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24.6.13



उत्तराखंड में आई आपदा की भयानक तस्वीर सामने आने के बाद अब सभी तरफ से सरकार  के इस ऑपरेशन के चीरफाड़ की बारी आ गयी है । इससे पूर्व ही उत्तराखंड के आपदा मंत्री ने खुद कह दिया है कि  हम नाकाम रहे । राज्य सरकार ने भी पचास सवालों के बाद यह मान ही लिया है कि  सरकार इस दिशा में नाकाम रही है । इस सबके बीच बहुगुणा विरोधी लाबी खुश हो रही होगी कि  चलो , बहुगुणा फेल  हुए और अब इस लाबी को यह मौका मिल गया है कि  यह अपने आलाकमान के कान भर सके कि  बहुगुणा के कमजोर प्रशासन ने देश में कांग्रेस की भद पिटवा  दी है और अब मुख्यमंत्री बदला जाना चाहिये और हो सकता है कि  कुछ दिन में यह आवाज उठे  ।
इस आपदा का सार यही कहा जा सकता है कि  सरकार बादल को नहीं रोक सकती थी लेकिन जो लोग भूख से मर गए , दम घुटने , ठण्ड लगने , कुचलने से मर गए या रास्ता भटक  कर इधर उधर मर गए या नेपाली युवकों द्वारा लूट लिए गए और मार भी दिए गए , यह सब सरकार की जिम्मेदारी थी और सरकार इस मामले में पूरी तरह से फेल  हो गयी है ।
यही नहीं , जब रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ तब शुरुआत में सिर्फ २ २ हेलीकाप्टर लगाए गए , जैसे जैसे देखा गया देर हो रही है तो हेलीकाप्टर की संख्या बधाई गयी । और सात दिन बाद टी वी पर देखा गया कि  ८३ हेलीकाप्टर हैं । लेकिन तब तक दोबारा बारिश शुरू हो गयी । क्या अब जो लोग फंस गए हैं और रास्ते फिर टूटने शुरू हो गए हैं तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है । यदि पहले ही यह काम तेजी से कर लिया जाता तो वे लोग भी अब तक सुरक्षित बचाए जा सकते थे । लेकिन ऐसा हो नहीं सका और यह स्थिति तब है जब दो दिन बाद ही मनमोहन और सोनिया गाँधी का दौर हो चुका  था । लेकिन जब केंद्र सरकार ही ७ दिन बाद तक इस इन्तजार में बैठी रही कि  उसके युवराज स्पेन से लौटेंगे तब उनके हाथों से ही राहत सामग्री बंटवाई जायेगी तब इस बेचारी सरकार का क्या कहें ।
आपदा प्रबंधन कुशल होता तो जिस दिन केदारनाथ में यह घटना घटी उस दिन वहाँ पर यह टीम यदि पहले से सक्रिय  होती तो वहाँ पर सैकड़ों लोगों को बचा लिया जाता । कुछ लोग ठण्ड से मर रहे थे , कुछ दम घुटने से तो कुछ भूख से , कुछ लोग उन बंद मकानों में भी फंसे थे जिन में मलबा भर गया था । लेकिन सरकार के पास सोचने का कोई तंत्र नहीं था इसलिए पिता की गोद में उसका बच्चा भूख और पानी की प्यास से अपने पिता से पानी पानी मांगता हुआ दम तोड़ गया । जो स्थानीय पुलिस सात दिन बाद दिखाई दी वह अगर सक्रिय  होती तो उन महिलाओं के पतियों को बचाया जा सकता था जिन्हें कुछ नेपाली गुंडों ने लूटने के बाद खाई में फेंक दिया । लेकिन बेचारी सरकार का क्या कहें । जो २ ० ०  कमांडो छठवे दिन उतारे गए वे पहले भी उतारे जा सकते थे । जो मानव रहित विमान लोगों को खोजने के लिए सातवें दिन लगाने की बात सामने आई वह पहले भी लगाए जा सकते थे । लोगों तक कम से कम रोटी और पानी तो पहुंचाई जा सकती थी । सेना जो कर रही है वह भगवान् का रूप निभा रही है । लेकिन सरकार कहाँ है । क्या सरकार के पास कोई सोच भी नहीं है जो किसी का भला कर सके ।
राष्ट्रीय  आपदा घोषित करने से कतरा रहे गृह मंत्री नहीं समझ सकते कि  जब किसी आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाता है तब समस्त राज्यों की सरकारें उस आपदा से निपटने में तत्परता दिखाती हैं । गृहमंत्री इसे राष्ट्रीय संकट मानने को तो तैयार थे लेकिन राष्ट्रीय आपदा नहीं । क्या वे बता पायेंगे कि  आखिर राष्ट्रीय आपदा और संकट में क्या फर्क है । क्या वे नहीं जानते कि  संकट और आपदा एक ही बात है । ये दोनों पर्याय वाची शब्द हैं । लेकिन यह मांग चूंकि विपक्ष की तरफ से थी इसलिए राष्ट्रिय आपदा और संकट में फर्क दिखने की कोशिश की गयी है । इसे कहते हैं विरोध के लिए विरोध अंततः राज्य सरकार को मानना पड़ा कि  वह नाकाम रही , और आपदा मंत्री भी कह चुके हैं कि  हम नाकाम रहे । क्या यदि एक माह बाद इश्वर न करे कोई बादल फिर फट जाए तो सरकार के पास तैयारी है । नहीं , बिलकुल नहीं ।
खैर , राहुल देहरादून पहुंचे , कल तक जो सरकार यह कह रही थी कि  कोई भी हवाई सर्वे तो कर सकता है लेकिन जमीन पर नहीं उतार जाएगा क्योंकि इससे सिस्टम पर असर पड़ता है उसे अब क्या हो गया है । राहुल ऐसा क्या करने स्पेन से सीधे जमीन पर आ गए हैं जिससे विकास कार्य को गति मिल जायेगी । लेकिन राजनीति है यह भी । खैर राजनेता राजनीती नहीं करेंगे तो उनकी दूकान कैसे चलेगी ?
कुल मिलाकर इस देश के सबसे बड़े खेल संगठन बी सी सी आई ने उत्तराखंड के लिए कुछ भी देने से मना कर दिया है । इस देश का वह करिश्माई कप्तान भी इसी राज्य का ही है । वाह , इसे कहते हैं देश भक्ति । जिन्हें जरूरत है उन्हें कुछ नहीं लेकिन जो पहले से मालामाल हैं उन्हें एक एक करोड़ ।
खैर , यह इस देश की नियति है कि  यहाँ समय पर कुछ नहीं होता और जब होता है तो पानी सर पर से गुजर चुका  होता है ।
इस घटना से कुल मिलाकर राज्य सरकार के पर्यटन उद्योग को अच्छा ख़ासा घाटा होने वाला है । जो लोग भी बचकर आये हैं कसम खाए हुए हैं कि  दुबारा इस यात्रा पर नहीं आयेंगे और दूसरों को भी सलाह देंगे कि  यहाँ न आयें क्योंकि यहाँ का प्रशासन पंगु है ।
सभी लोग आर्मी का धन्यवाद दे रहे हैं । मेरी भी तरफ से आर्मी को हज़ार सलाम । कोई तो है जो हमको बचा लेगा ।
जो चले गए हैं  , उनकी आत्मा को ईश्वर  शांति दे ।
न जायते म्रियते व कदाचित
नायं भूत्वा भविता व न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोयं पुराणों ,
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥

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