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21.10.13

saadhuo ko sapane

बहाने और जाने क्या मिलें , ऐ  देश रोने के ,
साधुओं को भी अब आते हैं सपने रोज़ सोने के।

अरे सीता ने शौहर को पिठाया कनक मृग पीछे ,
तो लंका में गयी सोना जहाँ घर घर बिछौने के।

खजाने , हैं बहुत-से लोग  लोलुप ताक में तेरी ,
नहीं आना नज़र तुम भूलकर भी बिन दिठोने  के।

कभी सोना  उगलती खेत में थी देश की धरती ,
दौर अब  इस तरह के तमाशे मंदिर में होने के।

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