को हरना है

अपनी बात बताओ भी
रौ में अपनी आओ भी"
"जहां भी आप बतायेंगे
मुझे खडा ही पायेंगे

गार्ड ,ड्राइवर,टी०टी० को
हर अंग्रेजी सीटी को
 कर देंगे उस दिन खामोश
सारा ज़ग देखेगा रोष"

कडक उठे थे रामप्रसाद
'नहीं प्रतिज्ञा तुमको याद
व्यर्थ में खून बहाओगे
भारत मां को लजाओगे

सिर्फ छीनन है सम्मान
नहीं,किसी की लेनी जान
रक्त बहाओगे यदि व्यर्थ
हो जायेगा कोई अनर्थ

(बिस्मिल चरित से)
----------अरविंद पथिक

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