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20.1.13

चिंतन शिविर- चिंता कम हुई या बढ़ गयी..?


कांग्रेस का चिंतन शिविर राहुल गांधी को कांग्रेस में आधिकारिक रूप से नंबर दो की पोजीशन में पहुंचाने के साथ खत्म हुआ हालांकि राहुल गांधी सोनिया के बाद पहले भी नंबर दो थे ऐसे में चिंतन शिविर की खोज उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर किसी को आश्चर्य तो नहीं ही हुआ होगा। लेकिन बडा सवाल ये है कि क्या जयपुर में तीन दिन तक चले चिंतन शिविर के बाद वाकई में कांग्रेस की चिंता कम हुई है या फिर बढ़ गई है..!  चिंतन शिविर के पहले दिन सोनिया गांधी ने कांग्रेस के खिसकते वोटबैंक पर चिंता जताई तो दूसरे दिन पूरा माहौल राहुलमय दिखाई दिया और कांग्रेसियों को पार्टी के खिसकते वोटबैंक को बचाने और 2014 में यूपीए की हैट्रिक के लिए राहुल से बेहतर विकल्प नहीं दिखा लिहाजा कांग्रेस कोर कमेटी ने भी देरी नहीं कि और राहुल गांधी को महासचिव की कुर्सी से उपाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दिया। दरअसल भ्रष्टाचार, महंगाई और सरकार के कई फैसलों को लेकर सवालों में घिरी मनमोहन सरकार के लिए 2014 का चुनाव आसान तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता ऐसे में कांग्रेस ने बडी ही चालाकी से राहुल गांधी के नाम पर युवा वोटरों को रिझाने की कोशिश की है और युवाओं के दम पर यूपीए की हैट्रिक लगाने की तैयारी कर ली है। राहुल को आधिकारिक तौर पर पार्टी में नंबर दो की पोजीशन में बैठाना इसकी शुरूआत है। 8 साल के राजनीतिक जीवन में तीन बडे राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत न दिला पाना भी राहुल चैप्टर का हिस्सा रहा तो 2009 में उत्तर प्रदेश में पार्टी की सीटों की संख्या 9 से 21 तक पहुंचाना राहुल की एकमात्र उपलब्धि के तौर पर गिना जाता है। हालांकि इन 8 सालों में राहुल ने ताकत तो पूरी लगाई लेकिन इसका ठीकरा सीधे सीधे राहुल के सिर नहीं फूटा क्योंकि वे हमेशा पर्दे के पीछे से ही कांग्रेस की नैया को पार लगाने की कोशिश करते रहे लेकिन अब की बार तस्वीर जुदा है और राहुल को अब फ्रंट फुट पर आकर बैटिंग करनी है। 2014 के आम चुनाव से पहले 2013 में 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव राहुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। राहुल के लिए इससे भी बड़ी चुनौती युवाओं का भरोसा जीतने की है क्योंकि बीते कुछ समय में देश से जुड़े कई अहम और संवेदनशील मुद्दों पर राहुल की खामोशी ने कई सवाल खडे किए हैं जिसने राहुल की एक नकारात्मक छवि युवाओं के बीच पैदा हुई है ऐसे में राहुल को इस छवि से बाहर निकलने के लिए खासी मेहनत करनी पड़ेगी। कुल मिलाकर राहुल को उपाध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेसी भले ही कांग्रेस की चिंता कम होने की बात कह रहे हों लेकिन वास्तव में कांग्रेस के साथ ही राहुल की भी चिंता बढ़ गई है क्योंकि 42 वर्ष के हो चुके राहुल गांधी के लिए 2014 का चुनाव ही सब कुछ है। 2014 में राहुल का जादू नहीं चला तो फिर राहुल को भी पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी की जमात में आने में देर नहीं लगेगी। चितंन शिविर के तीसरे दिन हालांकि राहुल ने उपाध्यक्ष बनने के बाद पहली बार भाषण देते हुए युवाओं को साथ लेकर आगे बढने की बात कहने के साथ मजे - मजे में सत्ता हासिल करने का दम तो भरा है लेकिन राहुल गांधी भी इस बात को जानते हैं कि ये काम इतना आसान होता तो जयपुर चिंतन शिविर की जरूरत ही नहीं पडती। तीसरे दिन राहुल गांधी के अलावा सत्ता की राह को आसान बनाने के लिए हिंदु आतंकवाद के नाम को जन्म देने वाले गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को  कैसे भूल सकते हैं जिन्होंने अलंपसंख्यक वोटों के लिए हिंदुओं पर सवाल खड़े कर दिए और हिंदुओं पर अल्पसंख्यकों को बदनाम करने का आऱोप मढ़ डाला। दरअसल ये शिंदे साहब की भी गलती नहीं है...वे बेचारे तो सोनिया की उस चिंता को कम कर रहे थे जो सोनिया ने चिंतन शिविर के पहले दिन जताई थी कि पार्टी का पारंपरिक वोटबैंक खिसक रहा है। अब शिंदे साहब ठहरे कांग्रेस भक्त कैसे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया की चिंता को कम करने के लिए कुछ न करते सो अल्पसंख्यक वोटों को साधने के लिए हिंदु आतंकवाद के नाम को ही जन्म दे दिया।  

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