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1.11.12

कौन सुनेगा...किसको सुनाएं ?


कौन सुनेगा...किसको सुनाए...इसलिए चुप रहते हैं...किशोर कुमार का ये मशहूर गाना आपने जरुर सुना होगा...ये गाना बिल्कुल फिट बैठता है हमारे देश के मतदाताओं पर जो राजनेताओं के झूठे वादों से त्रस्त आकर चुनाव से पहले एक रहस्यमयी चुप्पी साधने लगे हैं। हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए 04 नवंबर 2012 को मतदान होना है...ऐसे में ऐसा ही कुछ हाल आजकल हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं का भी है। मतदान में चंद दिन शेष रह गए हैं...मतदाताओं को रिझाने के लिए प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक दी है...लेकिन मतदाता एकदम खामोश है। मानो मन ही मन ये गाना गुनगुना रहे होंकौन सुनेगा किसको सुनाए…इसलिए चुप रहते हैंकिशोर कुमार की ये पंक्तियां इस लिहाज से भी मतदाताओं पर सटीक बैठती हैं क्योंकि इससे पहले के चुनावों पर नज़र डाल लें तो सामने आता है कि चुनाव से पहले राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में जनता से बड़े-बड़े वादे तो करते हैं और उन्हें पूरा करने का दम भी भरते हैं...लेकिन चुनाव जीतने के बाद या सत्ता में आ जाने के बाद उनके ये दावे सिर्फ दावे ही रह जाते हैं। मतदान करने के बाद जनता ठगी रह जाती है और नेता ये समझते हैं कि उन्हें पांच साल का लाईसेंस जनता ने दिया है लूट खसोट मचाने के लिए...जो हम देखते भी आए हैं। वैसे देखें तो अपने जनप्रतिनिधि से जनता की अपेक्षाएं क्या होती हैं...? सिर्फ इतना ही कि उसके क्षेत्र का समुचित विकास हो...उसे बिजली मिले...पानी मिले और उसके इलाके की सड़कें दुरुस्त हो...जिन पर से होकर वो रोज दफ्तार जाता है, व्यापार करने जाता है या बाजार जाता है। मुझे नहीं लगता इससे ज्यादा कोई अपेक्षा जनता की अपने जनप्रतिनिधि से रहती हैं। लेकिन हमारे राजनेता चुनाव जीतने के बाद शायद ये भूल जाते हैं कि उसे जनता ने सेवा करने के लिए चुना है मेवा खाने के लिए नहीं...लेकिन नेता जी मेवा खाने में ही इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें अपने क्षेत्र की जनता की परवाह ही नहीं रहती। एक फिल्म का दृश्य मेरे जेहन में ताजा हो रहा है, जो इस प्रकार है...एक व्यक्ति अपनी समस्या लेकर अपने क्षेत्र के विधायक के पास पहुंचता है...वहां का नजारा कुछ इस प्रकार है- नेता जी का मुंह पान से लाल है...दो चेले नेता जी की सेवा में लगे हैं...और नेता जी पान चबाते चबाते किसी को फोन पर गलिया रहे हैं। वह व्यक्ति नेता जी के कान से फोन हटते ही अपनी समस्या रखता है कि उसके बेटे को पुलिस ने गलत आरोप में पकड़ लिया है...तो वे उसकी मदद करें और चलकर पुलिसवालों से बात करें...लेकिन नेता जी व्यक्ति को ये कहकर दुत्कार देते हैं कि उसके बेटा चोर होगा...व्यक्ति एक बार फिर से नेता जी से आग्रह करता है कि उसने उनको वोट दिया है...ऐसे में अपने क्षेत्र की जनता के साथ उनको देना चाहिए...इतना सुनते ही नेता जी का पारा चढ़ जाता है और वे उस व्यक्ति को गलियाते हुए कहते हैं कि- मुझे वोट दिया है तो क्या मैं तेरे घर पर आकर झाडू लगाउं। उस व्यक्ति के पास इस बात का कोई जवाब नहीं होता है...और इसके बाद वह व्यक्ति निराश होकर वहां से लौट जाता है। ये फिल्म का दृश्य हमारे आजकल के अधिकतर नेताओं के चरित्र से मेल खाता दिखाई देता है। नेता जी आपको चुनने वाला आपसे ये कतई नहीं चाहता कि आप उसके घर पर आकर झाड़ू लगाएं...लेकिन इतना जरूर चाहता है कि उसकी हर परेशानी में तो कम से कम आप उसके साथ खड़े रहें...क्या आपको ऐसा नहीं लगता...नेता जी इसका जवाब अगर नहीं है तो आपको बधाई...आप राजनीति के रंग में पूरी तरह रंग गए हैं औऱ एक पक्के राजनीतिज्ञ बन गए हैं। हिमाचल की जनता की खामोशी भी आजकल शायद कुछ ऐसा ही कह रही है...शायद इसलिए मतदान से चंद दिन पहले हिमाचल में एक खामोशी सी पसरी हुई है। ऐसे में देखना ये होगा कि मतदाताओं की ये खामोशी हिमाचल में क्या गुल खिलाती है। हिमाचल की रवायत की अगर बात करें तो वहां की रवायत सत्ता परिवर्तन की है...और हर पांच साल में जनता सत्ता परिवर्तन कर देती है...लेकिन इस बार मतदान से पहले की मतदाताओं की रहस्यमयी खामोशी कुछ और ही कहानी बयां कर रही है...और साफ ईशारा कर रही है कि हिमाचल में इस बार कुछ नया होगा...और आसानी से किसी को भी हिमाचल की सत्ता में राज करने का मौका नहीं मिलने वाला...चाहे वो सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी हो या फिर हिमाचल की रवायत के सहारे सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठी कांग्रेस पार्टी। बहरहाल ये चुप्पी 04 नवंबर को टूट जाएगी...और 20 दिसंबर को ईवीएम खुलने के साथ ही साफ हो जाएगा कि ये चुप्पी क्या राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ थी या फिर केन्द्र में काबिज होते हुए भ्रष्टाचार औऱ घोटालों के कई आरोपों से घिरी कांग्रेस के खिलाफ। फिलहाल तो मतदाता खामोश है...और चुनाव लड़ रहे विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशी बेचैन।
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