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5.11.12

ये कैसी नैतिकता…?


 केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार पर लगे भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों को लेकर मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा समेत तमाम विरोधी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ ही आरोपों से घिरे उनके मंत्रियों से इस्तीफे का मांग कर रहे हैं...लेकिन जब यही आरोप देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर लगता है तो उनकी ही पार्टी उनका खुलकर बचाव करती है। विरोधियों पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर उनसे इस्तीफा मांगने वाले खुद के दामन पर छींटे पड़ने पर चुप्पी साध लेते हैं। हालांकि कुछ एक नेता ऐसे हैं जो अपनी ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर सवाल खड़े करते हुए इस्तीफा मांगते हैं...लेकिन ये गिनती में ही हैं। माना सोनिया गांधी ने भ्रष्टाचार और घोटालों से घिरे अपने मंत्रियों का बचाव करते हुए उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें प्रमोशन दे दिया...तो क्या आप भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सोनिया के कदमों पर ही चलेंगे। हालात तो कुछ ऐसा ही बयां कर रहे हैं...जिस तरह गडकरी के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी का रास्ता गडकरी का बचाव कर साफ किया जा रहा है...उससे इस पर मुहर लगती भी दिखाई दे रही है। भाजपा दूसरों को तो नैतिकता का पाठ पढ़ाती है लेकिन जब उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष पर जब भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं तो भाजपा की नैतिकता जाने कहां चली जाती है। एक तरफ तो आप भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ने के बात कहते हुए 2014 में देश की सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब देखते हैं...लेकिन आपके शीर्ष नेता पर आरोपों पर आप चुप्पी साध लेते हैं। भ्रष्टाचार और घोटालों के खिलाफ आप प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांगते हुए संसद ठप कर देते हैं, लेकिन जब खुद पर बन आती है तो आप आरोपों को ही नकारते नजर आते हैं। साफ है कि भ्रष्टाचार को कैंसर बताते हुए कांग्रेस और भाजपा इसे जड़ से खत्म करने के साथ ही भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने की बात करते हैं...लेकिन खुद गले तक भ्रष्टाचार के दलदल में डूबे हुए हैं...ऐसे में कैसे ये दोनों पार्टियां भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कारगर कदम उठाएंगी...ये बड़ा सवाल है। सवाल इसलिए भी क्योंकि दोनों ही पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं...और दोनों ही पार्टियों के नेता भ्रष्टाचार में घिरे साथी नेताओं का न सिर्फ खुलकर बचाव करते हैं बल्कि सीना ठोक पर उन्हें निर्दोष बताते हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर देश के दोनों ही प्रमुख दलों का ये रवैये निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं। सत्ताधारी दल के नेता सत्ता के लालच में गंभीर आरोप लगने के बाद भी जहां कुर्सी छोड़ने से कतराते हैं तो वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा का भी कुछ ऐसा ही हाल है। न तो मनमोहन सिंह और उनकी टीम के दागी मंत्री नैतिकता के नाम पर इस्तीफा देने की हिम्मत जुटा पाते हैं और न ही दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली भाजपा के नेताओं में ही पद छोड़ने का साहस है। भारतीय राजनीति में एक दौर वो भी था जब सिर्फ ऊंगली मात्र उठ जाने पर नेता पद और कुर्सी का मोह छोड़ इस्तीफा दे देते थे...लेकिन अब वक्त बदल गया है, नैतिकता राजनीति से गायब हो गयी है...या यूं कहें कि नेताओं ने नैतिकता की हत्या कर दी है। नेता अब सिर्फ और सिर्फ कुर्सी के लिए...लाल बत्ती के लिए जीते हैं...उन पर तमाम ऊंगलियां उठे लेकिन उन्हें किसी की कोई परवाह नहीं है...शायद वे ये समझते हैं कि जनता ने उन्हें चुनकर पांच साल का ऐश परमिट दे दिया है...इसलिए जितनी ऐश करनी है कर लो...क्या पता फिर मौका मिले न मिले सत्ता में आने का।   

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