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20.2.13

जलियांवाला बाग नरसंहार- माफी क्यों भई..?


13 अप्रेल को 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुआ नरसंहार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे जघन्य हत्याकांड था। जलियांवाला नरसंहार में ब्रिटिश हुकूमत ने निहत्थे लोगों को चारों तरफ से घेर कर जिस तरीके से उन पर फायरिंग की उसकी जितनी निंदा की जाए उतनी कम है।
आज न तो 13 अप्रेल है, न ही इस घटना के वक्त ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर मायकल ओ डायर को मारने वाले शहीद ऊधम सिंह का जन्मदिन या पुण्यतिथि। आज 15 अगस्त भी नहीं है और 26 जनवरी भी नहीं लेकिन फिर भी अमृतसर के जलियांवाला बाद नरहंसार की गूंज सुनाई दे रही है। दरअसल जिस ब्रिटिश हुकूमत में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने इस नरसंहार को अंजाम दिया था उसी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन आज अमृतसर के ऐतिहासिक जलियांवाला बाग पहुंचे थे।
घटना को 94 साल हो गए हैं लेकिन अभी तक ब्रिटेन की ओर से किसी ने इस नरसंहार के लिए माफी नहीं मांगी है। कैमरन के जलियांवाला बाग पहुंचने से पहले ये मांग जोर पकड़ने लगी थी कि कैमरन को इस नरसंहार के लिए माफी मांगनी चाहिए लेकिन कैमरन ने ब्रिटेन की तरफ से इस घटना के लिए माफी मांगना जरूरी नहीं समझा।
ये बात अलग  है कि जब ये नरसंहार हुआ था उस वक्त कैमरन पैदा भी नहीं हुए थे...लेकिन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री होने के नाते कैमरन अगर माफी मांगते तो शहीदों के परिजनों का दर्द तो कम नहीं होता लेकिन उनके दिल को सुकून जरूर मिलता। वैसे भी कैमरेन अगर माफी मांग भी लेते तो वे छोटे नहीं हो जाते लेकिन उनका माफी न मांगना कहीं न कहीं ये जाहिर करता है कि जलियांबाला बाग पहुंचकर उनका शहीदों को श्रद्धांजली अर्पित करना क्या सिर्फ एक दिखावा नहीं है..?
ब्रिटिश पीएम नरसंहार को शर्मनाक बताते हुए इसे कभी न भूलने वाली घटना कहते हैं लेकिन माफी मांगने से पीछे हट जाते हैं क्यों..?
माफी मांगने से कैमरन छोटे तो नहीं हो जाते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया..! क्या उनका व्यवहार ये जाहिर नहीं करता कि 94 साल पहले ब्रिटिश हुकूमत में हुए इस नरसंहार पर माफी न मांगना कहीं न कहीं इस नरसंहार को सही ठहराता है..! ठीक उसी तरह जब नरसंहार के बाद ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के इस कदम को तत्कालीन ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर मायकल ओ डायर ने सही ठहराते हुए जनरल ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर की पीठ ठोंकी थी।
वास्तव में अगर कैमरेन इस नरसंहार के लिए शर्मिंदा होते तो उन्हें 94 साल पहले ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुए इस नरसंहार पर माफी मांगने से गुरेज नहीं होना चाहिए था लेकिन कैमरेन ने ऐसा न करके उन शहीदों के परिजनों का अपमान ही किया है लेकिन विडंबना देखिए जिस जलियांवाला बाग में ब्रिटिश हुकूमत ने हजारों निहत्थे भारतीयों पर गोली चलाई थी उसी धरती पर आने पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए चार हजार से ज्यादा जवान तैनात किए गए थे।

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