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6.3.13

50 लाख का जनता दरबार..!


उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा साहब कहते हैं कि जनता दरबार लगाना उनके लिए महंगा सौदा साबित हो रहा है। उनकी मानें तो मुख्यमंत्री का एक जनता दरबार 50 लाख रूपए का पड़ता है ऐसे में भविष्य में बहुगुणा साहब जनता की समस्याओं के निराकरण के लिए दरबार न ही लगाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
हां, अगर खुद के लिए और अपने मंत्रियों के लिए करोड़ों रूपए खर्च कर लग्जरी गाड़ियां खरीदने की बात हो तो ये महंगा सौदा नहीं है क्योंकि मंत्रियों के लिए लग्जरी गाड़ी खरीदना बेहद जरूरी है लेकिन जनता दरबार में आर्थिक मदद के लिए पहुंचे अति जरूरतमंदों की मदद करना बकौल मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा जरूरी नहीं है..!
पहाड़ी राज्य में भ्रमण के लिए माननीय मंत्रियों के लिए करोड़ों रूपए खर्च कर 100 घंटे के लिए हेलिकॉप्टर किराए पर लेना बेहद जरूरी है...क्योंकि पहाड़ी राज्य में पहाड़ चढ़ने में मंत्रियों की सासें फूल जाती हैं लेकिन राज्य की जनता की समस्याओं के निराकरण के लिए जनता दरबार लगाना बकौल मुख्यमंत्री महंगा सौदा है। ज्यादा दिन पुरानी बात नहीं है प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी जिला योजना की समीक्षा के लिए अल्मोड़ा और बागेश्वर पहुंचे। मंत्री जी का ये दौरा औपचारिकता से ज्यादा कुछ साबित नहीं हुआ। इस दौरे में खर्च तो आया करीब 5 लाख रूपए का लेकिन काम दौरे के दौरान मंत्री जी कुछ खास नहीं करके गए और तो और अपनी समस्याएं लेकर पहुंचे लोगों के हाथ भी मायूसी ही लगी। (पढ़ें- हवाई यात्रा में 5 लाख फूके और मंत्री जी फुर्र)
मुख्यमंत्री के हिसाब से शराब में 20 प्रतिशत वैट की छूट देने से सरकारी खजाने पर भार नहीं पड़ेगा लेकिन जनता दरबार में अति जरूरतमंदों की आर्थिक मदद करने से सरकारी खजाना खाली हो रहा है..!
बकौल मुख्यमंत्री रसोई गैस में वैट पर 5 प्रतिशत छूट देने से सरकार पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है लेकिन शराब में 20 प्रतिशत वैट में छूट देना जरूरी है..! (पढ़ें- शराब के लिए पैसे हैंरसोई गैस के लिए नहीं…!)
बहुगुणा सरकार को बने लगभग एक साल हो गया है लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद जब पहली बार अप्रेल 2012 में विजय बहुगुणा ने सीएम निवास में जनता दरबार लगाया था तो उस वक्त भी बहुगुणा साहब के तेवर कुछ ऐसे ही थे..!
मुख्यमंत्री के पहले जनता दरबार में लोग बड़ी आस के साथ अपनी समस्या लेकर उनके पास पहुंचे थे लेकिन न तो मुख्यमंत्री के पास अति जरूरतमंदों को देने के लिए नौकरी थी और न ही उनकी आर्थिक सहायता के लिए बजट..! (जरूर पढ़ें- एमपी नहीं मुख्यमंत्री कहो...)
ये बात अलग है कि जब विधायकों के वेतन भत्ते और सुख सुविधाएं बढ़ाने की बात आती है तो सरकार के पास बजट की कोई कमी नहीं होती है। उस वक्त सरकारी खजाने पर कोई बोझ नहीं पड़ता क्योंकि उस वक्त बारी खुद की होती है लेकिन जनता के लिए सरकारी खजाने में पैसा नहीं है..!
बहरहाल जैसे तैसे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा का ये हाल तब है जब सरकार को बने महज एक साल का ही वक्त हुआ है...अब बचे हुए चार साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा(अगर मुख्यमंत्री रहे तो..?) क्या गुल खिलाएंगे इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

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