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27.9.13



हिंदुस्तान की जनता के सामने सुप्रीम कोर्ट विश्‍वास की आखिरी उम्मीद है. सुप्रीम कोर्ट कोई राजनीतिक दल नहीं है, जो झूठे आरोप लगाए और जिसे राजनीतिक जवाब देकर टाला जा सकता है. अदातल तो सच का पता लगाती है. दूध का दूध और पानी का पानी करती है. अदातल फैसला करती है और जब तक फैसला नहीं देती, तब तक वो इशारा देती है. कोयला घोटाले में अब तक सुप्रीम कोर्ट से जो इशारे मिल रहे हैं, वह खतरनाक है. 

कोयला घोटाले से जुड़ी फाइलें गायब हो गईं. ये फाइलें कहां गईं? क्या इन फाइलों को जमीन खा गई या कोई भूत लेकर गायब हो गया? ये फाइलें कब गायब हुईं? कहां से गायब हुईं? इन फाइलों में क्या था? क्या भारत सरकार के दफ्तर चोरों का अड्डा बन चुके हैं? या फिर इन फाइलों को गायब कर के किसी को बचाया जा रहा है? नोट करने वाली बात यह है कि कोयला घोटाला उस वक्त हुआ, जब मनमोहन सिंह कोयला मंत्री थे. कोयला खदानों के हर विवादित आबंटन पर मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर हैं. एक तरफ सरकार है, जो सच को छुपाना चाह रही है, सीबीआई जांच में बाधा पैदा कर रही है और दूसरी तरफ अदालत है, जो कह रही है कि किसी भी कीमत पर दोषियों को दंडित किया जाएगा. दिसंबर महीने में कोयला घोटाले की जांच पूरी हो जाएगी. जैसे टूजी घोटाले में सीबीआई ने एफआईआर लिख कर ए राजा को गिरफ्तार किया था, उसी तरह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई को मनमोहन सिंह के खिलाफ एफआईआर लिखनी होगी. उन्हें गिरफ्तार करना होगा और बाद में उन पर मुकदमा चलेगा. इस घोटाले के केंद्र में प्रधानमंत्री हैं तो क्या दिसंबर में भारत को एक शर्मनाक इतिहास का मुंह देखना पड़ेगा? कोयला............

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