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10.3.13

लुटेरी सरकार के लुटेरे रेलमंत्री-ब्रज की दुनिया

मित्रों,लगता है कि यूपीए के मंत्रियों ने पद-ग्रहण के समय संविधान और सत्यनिष्ठा की शपथ नहीं ली थी बल्कि जनता को लूटने की शपथ ली थी। जब बाँकी मंत्री जनता को लूट चुके तब अब बारी आई है रेलमंत्री पवन कुमार बंसल की।
           मित्रों,हुआ यह कि अभी कुछ दिन पहले मेरे पिताजी को हाजीपुर से महनार रोड जाना था। पहले इस 30 किमी की दूरी का पैसेन्जर ट्रेन का भाड़ा था 5 रू.। पिताजी ने एक टिकट लिया और 10 का नोट काउंटर क्लर्क को थमाया और इस उम्मीद में कि वह बाँकी के पैसे लौटाएगा खिड़की पर ही खड़े रहे। दरअसल भाड़ा-बढ़ोतरी के बाद वे पहली बार ट्रेन से महनार जा रहे थे। जब उन्होंने देखा कि काउंटर क्लर्क ने उन पर ध्यान दिए बिना ही दूसरे यात्रियों को टिकट देना शुरू कर दिया है तब उन्होंने काउंटर क्लर्क को टोका। जवाब में उसने कहा कि पहले टिकट को तो देखिए कि उस पर कितना भाड़ा दर्ज है। टिकट पर तो सचमुच 10 रू. लिखा हुआ था अर्थात् भाड़ा सीधे दोगुना हो गया था। काउंटर क्लर्क ने उनको यह भी बताया कि अब पैसेन्जर ट्रेन का भाड़ा राउंड फिगर में 10 के अपवर्त्य में हो गया है।
              मित्रों,अब आप पैसेन्जर अथवा लोकल ट्रेन से एक स्टेशन जाईए या 5 स्टेशन आपको कम-से-कम 10 रू. तो देना ही पड़ेगा। फिर 10 रू. के बाद भाड़ा सीधे 20,30,40,50......हो जाएगा। अगर आपको एक ही स्टेशन बाद उतरना है और आपको यह राउंड फिगर नागवार गुजर रहा है तो आपकी बला से। आपको बीच के स्टेशनों के लिए 10 रू. या 20 रू. देना अखर रहा है तो आपको उस अंतिम स्टेशन तक की यात्रा करनी चाहिए जहाँ तक का भाड़ा 10 रू. या 20 रू. है। क्या कहा वहाँ का आपको काम नहीं है तो इसमें इसमें रेलमंत्री की क्या गलती है,वहाँ का काम निकालिए?
                        मित्रों,अब तक तो हमने सिर्फ कहावतों में ही सब धन बाईस पसेरी सुना था लेकिन रेलमंत्री ने तो सारी दूरियों का भाड़ा एकसमान करके सचमुच इस महान कहावत को चरितार्थ कर दिया है। ठीक उसी तरह जैसे सवा सौ साल पहले रचित भारतेन्दु के नाटक अंधेर नगरी में महान राजा ने सभी वस्तुओं के मूल्यों को टके सेर कर दिया था.
                  मित्रों,हम सभी जानते हैं कि रेलवे और खासकर पैसेन्जर ट्रेन गरीबों की सवारी है। अमीर प्राईवेट गाड़ियों में चलते हैं वे क्यों पैसेन्जर ट्रेन में चढ़ने लगे? वैसे भी पैसेन्जर ट्रेनों और उनमें लगे डिब्बों की संख्या कम होने और बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में वर्तमान सरकार द्वारा बढ़ोतरी नहीं किए जाने से पैसेन्जर ट्रेनों से यात्रा करना दिनानुदिन घोर कष्टदायक होता जा रहा है। जाहिर है मंत्रीजी के पागलपन का सीमान्त गरीबों और घोर गरीबों को ही भुगतना पड़ा रहा है। उन्हीं गरीबों को जिनका सच्चा प्रतिनिधि होने का दावा कांग्रेस पार्टी दशकों से करती रही है। तो क्या कांग्रेस का गरीब अथवा गरीबी-प्रेम धोखा है,ढोंग है,छलावा है?
                                 मित्रों,अगर मंत्रीजी को देश की गरीब जनता को लूटना ही था तो रात में उनके घरों पर जाकर डाका डालते। आखिर हर काम का एक तरीका होता है। आखिर लुटेरों की भी कोई आचार-संहिता होती है,यह भी कोई तरीका हुआ लूटने का। आपने एक्सप्रेस और मेल ट्रेनों का भाड़ा बढ़ाया कोई बात नहीं,पैसेन्जर का भी भाड़ा बढ़ाया कोई बात नहीं लेकिन भाड़ा को दूरी के अनुसार बढ़ाना चाहिए था। स्वयं भारत सरकार द्वारा बनाई गई समिति की रिपोर्ट कहती है कि भारत की आजादी के 70 साल बाद भी,20 साल के उदारवाद के बाद भी देश की 80% जनता 20 रू. प्रतिदिन या उससे भी कम दैनिक आय पर गुजारा करती है फिर क्या मंत्री जी बताएंगे कि वह गरीब जनता एक-दो किमी का भाड़ा 10 रू. कहाँ से चुकाएगी? क्या सरकार इस प्रकार स्वयं ही बेटिकट यात्रा को प्रोत्साहन नहीं दे रही है?  प्रश्न यह भी है कि जो व्यक्ति पैसेन्जर ट्रेन से सिर्फ एक या दो स्टेशनों की यात्रा करता है वो क्यों 5-6 स्टेशनों की यात्रा का भाड़ा दे? क्या उनकी ट्रेन से चलने की मजबूरी या उनकी गरीबी का अनुचित लाभ उठाना नैतिक है? खैर केन्द्र की वर्तमान लुटेरी सरकार के लुटेरे मंत्रियों से तो नैतिक-कर्म की अपेक्षा रखना ही मूर्खता होगी।

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