Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

12.7.15

सुलक्षणा पंडित (12 जुलाई जन्म दिन पर विशेष) : एक खूबसूरत / नेक दिल अभिनेत्री की दर्दनाक दास्तान


नारी प्रधान फिल्में बनाने वाले ‘जे.ओम.प्रकाश‘ की फिल्म ‘अपनापन‘ (1977) से एक खूबसूरत व दिलकश आवाज की मल्लिका ‘सुलक्षणा पंडित‘ चर्चा में आई। ‘आदमी मुसाफिर है आता है जाता है‘ गीत वाली यह फिल्म सुपरहिट रही। इस फिल्म में आदर्श किरदार निभाने वाली सुलक्षणा को असली जिन्दगी में आदर्शवाद निभाना भारी पड़ा। एक दूसरी फिल्म ‘उलझन‘ में काम करते हुये उसे अपने सह सितारे संजीव कुमार के साथ प्यार हो गया। यह जानते हुये कि संजीव हेमा मालिनी से ठुकराये जाने के बाद भी उसके दीवाने है। सुलक्षणा यह सोचकर इंतजार करती रही कि कभी संजीव हेमा द्वारा जख्मी हुये दिल पर मरहम लगवाने उसके पास आयेंगे। एक समय आया जब संजीव को हार्ट अटैक हुआ। बकौल सुलक्षणा जव संजीव के दिल की बाई पास सर्जरी के बाद वह दोनों दिल्ली के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर गये तो सुलक्षणा ने उस हालत में भी संजीव से शादी का प्रस्ताव रखा। परन्तु संजीव कुमार ने यह कहते हुये साफ मना कर दिया कि वह अपने पहले प्यार हेमा मालिनी को कभी नहीं भूल सकते। आखिर संजीव हेमा से टूटे दिल के साथ 6 नवम्बर 1985 को दुनिया से विदा हो गये। सुलक्षणा के अवसाद (डिप्रेशन) में जाने के लिये यह काफी था।



गायिका के तौर पर लता मंगेशकर के साथ फिल्म तकदीर (1967) के गीत ‘सात समुंदर पार से, गुडियों के बाजार से‘ से अपना सफर शुरू करने वाली सुलक्षणा ने किशोर कुमार, मोहम्मद रफी, येशुदास, महेन्द्र कपूर व उदित नारायण के साथ लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, कल्याण जी आनन्द जी, भप्पी लहरी एवं राजेष रोशन जैसे नामी संगीतकारों के निर्देशन में गीत गाये। पदम विभूषण से सम्मानित शास्त्रीय संगीतकार पंडित जसराज के परिवार से सम्बन्धित सुलक्षणा पंडित को फिल्म ‘राहगीर‘ के गीत की रिर्काडिंग के समय संगीतकार हेमन्त कुमार ने  गायन के साथ 2 अभिनय भी करने की सलाह दी। पार्श्व गायिका के रूप में ‘बेकरार दिल तू गाये जा‘ (दूर का राही-1971)‘, ‘जब आती होगी याद मेरी‘ (फांसी); जैसे गीत गाने वाली सुलक्षणा को लता मंगेशकर व आशा भोंसले के एकाधिकार के जमाने में फिल्म संकल्प (1975) के गीत ‘तू ही सागर‘ के लिये फिल्म फेअर पुरस्कार व मियां तानसेन अवार्ड भी मिला। 1986 में सुलक्षणा पंडित ने लंदन के ‘रायल अलर्बट हाल‘ में अन्य कलाकारों के साथ एक कार्यक्रम भी किया। इसके बावजूद उसके बुरे वक्त में किसी संगीतकार जहां तक कि उसके अपने भाईयों (जतिन-ललित) ने भी काम नहीं दिया।

लगभग 50 फिल्मों में विनोद खन्ना, जीतेन्द्र व संजीव कुमार, राजेश खन्ना जैसे सितारों के साथ काम करने वाली सुलक्षणा पंडित 1975-79 के दौरान हेमा मालिनी, रेखा, नीतू सिंह व रीना राय के साथ सवसे ज्यादा मांग वाली अभिनेत्री रही। शबाना आज़मी ने एक वार कहा था कि कभी वह भी सुलक्षणा पंडित की तरह गलैमरस दिखना चाहती थी। पिता की मौत के वाद भरे पूरे परिवार का पालन पोषण करने वाली सुलक्षणा 2002 में काम के अभाव में आर्थिक तौर पर कमजोर होती गई। उन्हीं दिनों अपने जीर्ण शीर्ण व मूलभूत फर्नीचर से भी विहीन फलैट में एक महिला पत्रकार से वात करते हुये सुलक्षणा ने कहा था, ”मैं जानती हूं कि अब मेरा फिल्मों में लौटना मुश्किल है। परन्तु मेरी आवाज अभी भी अच्छी है। अगर लता जी 70 की आयु में इतना अच्छा गा सकती हैं। तो मैं 40 के आसपास की होकर क्यों नहीं गा सकती? अगर मेरे भाई संगीतकार (जतिन-ललित) भी मुझे मौका देते तो मेरा यह हाल न होता। फिर भी मैं अपने भाईयों को मिली प्रसिद्धि व सफलता से बहुत खुश हूं। तीन वर्ष पहले अपनी मां के गुजर जाने के बाद मैं बहुत अकेली हो गई। एक अघ्यात्मिक महिला होने के नाते उसने मुझे कभी न हारना सिखाया।  इसी सीख की बदौलत मैंने अकेली ने सात भाई बहनों की परवरिश की। मेरे निष्कर्ष के अनुसार अपने परिवार के लिये त्याग करना अच्छी बात है। परन्तु इन्सान को स्वयं के लिये व अपने अन्तिम समय के लिये भी सोचना चाहिये। जिन्दगी इतनी छोटी हाने के बावजूद हम यह तेरा है, यह मेरा है के लिये क्यों लड़ते हैं? क्यों दूसरों का दिल दुखाते हैं? क्यों एक दूसरे के खिलाफ गन्दी राजनीति करते हैं?” कार व टेलीफोन तक की भी सुविधा न होने पर सुलक्षणा की टिप्पणी थी- मैं इन भौतिक वस्तुओं की चाहत से ऊपर उठ चुकी हूं। जब मुझे कहीं जाना ही नहीं तो कार का क्या करूंगी? प्यार में ठुकराये जाने व अपने परिवार की खातिर त्याग, वलिदान करने के बावजूद समय पर मानसिक व नैतिक सहारा न मिलने से अर्श से फर्श पर आने के वाद भी उपरोक्त उद्गार व्यक्त करने वाले इन्सान की नेक नीयती का सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है।

ऐसे ही एक दूसरे साक्षात्कार (1999) में सुलक्षणा ने संजीव कुमार से अपने प्यार की पुष्टि करते हुये कहा था, ”हम दोनो में बहुत समांनताए थीं। वह मेरी तरह कर्क राशि से होने के साथ 2 बहुत भावुक इन्सान थे। हमने इकट्ठे सात फिल्मों में काम किया। मैंने जीवन में सबसे ज्यादा संजीव जी से ही प्यार किया। हेमा जी से उनके लगाव को जानते हुये भी। मेरा यह विश्वास था कि समय के साथ सब ठीक हो जायेगा। लेकिन यह हो न सका। संजीव दिल के मरीज होने के बावजूद शराव पीने से पीछे नहीं हटे। यह ठीक वैसा ही था, जैसे किसी जख्म पर तेजाब डालना। एक दिन संजीव के डाक्टर ने मुझसे कहा, सुलक्षणा इस व्यक्ति को छोड़ दो। यह दो वर्ष से ज्यादा नहीं जी पायेगा। परन्तु मैं अपने दिल का फैसला नहीं बदल सकी।”

कभी भरे पूरे परिवार का पालन पोषण करने वाली सुलक्षणा के लिये एक ऐसा दौर भी आया जब उसके खस्ताहाल फ्लैट को महीनों तक कोई खरीदार नहीं मिला। जिसे बेचकर कर्ज चुकाने के बाद वह अपना गुजारा कर सकती। आखिर उसके पुराने सह सितारे अभिनेता जीतेन्द्र ने अपने एक रिश्तेदार को वह फ्लैट बिकवाया। कहा जाता हे कि इस फ्लैट की बिक्री से मिली रकम का बड़ा हिस्सा भी सुलक्षणा के रिश्तेदार हजम कर गये। उसके वाद वह अपनी बहन व प्रसिद्ध फिल्म ‘लव स्टोरी‘ की हीरोइन विजयता पंडित और उसके संगीतकार पति आदेश श्रीवास्तव के साथ रहने लगी।
कहते हैं मुसीबत कभी अकेली नहीं आती। सुलक्षणा की एकमात्र सहारा विजयता पंडित के पति आदेश श्रीवास्तव को 2010 में कैंसर ने जकड़ लिया। जैसे तैसे वह इस बीमारी से उभरे। विजयता के अनुसार कभी कभार उनके लोनावाला फार्म हाऊस में जाने वाली सुलक्षणा ने कुछ समय बाद कहीं जाना आना व किसी से भी बात करना बन्द कर दिया। जहां तक कि अपने भाईयों से भी। सिवाय अपनी चहेती बहन संध्या के। परन्तु तकदीर ने सुलक्षणा का यह सहारा भी छीनना था। ज्यूलरी की शौकीन संध्या जब एक दिन मुम्बई के एक बैंक में ज्यूलरी जमा कराने गई तो वापस ही नहीं आई।  49 दिन बाद मुम्बई पुलिस को उसका कंकाल मिला।

कभी संध्या के साथ ‘रोना कभी नहीं रोना‘ (अपना देश-1972) जैसा कोरस गीत गाने वाली विजयता को भी वक्त के थपेड़ों ने रोने के हालात पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। परन्तु विजयता ने दृढ़ता से अपने परिवार को संभालने की भरपूर कोशिश की। आखिरी उपलब्ध जानकारी के अनुसार कुछ वर्ष पहले बाथरूम (स्नानागार) में गिरने से कूल्हे की हड्डी टूटने के चलते चार ऑपरेशन के बाद भी सुलक्षणा बमुश्किल चल फिर पाती हैं। रेडियो पर पुराने गीत सुनने के अतिरिक्त वह टेलिविज़न तक नहीं देखती। आधुनिक युग में कपड़ों की तरह प्रेमी बदलने वाली अभिनेत्रियों की तुलना में पूरी जिंदगी एक व्यक्ति के लिये न्योछावर करने वाली सुलक्षणा जैसी संवेदनशील अभिनेत्री का उदाहरण मिलना मुश्किल है। क्या नेक नीयती, नैतिकता व आदर्शवादी मूल्यों के लिये जीने वाले त्यागमयी इन्सान के लिये हमारे समाज ने ऐसी परिणिति तय कर रखी है?

लेखक संजीव सिंह ठाकुर इंजीनियरिंग में स्नातक ,पत्रकारिता व जनसंचार में स्नातकोत्तर हैं एवं कई पत्र, पत्रिकाओं में लिखते हैं.

No comments: