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4.8.15

नई जीवन दृष्टि को विकसित करें

-ललित गर्ग-

हर इंसान की चाहत है सफल और सार्थक जीवन, आनन्द और खुशीभरा जीवन। प्रकृति में आनन्द सर्वत्र बिखरा पड़ा है पर उसे समेटने वाला जो मन होना चाहिए, वह मन हमारे पास नहीं है। भगवान ने हमारे आनन्द के लिए हमारे जीवन को खुशहाल बनाने के लिये ही प्रकृति का निर्माण किया है। प्रकृति दोनों हाथ फैलाकर हमें खुशियां की खुशियंा देना चाहती है, लेकिन हम हैं कि उन खुशियों को बटोर ही नहीं पाते। झोली में आई खुशियां और आनन्द हमारी कुछ कमजोरियों के कारण, मानसिक दुर्बलताओं के कारण लौट जाती है। और हर समय चिंता करते हुए तनाव में ही जीना हमारी नियमि बना रहता हैं। डाॅक्टर ने कहा है इसलिए पार्क में टहलने चले जाते हैं। किसी तरह तीन-चार चक्कर पूरे हो जाएं तो छुट्टी मिले। क्या कभी पार्क के सौन्दर्य को निहारा है, प्रकृति की छटा पर विचार किया है? पेड़-पौधे, फूल-पत्तियां सब आपसे मिलने को बेचैन हैं, आपसे मीठी-मीठी बातें करना चाहती हैं लेकिन आपके पास तो फुरसत ही नहीं है उनसे बात करने की। वे तो आपको तनाव से मुक्त करके आनन्द प्रदान करने के लिए आतुर हैं, बेचैन हैं परन्तु आप तो सजावटी फूलों और गमलों की छटा देखकर ही खुश होना चाहते हैं। ऐसे में वास्तविक आनन्द कैसे मिलेगा? कैसे जीवन खुशहाल बनेगा? कैसे जीवन से नकारात्मकता को मुक्ति मिलेगी?



वस्तुतः बहुत अधिक धन-दौलत, शोहरत और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां ही जीवन की सार्थकता-सफलता  नहीं मानी जा सकती और नहीं ही उससे आनन्द मिलता है अपितु रोजमर्रा की छोटी-छोटी चीजों और घटनाओं में आनन्द को पाया जा सकता है। लोग अक्सर अपने सुखद वर्तमान को दांव पर लगाकर भविष्य में सुख और आनन्द की कामना और प्रतीक्षा करते रहते हैं। सोचते हैं कि आज कष्ट पा लो कल आनन्द से रहेंगे। यह तो स्वयं के साथ सरासर अन्याय करना हुआ। वर्तमान में जीना ही सार्थक है, बुद्धिमतापूर्ण है। यदि वर्तमान अच्छा और सुखद है तो आने वाला कल भी अच्छा और सुखद ही होगा। वर्तमान हमारे भविष्य की नींव के समान है। फिर भविष्य तो वैसे भी अनिश्चितताओं का पिटारा है। हम नहीं जानते कि ईश्वर ने हमारे भविष्य के लिये क्या सोचा है, क्या बुना है। इसलिए अच्छा तो यही है कि हम अपनी सकारात्मक सोच को विकसित करें और स्वयं से स्वयं के संवाद को प्राथमिकता दें।  आप निश्चय ही आनन्द की गंगोत्री में अवगाहन करेंगे। यही आनन्द का, यही सफल और सार्थक जीवन का सही और सुन्दर मार्ग है।

आदमी दौड़ा जा रहा था। बहुत तेजी से दौड़ा जा रहा था। पैदल नहीं किन्तु गधे पर दौड़ा जा रहा था। एक परिचित आदमी रास्ते में मिला। उसने कहा, ‘अरे भाई! इतनी तेजी से क्यों दौड़ रहे हो? कहां जा रहे हो? किसलिए जा रहे हो? क्या करने जा रहे हो?’
वह बोला, ‘मत रोको, मुझे जाने दो। मेरा गधा खो गया है। उसे ढूंढने जा रहा हूं।’
उसने कहा, ‘क्या यह तुम्हारा गधा नहीं है जिस पर तुम अभी चढ़े हुए हो?’
वह बोला, ‘ओह! मैं तो यह भूल ही गया। यह मेरा ही गधा है। मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि गधे पर बैठा हूं या पैदल चल रहा हूं।’
स्वयं से स्वयं के संवाद की जब स्थितियां नगण्य होती है तो ऐसी नकारात्मकता देखने को मिलती है, ऐसी ही भूलें बार-बार दोहरायी जाती है। हमेशा आपके आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो अपनी नकारात्मकता से आपको भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं, ऐसे लोग हर युग में हुए हैं और वर्तमान में भी ऐसे लोगों का वर्चस्व बढ़ ही रहा है। नकारात्मकता ने ही भ्रष्टाचार को शक्तिशाली बनाया है। लेकिन सकारात्मक दृष्टिकोण लाते ही नकारात्मक पहलू कमजोर दिखाई देते हैं। इन्हीं स्थितियों में हम बड़े-बड़े अनूठे काम कर गुजरते हैं। सकारात्मकता नैतिक साहस को बढ़ाती है। आमतौर पर युगों को बदलने वाले नायकों में ऐसे ही लक्षण देखने को मिलते हैं। इंसान का कोरी नकारात्मकता से ही नहीं, सकारात्मकता से बहुत गहरा रिश्ता है। यह सकारात्मकता ही तो थी कि कोपर्निकस, अरस्तु, सुकरात, महावीर, बुद्ध, गांधी, सुभाषचन्द्र बोस, आचार्य तुलसी जैसे लोग बड़े उद्देश्य के लिए विलक्षणता एवं मौलिकता का प्रदर्शन कर पाए।

हमें जीवन को नये आयाम देने और कुछ हटकर करने के लिये अपना नजरिया बदलना होगा। अंधेेरों से लड़ने के लिये गली और मौहल्ले के हर मुहाने पर नन्हें-नन्हें दीपक जलाने होंगे। साहसी फैसला लेने के लिए अपनी अंतरात्मा की आवाज सुननी होगी। कोरे पत्तों को नहीं जड़ों को सींचने से समस्या का समाधान होगा। जीवन को सफल बनाने के लिये यह आवश्यक है कि आप स्थिति का सही विश्लेषण करके, उसके संदर्भ में सही पृष्ठभूमि बनाएं। हम जो भी महत्वपूर्ण निर्णय करने जा रहे हैं, यदि उनके संदर्भ में हमें पृष्ठभूमि की सही जानकारी नहीं है तो हमारे कार्य करने की दिशा गलत हो सकती है। गांधीजी ने अपने बात को कहने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर कसकर अपने अनुभव के आधार पर पुष्ट किया, उसके बाद उसे सही पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया। उन्होंने अंग्रेज सरकार की आलोचना करते हुए भी, उन पर सीधा प्रहार करने के स्थान पर पहले अपनी बात के समर्थन में सही पृष्ठभूमि निर्मित की। फिर उसे आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया।

एक सफल जीवन का निर्वाह करने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने भीतर ऐसे गुणों का विकास करें, जिनके द्वारा सभी को एक साथ लेकर चलने की कला में दक्षता प्राप्त कर सके। इसके लिए सबसे पहले हमें स्वयं को तैयार करना होगा। जब तक हम दूसरों का सम्मान नहीं करेंगे, तब तक दूसरे भी हमारे प्रति आदर का भाव नहीं रखेंगे। मानवीय गुणों के विकास के बिना, आप अपने आपको समाज में प्रतिष्ठापित नहीं कर सकते। समाज में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिसके विरोधी न हों। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हम अपने कार्यों के द्वारा समर्थक अधिक बना रहे हैं या विरोधी।
जिन्दगी को एक ढर्रे में नहीं, बल्कि स्वतंत्र पहचान के साथ जीना चाहिए। जब तक जिंदगी है, जिंदादिली के साथ जीना जरूरी है। बिना उत्साह के जिंदगी मौत से पहले मर जाने के समान है। उत्साह और इच्छा व्यक्ति को साधारण से असाधारण की तरफ ले जाती है। जिस तरह सिर्फ एक डिग्री के फर्क से पानी भाप बन जाता है और भाप बड़े-से-बड़े इंजन को खींच सकती है, उसी तरह उत्साह हमारी जिंदगी के लिए काम करता है। इसी उत्साह से व्यक्ति को सकारात्मक जीवन-दृष्टि प्राप्त होती है।

एक बुद्धिमान व्यक्ति अपने गांव के बाहर बैठा हुआ था। एक यात्री उधर से गुजरा और उसने उस व्यक्ति से पूछा- ‘इस गांव में किस तरह के लोग रहते हैं, क्योंकि मैं अपना गांव छोड़कर किसी और गांव में बसने की सोच रहा हूं।’ तब उस बुद्धिमान व्यक्ति ने पूछा-‘तुम जिस गांव को छोड़ना चाहते हो, उस गांव में कैसे लोग रहते हैं?’ उस आदमी ने कहा-‘वे स्वार्थी, निर्दयी और रूखे हैं।’ बुद्धिमान व्यक्ति ने जवाब दिया-‘इस गांव में भी ऐसे ही लोग रहते हैं।’

कुछ समय बाद एक दूसरा यात्री वहां आया और उस बुद्धिमान व्यक्ति से वही सवाल पूछा। बुद्धिमान व्यक्ति ने उससे भी पूछा-‘तुम जिस गांव को छोड़ना चाहते हो, उसमें कैसे लोग रहते हैं?’ उस यात्री ने जवाब दिया-‘वहां लोग विनम्र, दयालु और एक-दूसरे की मदद करने वाले हैं।’ तब बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा-‘इस गांव में भी तुम्हें ऐसे ही लोग मिलेंगे।’

यह कहानी इस बात की प्रेरणा देती है कि जैसी हमारी जीवन दृष्टि होगी, दूसरे लोग भी हमें वैसे ही दिखाई देंगे। यदि हम अपनी प्रवृत्ति में सकारात्मक जीवन दृष्टि विकसित करें तो हमें दूसरों में खूबियां अधिक दिखाई देने लगेंगी। यदि हमारे लिए नकारात्मक जीवन दृष्टि विकसित होने लगे, तो हमें दूसरों में खामियां अधिक नजर आने लगेंगी।

इसलिये एक नये एवं आदर्श जीवन की ओर अग्रसर होने वाले लोगों के लिये महावीर की वाणी है-‘उट्ठिये णो पमायए’ यानी क्षण भर भी प्रमाद न करे। प्रमाद का अर्थ है-नैतिक मूल्यों को नकार देना, अपनांे से पराए हो जाना, सही-गलत को समझने का विवेक न होना। ‘मैं’ का संवेदन भी प्रमाद है जो दुख का कारण बनता है। प्रमाद में हम अपने आप की पहचान औरों के नजरिये से, मान्यता से, पसंद से, स्वीकृति से करते हैं जबकि स्वयं द्वारा स्वयं को देखने का क्षण ही चरित्र की सही पहचान बनता है। एक छोटा बच्चा एक आइसक्रीम पार्लर में पहुंचा। उसने काउंटर पर जाकर आइसक्रीम कप की कीमत पूछी। वेटर ने कप की कीमत 15 रुपए बताई। बच्चे ने अपना पर्स खोला और उसमें रखे पैसे गिने। फिर उसने पूछा, छोटे कप की कीमत क्या है? परेशान हुए वेटर ने कहा, 12 रुपए। लड़के ने उससे छोटा कप मांगा। वेटर को पैसे दिए और कप लेकर टेबल की ओर चला गया। जब वेटर खाली कप उठाने आया तो वह भाव-विभोर हो उठा। बच्चे ने वहां टिप के तौर पर 3 रुपए रखे थे। जो कुछ भी आपके पास है, उसी से आप दूसरों को खुशी दे सकते हैं, यही है वास्तविक जागृति स्वयं की स्वयं के प्रति। क्लियरवाॅटर ने सटीक कहा है कि हरेक पल आप नया जन्म लेते हैं। हर पल एक नई शुरुआत हो सकती है। यह विकल्प है- आपका अपना विकल्प। लेकिन व्यक्ति प्रमाद में जीता है और प्रमाद में बुद्धि जागती है प्रज्ञा सोती है। इसलिए व्यक्ति बाहर जीता है भीतर से अनजाना होकर और इसलिए सत्य को भी उपलब्ध नहीं कर सकता। चरित्र का सुरक्षा कवच अप्रमाद है, जहां जागती आंखों की पहरेदारी में बुराइयांे की घुसपैठ संभव ही नहीं। इसलिए मनुष्य की परिस्थितियां बदलें, उससे पहले उसकी प्रकृति बदलनी जरूरी है। बिना आदतन संस्कारों के बदले न सुख संभव है, न साधना और न साध्य।                                          

प्रेषकः
ललित गर्ग
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133

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